मध्य प्रदेश : प्रगति के बढ़ते कदम
बहुत पहुंचे हुए संत एक लोकप्रिय धर्मभीरु राजा के राज्य में भ्रमण करते हुए पहुंचे, राजा ने बहुत भक्तिभाव से उनका आदर सम्मान किया, राजा ने संत की भूरी भूरी प्रशसा की और संत ने राजा के विकास की चर्चा की। राजा ने कहा संत आपने बहुत छोटी उम्र से कठिनतम तपस्या की, बहुत सिद्धि प्राप्त की, आप चमत्कारी पुरुष हैं आपकी प्रशंसा बहुत सुनी थी आज साक्षात् दर्शन हुए, मैं धन्य हुआ, संत ने भी मुस्करा का जबाब दिया हाँ मेने भी तुम्हारी बहुत चरचा सुन रखी की तुम बचपन से अद्भुत प्रतिभा के धनी थे, कैसे तुमने अपनी प्रगाढ़ बुद्धि के बल पढ़ लिखकर इतनी योग्यता पायी की तुम एक ऐसे संघ से जुड़ गए और वहां पर बहुत ज्ञान सीखा और अपनी चाणक्य बुद्धि से घुसकर सेंध लगाकर आगे बड़े और इतनी शक्ति पैदा की कि तत्कालीन राजा को पदचुय्त कर स्वयं राजा हुए और आज संत प्रवत्ति के राजा कहलाने लगे। इतना सुनकर राजा का मुँह कुम्हलाने लगा। राजा ने संत से कहा की मेरे कार्यकाल में मेरे द्वारा अनेकों योजनाएं लागु की हैं तो संत बोला अपने लिए या जनता के लिए ! राजा ने सकपकाकर कहा संत जी राजा बनने के बाद जो भी कार्य किया जाता हैं वह जनता के लिए होता हैं उसमे राजा का स्वारथ तो होता हैं कारण मैं कोई जन्मजात राजा थोड़े ही हु, मैं तो प्रजातंत्र का मुख्य मंत्री होने से प्रदेश का मुखिया होने के नाते राजा कहलाने लगा, वरन में तो सबसे पहला सेवक हूँ राज्य का। और यह पद काँटों का ताज हैं जिस दिन से पहना हैं दिन रात कार्यरत हूँ। पद तो कांटो का ताज हैं तो क्यों उसके पीछे भाग रहे हो ! पर कुर्सी तो मखमल की हैं। वह काम की हैं।
संत बोले राजा मैं तो सब जानकारी समाचार पत्र के द्वारा जानता हूँ। पत्र तो बहुत खिलाफ में लिखते हैं तो राजा बोला ये सब मुझसे ईर्ष्या करते हैं। पर मेरा काल स्वर्ण काल हैं प्रदेश के विकास में। इस पर संत बोले राजा एक दाने से पूरे हांड़ी का पता चल जाता हैं की हांड़ी पकी या नहीं। आज का ही पत्र समाचार पत्र देखा पढ़ा तो लगा आपके प्रदेश की अनंत कथाएं हैं जैसे व्यापम काण्ड जिसमे लगभग 600 आरोपियों के खिलाड़ आरोप लगाए गए, रात में दो बजे तक कोर्ट खुली रही ! शिक्षा के क्षेत्र में यहाँ यह नहीं मालूम कितने कॉलेज खुले हैं, कितने अस्तित्व में हैं कितने छात्र पढ़ रहे हैं, कॉलेजों को ढूढना पड़ रहा हैं, पता बदल गए, छात्र उनमे हैं नहीं ! बी आर टी एस का उपयोग बहुत लाभदायी हैं इसके बनाने वालों को, बनवाने वालों को और उससे अब लोगों को मौत बहुत सुगम सरल हो गयी और अब स्कूली छात्रों के ऊपर प्रयोग हो रहा हैं उन बदमाश बस ड्राइवर और कंडक्टरों के ऊपर विश्वास करके, क्या अभी अभी घटनाओ से हमने कोई पाठ नहीं सीखा ! या फिर घटना घटने के बाद सीखेंगे ! आज ही आपके राज्य के इंदौर में एक वार्ड में शार्ट सर्किट से आग लगने पर नवजात शिशुओं की मौत होने से बच गए। कई अस्पतालों में वर्षों से यंत्र, शस्त्र नहीं खरीदे गए ,आपके राज्य में दो नम्बरी डॉक्टरों कि भरमार हैं पुलिस विभाग जो शासन की सुरक्षा की बागडोर सम्हालता हैं उसकी विश्वनीयता खुद घेरे में हैं उसमे कार्यरत कर्मचारियों की अस्मत सुरक्षित नहीं हैं, जनता की बात का क्या कहना, जनता को यह पता होना चाहिए की वह इस समय कौन से थाने क्षेत्र में चल रहा हैं कारण घटना घटने के बाद भटकना न पड़े। जीवित पीड़ित के साथ तो बहुत परेशानी और यदि मृत हो गया हो उसका सर, पैर किस थाने में हैं उस पर कार्यवाही होगी। मरने वाले को कोई चिंता नहीं कारण वह तो मर गया पर उसके परिवार वालों को परेशानी होती हैं।
बलात्कार, हत्याएं, जेबकतरी, ठगी, चोरी, चमारी, एक्सीडेंट, लूट से सुरक्षित नहीं हैं और इनसे बचे तो शासन में फैला भ्रष्टाचार से कोई नहीं बच पाया, नर्मदा के किनारे कराया गया पौधरोपण का कुछ हिसाब किताब नहीं मिल रहा, सर शाख पर उल्लू बैठे हैं अन्जामें गुलिस्तां क्या होगा। आपके राज्य में राजा बहुत प्रगति जरूर हुई हैं पर जितनी अपेक्षित थी उससे अधिक हो गयी. इस पर राजा का सर गौरवान्वित हुआ और राजा ने आशीर्वाद माँगा तो संत बोले तथास्तु पर यदि तुम्हारे राज्य में ऐसी प्रगति होती गयी तो पता नहीं नेता और जनता का पता नहीं चलेगा पर अपराध, शिक्षा, स्वास्थ्य,सड़क जंगल रेता, नदियां बच पायेंगी या नहीं संदेह हैं।
राजा ने संत से अपना भविष्य जानना चाहा तो संत बोले अब तुम कुछ दिन आराम करो और दूसरों को भी विकसित होने का अवसर दो। इस पर राजा का मुख कुम्हलाया और संत ने इतना कहा बस ऐसा ही विकास करते रहो। आज का विकास क्या कम हैं। इस प्रदेश का गौरव शिक्षा,चिकित्सा ने गर्त में डूबा दिया, और इससे आने वाली नस्ल का क्या होगा भगवान् जाने पर वर्तमान में तो प्रदेश का कोई नाम इस क्षेत्र में लेना नहीं चाहता, इस कारण प्रदेश बिल्डिंग, सड़कें, योजनाएं खूब बना ले उससे कुछ नहीं होगा जब तक शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर नहीं उठेंगे। नैतिकता तो व्यक्तिगत विषय होता हैं। इसका कोई ठेका नहीं ले सकता. वर्तमान बहुत चिंतनीय है प्रदेश का, हम कागज़ों में विकास देख रहे हैं कागज़ भी पूरे हो विकास जैसे तो ठीक न कागज़ मिल रहे और न विकास और कहाँ जा रहा प्रदेश का विकास धन की लूट मची हैं चारों ओर और दिए जा रहे प्रवचनों में प्रयोग पर उपदेश कुशल बहुतेरे, छल समझ में आ गया की हम कितने छल चुके हैं अब कांठ की हांडी नहीं चाहिए जो जल चुकी.