बताया जाता है कि रामवृक्ष ने अपने साथ कुछ लोग भी जोड़ रखे थे। उसके इस गोरखधंधे का नेटवर्क कुशीनगर, बस्ती, बलिया, मऊ, कन्नौज, कानपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बदायूं और बरेली के ग्रामीण इलाकों तक पहुंच गया था। रामवृक्ष को जानने वाले लोगों का कहना है कि 2010 में उसने अपने सभी अवैध क्लीनिक बंद कर दिए थे। बाद में उसने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से संगठन बना लिया।
वर्ष 2014 में वह मथुरा के जवाहर बाग में आ गया था। इस बाग पर उसने कब्जा कर लिया। बताया जाता है कि बेटा बूटी के नाम पर छलने का धंधा उसने यहां भी शुरू कर दिया था। कई दूसरे गंभीर रोगों के इलाज के नाम पर भी वह लोगों से पैसे ऐंठ रहा था।
तीन जून और पांच जून को जब पुलिस ने जवाहर बाग में आपरेशन सर्च चलाया था, तब भी तमाम दवाएं यहां से बरामद हुई थीं। जवाहर बाग हिंसा में घायल झारखंड निवासी देवकी प्रसाद, जानकी और बिहार के केशव सिंह का कहना है कि जवाहर बाग में उसने अस्पताल खोल रखा था। अगर किसी को कोई दिक्कत होती थी तो रामवृक्ष ही दवा देता था। उसके साथ दो दूसरे लोग भी दवा बांटते थे। कैंप लगाकर भी दवाएं बांटी जाती थीं। कई लोगों की दवा खाने से तबीयत भी बिगड़ गई थी।
कौन थे डाक्टर साहब मुजफ्फरपुर वाले
पुलिस ने 4 जून को उन 10 लोगों की सूची जारी की थी जिनकी शिनाख्त गिरफ्तार किए गए कब्जाधारियों ने की थी। इनमें एक डाक्टर साहब मुजफ्फरपुर वाले का भी उल्लेख था। पुलिस ने जो रिपोर्ट डीजीपी को दी है उसमें लिखा है कि लोगों से पूछताछ में जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक यह डाक्टर जवाहर बाग में कैंप लगाकर बीमार लोगों का इलाज करता था।
पूरे जवाहर बाग में उसे डाक्टर साहब के नाम से पुकारा जाता था। पूछताछ में पुलिस को इतना तो पता चल गया था कि वह मुजफ्फरपुर के रहने वाला है, लेकिन मुजफ्फरपुर में कहां का रहने वाला है, इसकी जानकारी नहीं हो पाई है। हालांकि लोगों ने इतना जरूर बताया था कि वह रामवृक्ष के खास थे। पिछले ढाई साल से ही जवाहर बाग में रह रहे थे। उन्होंने यहां पूरा मेडिकल स्टोर भी खोल रखा था। जो दवाई नहीं होती थी उसे बाहर से मंगवा लिया जाता था।