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महाराष्ट्र में तीन साल के अंदर 7 हजार बच्चों की मौत
मुंबई. महाराष्ट्र सरकार को कुपोषण की जकड़न से उबरने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है। राज्य के आदिवासी बहुल 16 जिलों में बीते तीन साल में 7004 बच्चों की मौत हुई है। मरने वाले बच्चे एक साल तक उम्र के हैं। जबकि बीमारी के कारण 864 माताओं की भी मृत्यु हुई है।
प्रदेश सरकार की नवसंजीवनी योजना की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में 3022, साल 2015-16 में 1912 और साल 2016-17 में 2070 बच्चों की मौत हुई है। राज्य की महिला व बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे ने एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी है। पंकजा ने बताया कि बालमृत्यु का कारण कुपोषण, बच्चों के वजन में कमी, सांस लेने में परेशानी, न्यूमोनिया जैसी बीमारी के कारण हुए हैं।
पंकजा ने बताया कि साल 2014-15 में 285, साल 2015-16 में 296 और साल 2016-17 में 283 माताओं की मौत हुई है। पंकजा ने कहा कि कुपोषण को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने पोषण नीति तैयार करके सरकार के पास प्रस्ताव भेजा है जबकि माता मृत्यु को टालने के लिए गर्भवती माताओं की नियमित जांच, जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से आहार और दवाइयां उपलब्ध कराई जाती है।
उन्होंने बताया कि आदिवासी इलाकों में कुल 315 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इसमें से सरकारी इमारतों में 274 केंद्र चलाए जा रहे हैं जबकि 45 केंद्रों में नए इमारत का निर्माण कार्य का काम प्रस्तावित है। कांग्रेस सदस्य शरद रणपीसे ने इस संबंध में सवाल पूछा था।
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बाल सुधार गृह से 42 बच्चे भाग गए
मुंबई के डोंगरी स्थित बाल सुधार गृह में से 42 बच्चे भाग गए हैं। यह आंकड़ा साल 2014 -15 से लेकर साल 2016-17 के बीच का है। बाल सुधार गृह में से पलायन करने वाले बच्चों में से 16 बच्चों को वापस लाने में सफलता मिली है।
प्रदेश की महिला व बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे ने विधान परिषद में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी है। पंकजा ने बताया कि चिल्ड्रेन एड सोसायटी (माहिम) के माध्यम से बच्चों के भागने के बारे में रिपोर्ट मांगी गई थी। उसके अनुसार यह जानकारी सामने आई है। पंकजा ने कहा कि इस मामले में एक सुरक्षा रक्षक को निलंबित कर दिया गया है। भाजपा के सदस्य प्रवीण दरेकर ने इस बारे में सवाल पूछा था।