महाशिवरात्रि 2020: शिव जी से वरदान पाने का दिन है महाशिवरात्रि…
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परब्रह्म शिव से वरदान एवं दैहिक, दैविक और भौतिक त्रिविध तापों से मुक्ति पाने का दिन श्री महाशिवरात्रि 21 फरवरी शुक्रवार को है। शिवरात्रि का स्मरण आते ही भगवान शिव के अनेकों रूपों शिव, शंकर, रूद्र, महाकाल, महादेव, भोलेनाथ आदि-आदि रूपों के अनंत गुणों की कहानियाँ स्मरण होने लगती हैं। शिव ही ब्रह्म हैं और यही ब्रह्म जब आमोद-प्रमोद अथवा हास-परिहास के लिए नयापन सोचते हैं तो श्रृष्टि का सृजन करते हैं। महादेव बनकर देव उत्पन्न करते हैं तो, ब्रह्मा बनकर मैथुनीक्रिया से श्रृष्टि का सृजन करते हैं सभी जीवों का भरण-पोषण करने के लिए महादेव श्रीविष्णु बन जाते हैं और इन जीवात्माओं का चिरस्वास्थ्य बना रहे इसके लिए भगवान मृत्युंजय बनकर रोग हरण भी करते हैं।
जब यही जीवात्मायें अपने शिवमार्ग से भटकती हैं और अनाचार-अत्याचार में लग जाती हैं तो महाकाल, यम और रूद्र के रूप में इनका संहार भी करते हैं अतः इस चराचर जगत के आदि और अंत शिव ही हैं। पृथ्वीलोक पर इनके रुद्ररूप की पूजा सर्वाधिक होती है। पौराणिक मान्यता है कि महादेव श्रृष्टि का सृजन और प्रलय शायंकाल-प्रदोष वेला में ही करते हैं इसलिए इनकी पूजा आराधना का फल प्रदोष काल में ही श्रेष्ट माना गया है।
त्रयोदशी तिथि का अंत और चतुर्दशी तिथि के आरम्भ का संधिकाल ही इनकी परम अवधि है। किसी भी ग्रह, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण आदि तथा सुबह-शाम के संधिकाल को प्रदोषकाल कहा जाता है। इसलिए चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान शिव ही है। वैसे तो शिवरात्रि हर माह के कृष्ण पक्ष कि चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है किन्तु फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि के विषय में पुराणों में अनेकों कहानियाँ मिलती हैं, किन्तु जो शिवपुराण में है वह इस प्रक्रार है।
पूर्वकाल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। उस चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। जिससे उसके मन में शिव के प्रति अनुराग उत्पन्न होने लगा। शिव कथा सुनने से उसके पाप क्षीण होने लगे। वह यह वचन देकर कि अगले दिन सारा ऋण लौटा दूंगा जंगल में शिकार के लिए चला गया। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। शाम हो गयी किन्तु उसे कोई शिकार नहीं मिला वह तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात्रि में जल पीने के लिए आने वाले जीवो का इंतज़ार करने लगा। बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था, शिकारी को उसका पता न चला।
प्रतीक्षा, तनाव और दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी बेल के पत्ते तोडता और नीचे फेंक देता वो बिल्बपत्र शिवलिंग पर गिरते गए वह दिनभर कुछ खाया नहीं था। भूंख-प्यास से व्याकुल था इस प्रकार उसका व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गये। रात्रि के प्रथम प्रहर में ही पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुँची। चित्रभानु ज्यों ही उसे धनुष-बाण से मारने चला हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी। शिकारी को दया आ गई उसने हिरनी को जाने दिया और तनाव में बेलपत्र तोड़कर नीचे फेकता गया। अतः अनजाने में ही वह प्रथम प्रहर के शिव पूजा का फलभागी हो गया।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। चित्रभानु उसे मारने ही वाला था कि हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, हे शिकारी ! मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ, अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार वह तनावग्रस्त बेलपत्र नीचे फेंकता रहा जो शिवलिंग गिरते रहे उस समय रात्रि का दूसरा प्रहर चल रहा था अतः अनजाने में इस प्रहार में भी उसके द्वारा बेलपत्र शिव लिंग पर चढ़ गये।
कुछ देर बाद एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ तालाब के किनारे जल पीने के लिए आयी, जैसे ही वह हिरनी को मारना चाहा हिरणी बोली, ‘हे शिकारी ! मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊँगी इस समय मुझे मत मारो। हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर भी दया आ गई। उसने उस हिरनी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था, रातभर शिकारी के तनाववश बेलपत्र नीचे फेंकते रहने से शिवलिंग पर अनगिनत पर बेलपत्र चढ़ गये, सुबह एक मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने ज्यों ही उसे मारना चाहा वह भी करुण स्वर में बोला हे शिकारी ! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो ताकि मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े मैं उन हिरणियों का पति हूँ यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा। शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया। सुबह हो गई उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर अनजाने में चढ़े बेलपत्र के फलस्वरूप शिकारी का हृदय अहिंसक हो गया। उसमे शिव भक्तिभाव जागने लगा थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेम के प्रति समर्पण देखकर शिकारी ने सबको छोड़ दिया। इसप्रकार रात्रि के चारों प्रहर में हुई शिव पूजा से उसे शिवलोक कि प्राप्ति हुई ! अतः भोलेनाथ की पूजा चाहे जिस अवस्था में करें उसका फल मिलना निश्चित है यही परम सत्य भी है।
भांग, धतूर, बेलपत्र और गन्ने के रस, शहद, दूध, दही, घी, पंचामृत गंगा जल, दूध मिश्रित सक्कर अथवा मिश्री से शिव आराधना करने अथवा चढ़ाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं इस दिन रात्रि जागरण और रुद्राभिषेक करने से प्राणी जीवनमृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।