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मछलियों के आनुवांशिक गुणों में लगातार गिरावट: शोध

बेतिया : उत्तर बिहार में तालाब में पाली जाने वाली मछलियों के आनुवांशिक गुणों में लगातार गिरावट हो रही है। इनमें तरह-तरह की बीमारियां पैदा हो रही हैं। इसका असर उत्पादन पर भी पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण तालाब में वैसी मछलियों के बीज का इस्तेमाल किया जाना है, जिसका उत्पादन ब्रीडिंग से किया गया है। यह बात मछलियों पर हुए शोध में सामने आई है। राष्ट्रीय मत्स्य आनुवांशिकी संस्थान ब्यूरो, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने हाल ही में सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण की विभिन्न नदियों एवं तालाबों से मछलियों के नमूने लेकर अध्ययन किया। इनमें रोहू, नैनी, भकूरा, मोय, महासिर और पागदा सहित 27 प्रजातियों की मछलियां शामिल की गईं। शोध में यह बात सामने आई कि नदियों में पाई जाने वाली मछलियां तो ठीक हैं, लेकिन तालाब की मछलियों के आनुवांशिक गुणों में गिरावट आ रही है। उनमें कई तरह की बीमारियां भी हो रही हैं। जबकि नदी की मछलियां मजबूत हैं। कम दिनों में ज्यादा विकास भी हो रहा है।

इसका मुख्य कारण तालाब में वैसी मछलियों के बीज का इस्तेमाल किया जाना है, जिसका उत्पादन इनकी ब्रीडिंग के द्वारा किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रीडिंग वह प्रक्रिया है, जिसमें ब्रीड मछलियों से उत्पन्न उनके बच्चों की भी आपस में ब्रीडिंग कराई जाती है। इस प्रक्रिया में मछलियों की संतान ही एक दूसरे से ब्रीड करते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि बिहार की नदियों में अभी मछलियों की अनुवांशिकता में गिरावट नहीं आई है। यह बेहतर मौका है कि इससे ज्यादा से ज्यादा मछलियां उत्पन्न कराई जाएं।

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