मध्यप्रदेश के इन शहरों में खान-पान के लिए कुछ न कुछ है मशहूर
मध्यप्रदेश का दाल बाफला देश भर के फूड लवर्स के दिल में राज करता है. वैसे तो आपको देश के हर कोने में दाल बाफले खाने को मिल जाएगा, लेकिन जो स्वाद मध्य प्रदेश के रतलाम के दाल बाफले में है वह आपको कहीं और के दाल बाफले में बिल्कुल नहीं मिलेगा.
मध्यप्रदेश को देश का दिल कहा जाता है. यहां जहां पर्यटकों को लुभाने वाले पचमढ़ी, खजुराहो, कान्हा किसली पार्क, बांधवगढ़ नैशनल पार्क, नर्मदा और सोन नदी का उद्गम स्थल अमरकंटक है तो वहीं देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर, भोपाल के ताल भी फेमस हैं. लेकिन एक राज्य की पहचान उसकी सांस्कृति और लुभावने पकवानों से भी होती है. यहां हम आपको बता रहे हैं उन बड़े शहरों के खास पकवानों के बारे में जो प्रदेश की आबोहवा में घुले-मिले से लगते हैं. चाहे वो मालवा दाल-बाफला-लड्डू हो, विंध्य का दाल बड़ा हो, या निमाड़ की दाल ढोकली हो, इन सबका स्वाद एक से बढ़कर एक है.
बात शुरू करते हैं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से. भोपाल अपनी तहजीब, ताल और मांसाहारी खान-पान के लिए जाना जाता है. भोपाल के चटोरी गली में नॉनवेज की एक से बढ़कर एक चीजें मिलती हैं. वहीं पुराने भोपाल में मटन स्टू का जैसा जायका यहां मिलेगा वैसा पूरे राज्य में नहीं मिलेगा. इसके अलावा भोपाल के 6 नंबर मार्केट में आप मध्यप्रदेश की मावा बाटी का स्वाद ले सकते हैं. यह एक ऐसी डिश है जिसे आप मध्य प्रदेश में होने वाले हर खास फंक्शन्स में देख लेंगे. इसके अलावा भोपाल में चाय, पोहा, दही वाली साबूदाना खिचड़ी पसंदीदा व्यंजन हैं.
खान-पान के मामले में इंदौर प्रदेश ही नहीं पूरे देश और विश्व पटल पर अपनी पहचना रखता है. यहां का सेंव यानी नमकीन पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट होता है. यहां का सर्राफा मार्केट और 56 दुकान खान-पान के प्रमुख ठीये हैं. जबकि इंदौर में पोहा और जलेबी, कचौड़ी और समोसा नाश्ते में खूब खाए जाते हैं. व्रत स्पेशल साबूदाने की खिचड़ी यानी फरियाली खिचड़ी व्रत ही पूरे 12 महीने खाई जाती है. अगर आप एक बार इंदौरी खाने का जायका ले लेंगे तो इस शहर में बार-बार जाएंगे. यहीं पर आपको भुट्टे का कीस खाने को भी मिलेगा. यह मध्यप्रदेश की पारंपरिक डिश भी है.
जबलपुर में भी पोहे जलेबी का कल्चर है, लेकिन एक चीज वहां सबसे फेमस है वो भी देवा मंगोड़े की दुकान. देवा मंगौड़े वाले की दुकान पर खौलते तेल की कड़ाही में हाथ डालकर पकौड़े निकाले जाते हैं. यह दुकान सौ साल पुरानी है.
अगर सागर की बात करें तो यहां भी पोहा, जलेबी, समोसा, कचौड़ी के साथ ही ट्रेडिशन फूड मिलते हैं. अगर मिठाई की बात करें तो यहां चिरौंजी की बर्फी खूब पसंद की जाती है. इस शहर में आप किसी भी चिरौंजी मिठाई के पूछेंगे तो वह आपको विजय चौक स्थित चौधरी स्वीट हाउस पर ले जाएगा.
कटनी जिले में लोग नाश्ते में समोसा-जलेबी, आलू बड़ा खाते हैं. जबकि पूड़ी-सोहारी, बरा शादियों और शुभ अवसरों पर बनता है. इसके अलावा गुजिया, मावा जलेबी यहां लोग चाव से खाते हैं. समोसा के साथ टमाटर की चटपटी चटनी का ऐसा स्वाद आपको और कहीं नहीं मिलेगा.
शहडोल में यूं तो खाने को बहुत कुछ है, लेकिन यहां के रेलवे स्टेशन के आलू बड़े बहुत फेमस है. जो भी इस रेलवे स्टेशन से होकर गुजरता है, आलू बड़े जरूर खाता है. खास बात यह है कि आलू बड़े के साथ कोई चटनी नहीं होती बल्कि तली हुई लाल मिर्च दी जाती है.
अनूपपुर जिले की सीमाएं छत्तीसगढ़ से लगी हुई हैं. यहां खीर, पूड़ी, सोहारी और गुलाब जामुन हर शादी अवसर पर बनते हैं. यहां ग्रामीण अंचल में महुआ की शराब लोग बनाते हैं और पीते हैं. अनूपपुर में मनेंद्रगढ़ रोड पर एक ढाबा है जिसके यहां की खीर बहुत फेमस है. अनूपपुर आने-जाने वाले लोग इस ढाबे की खीर खाना नहीं भूलते. इस ढाबे पर कोई नाम या बैनर नहीं है, लेकिन जानने वाले इसे शुक्ला जी का ढाबा बताते हैं.
छिंदवाड़ा में बहुतायत में छिंद के पेड़ हैं इस कारण इसका नाम छिंदवाड़ा पड़ा. इस जिले में खान-पान पर मध्यप्रदेश के परंपरागत खान-पान की चीजें बनती हैं. लेकिन स्टेशन के ठीक सामने शंकरभाऊ की दुकान है जो दही बड़े के लिए फेमस है. पूरा शहर शंकर भाऊ के दही बड़ों का दीवाना है. अगर मिठाइयों की बात करें तो गरबा स्वीट्स और अमित स्वीट की दुकाने हैं, लेकिन इनके यहां मिठाइयों से ज्यादा समोसा-चटनी खूब चाव से खाया जाता है.
बैतूल में आटे की नमकीन, अलग-अलग तरह की भाजी खूब खाई जाती है. आटे की नमकीन को सेवइयां बोला जाता है. बैतूल में नीम पानी ढाबा तीतर के गोश्त के लिए और मोंटी का ढाबा देसी चिकन के लिए जाना जाता है. बैतूल नैशनल हाइवे पर स्थित है इसलिए यहां पर ढाबा कल्चर ज्यादा है.
बैतूल की तरह होशंगाबाद भी नैशनल हाइवे पर पड़ने वाला शहर है. इसलिए यहां होटल या रेस्टोरेंट से ज्यादा ढाबा का कल्चर है. इन ढाबों पर काम करने वाले ज्यादातर आदिवासी लोग होते हैं जो खास अंदाज में चिकन बनाते हैं. यही चिकन इस हाइवे से चलने वाले लोगों को ललचाते हैं. ढाबों पर खाट कल्चर भी लोगों को लुभाता है. अगर आदिवासी अंचल की बात करें तो उनका प्रमुख खान कोदो-कुटकी और भाजी है. इस जिले में दाल बाटी चूरमा पसंदीदा खाना है.
दतिया में पीतांबरा पीठ के पास कचौड़ी की दुकान हैं. ऐसा कहा जाता है कि यहां पीतांबरा देवी से लेकर आचार्य और यहां आने वाले श्रद्धालू कचौड़ी का सेवन करते हैं. यहां की देवी को भी कचौड़ी, समोसे और नमकीन चीजें प्रसाद में चढ़ती हैं.
झाबुआ कड़कनाथ मुर्गा के लिए पूरी दुनिया में जाता है. कड़कनाथ मुर्गा काले रंग का होता है और इसका चिकन भी काला होता है. ऐसा माना जाता है कि इसका चिकन कई शारीरिक फायदा भी देता है.
ग्वालियर के बहादुरा के लड्डू की खूब चर्चा होती है. इस लड्डू के फैन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी थे. बहादुरा के लड्डू के अलावा यहां की मुंगौड़ी भी काफी चर्चित है और स्वादिष्ट लगती है. अगर ग्वालियर जाएं तो लड्डू, मुंगौड़ी के अलावा यहां का पोहा भी ट्राई कर सकते हैं.
ग्वालियर से लगता है जिला मुरैना है. मुरैना अपने गजक और तिल-गुड़ की चिक्की के लिए जाना जाता है. पूरे देश में जो गजक बनती है उसे बनाने वाले मुरैना के लोग ही होते हैं.
अगर बात करें बाबा महांकाल की नगर उज्जैन की तो यहां दाल-बाफला-लड्डू और कढ़ी खूब खाई जाती है. उज्जैन मालवा प्रांत का जिला है. यहां का पोहा, दाल की कचौड़ी का स्वाद तो हर किसी के जुबान पर चढ़ जाता है, लेकिन दाल-बाफला और लड्डू का असली स्वाद चाहिए तो श्री गोविंदम, जनता स्वीट्स, डमरूवाला के यहां जा सकते हैं.
नागदा अपने पोहे के लिए जाना जाता है. यहां रेलवे स्टेशन में सबसे बढ़िया पोहा, आलू बड़े और समोसे मिलते हैं. मुंबई से दिल्ली ट्रेन रूट पर पड़ने वाले इस स्टेशन पर यात्री यहां का पोहा खाना नहीं छोड़ते.
यूं तो दाल बाफला और सेंव इंदौर व उज्जैन में खूब मिलते हैं, लेकिन रतलाम सेंव का गढ़ है. यहां की रतलामी सेंव सभी जगह खूब पसंद की जाती है. इसके अलावा मालवा का फेमस खाना, दाल-बाफला और लड्डू का मजेदार स्वाद चाहिए आपको रतलाम जरूर जाना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि यहां जैसे दाल-बाफले पूरे मालवा में नहीं बनते.