मध्य प्रदेश की सियासत : विधानसभा न चल रही हो और सरकार बहुमत खो दे तो राज्यपाल दे सकते हैं शक्ति परीक्षण के निर्देश
नई दिल्ली : मध्य प्रदेश की राजनीति में नित नये मोड़ आ रहा है। मिली जानकारी के अनुसार भारतीय जनता पार्टी की याचिका पर गुरुवार को उच्चतम न्यायाल में लगातार दूसरे दिन सुनवाई हो रही है। शीर्ष अदालत ने स्पीकर एनपी प्रजापति से पूछा, ‘क्या वे वीडियो लिंक के जरिए बागी विधायकों से बात कर सकते हैं और फिर उनके बारे में फैसला कर सकते हैं?’ इस पर स्पीकर की तरफ से पेश वकील अभिषेक सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- ‘नहीं, ऐसा सम्भव नहीं है। स्पीकर को मिले विशेषाधिकार को सुप्रीम कोर्ट भी नहीं हटा सकता।’ फ्लोर टेस्ट कराने की मांग करती याचिका भाजपा ने दाखिल की है। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच सुनवाई कर रही है।
वहीं कोर्टरूम में स्पीकर ने कहा- कोर्ट ने निर्देश दिए तो संवैधानिक दिक्कतें पैदा होंगी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बेंच का सुझाव था कि हम बेंगलुरू या कहीं और पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर सकते हैं ताकि बागी विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्पीकर से बात कर सकें। स्पीकर ने इस सुझाव को ठुकरा दिया। बागी विधायकों के इस्तीफों पर बेंच ने स्पीकर से पूछा कि बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में क्या कोई जांच हुई है और क्या इस पर कोई फैसला किया गया है? इस पर स्पीकर की ओर से पेश वकील सिंघवी ने कहा कि जब कोर्ट स्पीकर को तय वक्त के अंदर कुछ कदम उठाने के निर्देश देने लग जाए तो इससे संवैधानिक दिक्कतें पैदा होंगी। फ्लोर टेस्ट पर बेंच ने सभी पक्षों से पूछा कि क्या विधायकों के इस्तीफे या उन्हें अयोग्य करार देने के स्पीकर के किसी भी फैसले से फ्लोर टेस्ट पर असर पड़ेगा? संवैधानिक सिद्धातों पर गौर करें तो विधायकों के इस्तीफे या उनकी अयोग्यता का मुद्दा स्पीकर के सामने लंबित रहने से ट्रस्ट वोट पर कोई रोक नहीं लगती। इसलिए कोर्ट को दूसरे पहलू की तरफ देखना होगा कि क्या राज्यपाल ने उन्हें मिली शक्तियों से परे जाकर कोई कदम उठाया है? अगर विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है और इस बीच अगर सरकार बहुमत खो देती है ताे राज्यपाल के पास स्पीकर को विश्वास मत परीक्षण कराने का निर्देश देने का अधिकार है। इस पर स्पीकर ने कहा कि राज्यपाल यह तय नहीं कर सकते कि सरकार के पास बहुमत है या नहीं। यह सदन तय करता है।
राज्यपाल को तीन ही अधिकार हैं- सदन का सत्र बुलाएं, सत्र को निलंबित करें या सदन को भंग कर दें। राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से पेश वकील ने बेंच से कहा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ एकतरफ बैठे हैं और स्पीकर कोर्ट में राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीटों पर उपचुनाव होने तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने की मांग की। भाजपा ने इसका विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। वहीं, विधायकों ने कहा कि स्पीकर को उनके इस्तीफे मंजूर करने का निर्देश दिया जाए। जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच में कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे, भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी, राज्यपाल के वकील तुषार मेहता, स्पीकर के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने पैरवी की। बुधवार को हुई सुनवाई में उच्चतम न्यायालय की बेंच ने कहा- हम कैसे तय करें कि विधायकों के हलफनामे मर्जी से दिए गए या नहीं? यह संवैधानिक कोर्ट है। हम संविधान के दायरे में कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। टीवी पर कुछ देखकर तय नहीं कर सकते। 16 बागी विधायक फ्लोर टेस्ट में शामिल हों या नहीं, लेकिन उन्हें बंधक नहीं रखा जा सकता। अब साफ हो चुका है कि वे कोई एक रास्ता चुनेंगे। उन्होंने जो किया उसके लिए स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने वकीलों से सलाह मांगी कि कैसे विधानसभा में बेरोकटोक आने-जाने और किसी एक का चयन सुनिश्चित हो।