नई दिल्ली (एजेंसी) : नक्सली सुरक्षा बलों के लिये कड़ी चुनौती है, लेकिन इस चुनौती के बीच सेना के जवानों ने नक्सलियों पर को नक्सलियों को गिरफ्तार कर रही है। इसी के तहत झारखंड राज्य में नक्सलियों के ख़िलाफ़ जारी पुलिस अभियान और आमने-सामने की मोर्चाबंदी में लड़कियों के मारे जाने और उनकी गिरफ़्तारी की घटनाएं बढ़ी हैं। आंकड़ों के अनुसार झारखंड में इन दिनों नक्सली, पुलिस की चौतरफ़ा घेरेबंदी का सामना कर रहे हैं। हाल ही में गिरिडीह के अबकीटांड़ गांव से पुलिस ने तीन इनामी नक्सलियों समेत पंद्रह नक्सली हमलावरों को गिरफ़्तार किया, इनमें पांच महिलाएं भी शामिल हैं। पिछले महीने पलामू में सीआरपीएफ़ (केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स) ने मुठभेड़ में जिन चार नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया था, उनमें दो लड़कियां भी थीं। इससे पहले खूंटी-चाईबासा की सीमा पर हुई मुठभेड़ में भी एक पुरुष नक्सली के साथ एक महिला मारी गई थी। झारखंड में केंद्रीय सुरक्षा पुलिस फ़ोर्स (सीआरपीएफ़) के आरक्षी महानिरीक्षक (अभियान) संजय आनंठ लाठकर कहते हैं कि लड़कियां और महिलाएं तो नक्सली दस्ते में पहले से सक्रिय रही हैं, लेकिन अब दस्ते में पुरुषों की संख्या लगातार कम पड़ती जा रही है, इसलिए लड़कियों को मोर्चे पर लगाया जाने लगा है। संजय आनंठ दावा करते हैं कि बड़े ही कारगर ढंग से नक्सलियों के नेटवर्क लगातार तोड़े जा रहे हैं, इससे नक्सलियों के बीच पुरुषों की भर्तियों में रोक लगी है।
ऐसे में सक्रिय नक्सल महिलाओं की भूमिका बदली जा रही है और उन्हें अब सामने लाया जा रहा है। लाठकर का दावा है कि नक्सलियों की ये मुहिम भी जल्दी कमज़ोर पड़ेगी क्योंकि अब गाँवों के लोग पुलिस को सूचना देने लगे हैं और उसी आधार पर कार्रवाइयां होने से उनका भरोसा बढ़ा है। साथ ही दस्ते में शामिल लड़कियों को धीरे-धीरे ये एहसास होने लगा है कि ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल किए जाने की वजहों से उनकी जान ख़तरे में पड़ने लगी है। ग़ौरतलब है कि पिछले महीने पलामू के झुनझुना पहाड़ पर पुलिस और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ में सब-ज़ोनल कमांडर महेश भोक्ता को मार गिराने का दावा किया गया था।
उसी मुठभेड़ में गाँव की एक नाबालिग लड़की को घायल हालात में पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। पुलिस का कहना है कि इलाज के दौरान पूछताछ में दलित परिवार की उस लड़की ने बेचारगी की पूरी कहानी पुलिस के सामने बयां की थी। आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 के शुरुआती 60 दिनों में अलग-अलग जगहों पर नौ नक्सली मारे गए, जबकि 91 नक्सलियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। पुलिस ने नक्सलियों के पास से 5 एके-47 और एके-56 समेत 80 राइफ़लें भी बरामद की हैं। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने कई नामी नक्सलियों की संपत्ति ज़ब्त की है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल सरकार और पुलिस ने कई मौक़ों पर ये दावा किया था कि साल 2017 में नक्सलियों का सफ़ाया कर दिया जाएगा। हालांकि अब सरकार इसकी मियाद 2018 बताने लगी है। वैसे पुलिस और सरकार के दावों को लेकर भी अक्सर सवाल उठते रहे हैं। दूसरी तरफ माओवादियों की रीजनल कमेटी ने एक विज्ञप्ति जारी कर ये दावा किया है कि गिरिडीह के अबकीटांड़ में जिन 15 लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया, उनमें से 3 ही लोग माओवादी दस्ते से जुड़े थे। जबकि पुलिस ने गाँव को चारों तरफ़ से घेरकर 5 महिलाओं समेत 12 निर्दोष ग्रामीणों को पकड़ा है। पुलिस की इन कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ कमेटी ने 29 मार्च को झारखंड बंद का आह्वान किया है, लेकिन पुलिस ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है। नक्सली मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रजत कुमार गुप्ता कहते हैं कि पुलिस के आंकड़े नकार भी दें तो इससे वे इनकार नहीं करते कि झारखंड में नक्सली बुरे दौर से गुजर रहे हैं, इसका मुख्य कारण नक्सलियों का कई गुटों में बंटना और नीति-सिद्धांत से भटक जाना है। रजत कुमार गुप्ता कहते हैं, हथियारबंद गिरोह के तौर पर धन कमाना नक्सलियों का मुख्य मक़सद रह गया है।दस्ते में इन दिनों लड़कियों और महिलाओं की सक्रियता के सवाल पर वो कहते हैं कि ये महज़ इत्तेफाक हो सकता है कि वे लगातार मारी-पकड़ी जा रही हैं। साथ ही यह भी संभव है कि किसी रणनीति के तहत या दस्ते में पुरुषों की संख्या कम पड़ने पर वे खुलकर मोर्चा संभालने लगी हैं।