मन को शांत कर परम सत्ता से जोड़ता है ऊं, जानिए कितनी शक्ति होती है इसमें…
ओंकार को वेदों का सार कहा जाता है। यह ध्वनि और शब्द भी है। मान्यता है कि इसके एक-एक अक्षर में दिव्य तेज छिपा हुआ है, क्योंकि यह अक्षर परमात्मा का प्रतीक है। परमात्मा के द्वारा व्यक्ति का कल्याण तो होता ही है, पूरी प्रकृति भी सद्भाव के सूत्र में अनुशासित हो जाती है।
ऊं सर्वव्यापक चेतना का प्रतीक होने के कारण भक्ति, ज्ञान, साधन और साध्य भी है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ब्रह्मांड में एक ध्वनि लगातार गूंज रही है, जिसके कारण परमाणुओं में आपसी संघात द्वारा गति पैदा होती है और सृष्टि का क्रिया-कलाप चलता है। मान्यता है कि यही ध्वनि ऊं है, जिसे योगसूत्र में प्रणव कहा गया है।
परमात्मा का सबसे प्रभावशाली नाम है ऊं
शास्त्रों के अनुसार, ऊं परमात्मा का सबसे प्रभावशाली एवं निकट का नाम है। उपनिषदों तथा गीता ने इसकी महिमा समझाते हुए इसका गुणगान किया है। ऊं का चिंतन, ऊं का दर्शन एवं ऊं का उच्चारण भारत की में सदियों से चला आ रहा है। बौद्ध, जैन, सिख, आर्य समाज तथा निर्गुण संतों में भी इसके प्रयोग की परंपरा है। इसकी ध्वनि का प्रभाव हमारे तन-मन और चेतन तक जाता है। तभी तो यह सभी मंत्रों के आरंभ में लगाया जाता है। जैसे ऊं नम: शिवाय, ऊं नमोभगवते वासुदेवाय। गायत्री मंत्र भी ऊं से शुरू होता है।
एक अखंड ध्वनि है ऊं
योगियों का अनुभव है कि सब भाषाओं के पार, सोच-विचार के पार शांत मन से पूर्ण मौन में ऊं की ध्वनि सुनी जा सकती है। सभी ध्वनियां ऊं से जन्मी हैं और ऊं में विलीन होती हैं। यह एक अखंड ध्वनि है, जिसमें अ, उ, म ध्वनियां हैं, जो क्रम से जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति अवस्था की सूचक हैं। श्रुति के अनुसार वही शिव है, वही अद्वैत है-शिव: अद्वैत:।
ओम का अर्थ सहित स्मरण करते ही जीवन ऊर्ध्वमुखी, उत्साही एवं दिव्य बन जाता है। ऊं शब्द का उच्चारण मन को शांत कर परम सत्ता से जोड़ देता है।