अद्धयात्म
मंदिरो में चोरी किया करते थे कुबेर, फिर शिव ने बना दिया मालामाल
कुबेर के तीन पैर और आठ दांत मौजूद है जबकि ये कुरूपता के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं इनकी ज्यादातर मुर्तिया स्थूल और बेडौल एक राक्षस रूपी हैं, धनपति होने के बावजूद कुबेर का चरित्र आकर्षक नहीं था पर यह रावण के ही कुल-गौत्र के थे।
कुबेर को यक्ष यानी धन का रक्षक भी कहा जाता हैं, इनका स्वरूप एक प्रहरी और रक्षक को ही स्पष्ट करता हैं, पुराने मंदिरो में इनकी मुर्तिया देखकर पता चल जायेगा के इनका रूप रक्षक और प्रहरी जैसा था।
धनपति के मामले में यह लक्ष्मी माँ से कम ही रहे क्योकि लक्ष्मी माँ की पूजा की परम्परा चालू हुई क्योकि इनके साथ धन के मंगल का भाव जुड़ा हैं जबकि कुबेर के साथ मंगलमई का भाव प्रत्यक्ष रूप से नहीं हैं।
कुबेर अपने पूर्वजन्म में चोर हुआ करते थे वह मंदिरो में भी चोरी करना नहीं छोड़ते थे, ये एक शिव मंदिर में चोरी करने के लिए रात में घुसे वहां लाइट नहीं होने के कारण इन्होने दीपक को जलाया यह दीपक बार बार बुझ रहा था और कुबेर इसको बार बार जला रहे थे, शिव जी ने सोचा की कोई भक्त अंधकार मिटा रहा हैं इस बात से खुश होकर शिव जी ने अपना रूप प्रकट किया और कुबेर जी को आशीर्वाद दिया की वह अगले जन्म में धनपति रहेंगे।