अद्धयात्म

मंदिरों में इसलिए चढ़ाए जाते हैं नारियल और नींबू…

आदिकाल से ही दुनिया के लगभग सभी धर्मों में बलि देने की प्रथा मौजूद रही है। हालांकि ईश्वर भाव का भूखा होता हैं। आजतक किसी ने भगवान कभी किसी वस्तु का उपभोग करते हुए नही देखा है। भारत में भी कई जगहों पर देवी -देवताओं को जानवरों की बलि दी जाती रही है। परन्तु क्या आप जानते हैं कि बलि क्यों दी जाती हैं? ऐसा नहीं है कि बलि देने से भगवान प्रसन्न होते हैं न ही भगवान उस बलि के जानवर का उपभोग करेंगे। इसका मूल कारण तंत्र में छिपा हुआ है।

इस प्रथा को समझने के लिए सबसे पहले हमें तंत्रशास्त्र का अध्ययन करना होगा क्योंकि बलि की शुरुआत तंत्र में ही हुई है। हर देवी-देवता के लिए अलग-अलग ध्वनियां विकसित की गई, उनके साथ कुछ विशेष विधि-विधानों को जोड़ा, उन्हें ऊर्जा से परिपूर्ण करने के लिए कुछ प्रयोग किए। तंत्र के अनुसार एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा को बदला जा सकता है और उससे मनमाना काम लिया जा सकता है। ऊर्जा आपको किसी से भी मिल सकती है, चाहे वो एक नींबू हो या जानवर।

इनकी बलि देकर इनकी जीवन ऊर्जा को मुक्त कर दिया जाता है और फिर उसी ऊर्जा को नियंत्रित कर उससे मनचाहा कार्य किया जा सकता है। मां काली तथा भैरव के मंदिरों में दी जाने वाली बलि इसी का उदाहरण है। वहां जीवों की ऊर्जा को मुक्त कर उसे नियंत्रित किया जाता है और उससे तांत्रिक शक्तियां प्राप्त की जाती है। परन्तु इस तरह करने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि जब तक आप बलि देते रहेंगे, आपकी ऊर्जा और शक्तियां बनी रहेंगी, जब भी बलि नहीं दी जाएगी, उनकी शक्तियां खत्म होनी आरंभ हो जाएगी और एक दिन वो आम आदमी की तरह बन जाएंगे। इसीलिए तांत्रिक अनुष्ठान करने वाले नियमित रूप से बलि देते हैं।

पाश्चात्य लेखक रॉबर्ट ई़ स्ववोदा की अघोर पर लिखी पुस्तक में भी एक ऐसा उदाहरण मिलता है जब एक तांत्रिक ने नरबलि देने के लिए कुछ आत्माओं को वश में किया और फिर काली को उनकी बलि चढ़ाई थी। यह भी ऊर्जा के परिवर्तन का ही एक उदाहरण है। इस प्रक्रिया से उन प्रेतात्माओं की मुक्ति का मार्ग भी खुलता है। मंदिरों में नारियल फोड़ना या नींबू की बलि देना भी इसी का एक उदाहरण है। नारियल और नींबू में मौजूद जीवनऊर्जा को मुक्त कर उसे अपने देवता को समर्पित किया जाता है ताकि वो अन्य कार्यों में इस ऊर्जा का उपयोग कर सकें।

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