ज्ञान भंडार

मनसे का एक दशक पूरा

sudhir joshi
सुधीर जोशी

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने विगत 9 अप्रैल को अपना एक दशक पूरा कर 11वें वर्ष में प्रवेश किया। अपने एक दशक के कार्यकाल में मनसे ऐसा कुछ नहीं कर पायी, जिससे यह कहा जा सके कि इस पार्टी ने महाराष्ट्र की जनता का दिल जीता है। अपने चाचा बाल ठाकरे को आदर्श मानने वाले राज ठाकरे तथा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच मनोमिलन की कोशिशें लगातार होती रही हैं, पर दोनों भाइयों का मन एक नहीं हो पाया। पिछले एक दशक में तो दोनों भाइयों का स्वर एक नहीं हो सका, अब देखना यह है कि दूसरा दशक पूरा होते-होते राज-उद्धव मिलाप हो पाता है या नहीं। राज्य की दस महानगरपालिकाओं के चुनाव अगले वर्ष 2017 में होने वाले हैं, क्या चुनाव में मनसे की स्थिति पहले से और बेहतर होगी, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। गुढ़ी पड़वा पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे की महारैली के बाद यह कहा जाने लगा है कि राज्य में मनसे को नई ताकत मिली है। यह तो दस मनपा के चुनाव परिणाम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि मनसे तथा राज ठाकरे की राज्य में कितनी ताकत बढ़ी है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के पुत्र तथा वर्तमान शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ मतभेद और चुनाव में टिकट वितरण जैसे प्रमुख निर्णयों में दरकिनार किए जाने के कारण शिवसेना छोड़ने के पश्चात 9 मार्च 2006 को मुंबई में राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक अपनी पार्टी स्थापित की।
मतभेदों के कारण रहे सत्ता से दूर
मतभेदों के चलते भले ही मनसे शिवसेना से अलग हो गया हो, पर जहां तक विचारधारा का सवाल है, मनसे आज भी शिवसेना के मराठी मानुष की अस्मिता और ‘भूमिपुत्र’ के उत्थान पर कायम है। राज ठाकरे स्वयं को एक भारतीय राष्ट्रवादी (न की सिर्फ एक क्षेत्रीय) समझते हैं और दावा करते हैं कि कांग्रेस हमेशा दोहरी नीति अपनाती रही है। पार्टी, धर्मनिरपेक्षता को भी अपना एक मूल सिद्धांत मानती है।
उत्तर भारतीय विरोधी तेवर बरकरार
manaseपार्टी की स्थापना से लेकर अब तक पार्टी का तेवर उत्तर भारतीय लोगों के विरोध में ही रहा है। फरवरी, 2008 में मनसे के कुछ कार्यकर्ताओं ने मुंबई में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की थी। जब समाजवादी पार्टी के समर्थक शिवाजी पार्क में हुई रैली में सम्मिलित हुए थे। दादर स्थित शिवाजी पार्क का क्षेत्र मनसे के गढ़ हैं, वहां पर समाजवादी पार्टी के नेता अबू असीम आजमी ने एक उत्तेजक भाषण दिया था। इस भाषण से भड़के मनसे कार्यकर्ताओं ने सपा कार्यकर्ताओं पर धावा बोल दिया। इस मामले में मनसे के 73 तथा समाजवादी पार्टी के 19 कार्यकर्ताओं को मुंबई पुलिस ने हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया था। 6 फरवरी 2008, में कथित तौर पर लगभग 200 कांग्रेस और राष्ट्रवादी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ कर मनसे के तथाकथित मराठी समर्थक एजेंडे का समर्थन करने के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में शामिल हो गए। 8 फरवरी को पटना सिविल कोर्ट में राज ठाकरे के खिलाफ याचिका दायर की गई, जो उनके बिहार और उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय त्यौहार छठ पूजा पर टिप्पणी के विरोध में था।
10 फरवरी, 2008 को मनसे कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्तर भारतीय दुकानदारों और विक्रेताओं पर हमला किया और राज ठाकरे की गिरफ्तारी के कथित अंदेशे के विरुद्ध अपना गुस्सा निकालने के लिए सरकारी संपत्ति नष्ट कर दी। नासिक पुलिस ने 26 मनसे कार्यकर्ताओं को हिंसा के आधार पर हिरासत में ले लिया।
फरवरी, 2008 में, भारत के अन्य क्षेत्रों से मुंबई में लोगों के अनियंत्रित प्रवास के मुद्दे पर राज ठाकरे के भाषण ने एक बहुप्रचारित विवाद पैदा किया। 15 अक्टूबर, 2008 को राज ठाकरे ने जेट एयरवेज को धमकी दी कि अगर उन्होंने परिवीक्षाधीन कर्मचारियों को काम पर वापस नहीं लिया, जिन्हें आर्थिक मंदी की वजह से खर्च में कटौती के लिए निकाला गया था, तो वह महाराष्ट्र में उसकी गतिविधि बंद करवा देंगे। अक्टूबर, 2008 में मनसे कार्यकर्ताओं ने उत्तर भारतीय उम्मीदवारों को पीटा, जो भारतीय रेलवे बोर्ड में भर्ती होने की प्रवेश परीक्षा पश्चिमी क्षेत्र से मुंबई में दे रहे थे। मनसे के उत्तर भारतीयों और बिहारियों पर हो रहे हमले के बदले भारतीय भोजपुरी संघ ने जमशेदपुर में टाटा मोटर्स के एक मराठी अधिकारी के आवास पर हमला किया।

शिवसेना से टकराव
10 अक्टूबर, 2006 में शिवसेना और राज ठाकरे की नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के समर्थकों के बीच टकराव उभर कर सामने आया। यह आरोप लगाया गया कि मनसे के कार्यकर्ताओं ने मुंबई एक कॉलेज के पास शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की फोटो वाले पोस्टर फाड़े हैं, इसके बाद शिवसेना कार्यकर्ताओं ने सेना भवन के पास दादर में राज ठाकरे की फोटो वाले होर्डिंग नीचे उतारे। जैसे ही इस घटना की खबर फैली लोगों के एक समूह शिवसेना भवन के सामने एकत्र हुए और एक-दूसरे पर पथराव शुरू कर दिया।
इस घटना में एक सिपाही घायल हो गया और दोनों दलों के कई समर्थक भी घायल हुए। इस स्थिति को सामान्य करने के लिए पुलिस ने भीड़ पर आंसू गैस के गोले दागे, अंतत: पुलिस कार्यवाही और मौके पर उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे की मौजूदगी से स्थिति काबू में आ गई। उत्तर भारतीयों पर हुए हमले के लिए बहुत से नेताओं ने खास कर सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतीशील गठबंधन की केंद्र सरकार ने सख्त तौर पर राज ठाकरे और मनसे की आलोचना की थी।
निर्वाचित प्रतिनिधि
अपनी सभाओं में भारी भीड़ जुटाने वाले राज ठाकरे लोगों के मतों को अपनी पार्टी के पक्ष में क्यों नहीं कर पाए, यह सवाल पिछले दस वर्षों से लगातार बढ़ाया जाता रहा है। सन् 2006 में पार्टी के निर्माण से लेकर अब तक केवल चार नगर निगमों में एमएनएस के प्रतिनिधि चुने गए। पुणे नगर निमग में 8, नासिक नगर निगम में 12, बी एम सी में 7 तथा ठाणे नगर निगम में 3 प्रतिनिधि हैं।
दस मनपा पर सत्ता का लक्ष्य
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, मनसे अपना राजनीतिक विस्तार बढ़ाने के लिए तत्पर होता दिखायी दे रहा है। आगामी अक्टूबर माह में ही राज्य की मुंबई, ठाणे, अकोला, नागपुर, अमरावती, सोलापुर मनपा के चुनाव होने वाले हैं। इन चुनाव के पाश्र्वभूमि में मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने अभी से तैयारियां शुरु कर दी है। राज ठाकरे की गुढ़ी पड़वा रैली को भले ही मनसे में आई नई ताकत के रूप में देखा जा रहा हो, पर हकीकत कुछ और ही है।
राज ठाकरे ने गुढ़ी पड़वा की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ-साथ संघ पर भी निशाना साधा। उन्होंने संघ को चेतावनी दी कि अगर राज्य का विभाजन किया गया तो इसके भयंकर परिणाम होंगे। राज ने संघ के मा.गो. वैद्य को निशाना बनाते हुए कहा कि उनकी उम्र दवाएं लेने वाली हो चुकी है, इसलिए वे दवाएं लेकर अपना स्वास्थ्य अच्छा करें। ज्ञात हो कि मनसे की तरह ही शिवसेना भी राज्य विभाजन के लिए तैयार नहीं है।
राज्य का विभाजन बर्दाश्त नहीं
पृथक विदर्भ तथा पृथक मराठवाड़ा की बातें शिवसेना को भी रास नहीं आ रहीं। राज्य का विभाजन न होने देने को लेकर शिवसेना तथा मनसे की एकता तो है, पर हिंदुत्व को लेकर दोनों दलों की विचारधारा अलग-अलग है। गुढ़ी पड़वा के दिन अपने दस साल पूरे कर चुकी मनसे का राजनीतिक भविष्य पार्टी अध्यक्ष की सक्रियता पर निर्भर है।
कुछ माह पूर्व एक टेलिविजन चैनल को दिए गए साक्षात्कार में राज ठाकरे ने कहा था कि मेरी पार्टी क्षेत्रीय पार्टी है, मैं अपनी पार्टी का विस्तार महाराष्ट्र के बाहर नहीं करूंगा। राज ठाकरे के इस बयान से यह पता चलता है कि वे अपनी पार्टी को महाराष्ट्र तक ही सीमित रखेंगे। लेकिन इस सबके बीच यह समझना तथा जानना भी जरूरी है कि बीते एक दशक में मनसे ने जितनी प्रगति की क्या वह राज ठाकरे की लोकप्रियता के अनुरूप है या नहीं। जब तक राज ठाकरे खुद की पार्टी का मूल्यांकन करने की आदत नहीं डालेंगे, तब तक वे अपनी पार्टी का जनाधार नहीं बढ़ा पाएंगे।
अपने गिरेबान में भी झांकने की आदत डालें राज
दूसरों की आलोचना करते समय स्वयं के गिरेबान में देखने की आदत न होने के कारण मनसे अपने एक दशक के कार्यकाल में हरदिल अजीज नहीं बन पायी। राज ठाकरे को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर देखना चाहिए, जिन्होंने बहुत ही अल्प समय में दिल्ली की गद्दी प्राप्त कर ली, जबकि राज ठाकरे को दस साल बीत जाने के बाद भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका। मनसे के लिए आने वाला समय बहुत चुनौती भरा होगा। अगर मनसे अगले साल होने वाले दस महानगरपालिका चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रही तो अगले विधानसभा चुनाव में मनसे की ताकत और ज्यादा बढ़ेगी। अगर मनसे को अपने चालू दशक (बीस साल) पूरे होने तक एक सफल राजनीतिक दल के रूप में उभरना है तो उसे अपने तौर-तरीके में बदलाव लाना होगा। राज्य के लोगों की धारणा है कि तोड़फोड़, परप्रांतीय विरोध जैसे मुद्दों को अलग रखकर राज ठाकरे अगर सभी के हितों की बात करने की आदत डाल लें तो शायद इस दशक के पूरे होने तक राज ठाकरे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी विराजित हो सकते हैं।

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