एजेंसी/ दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले में कहा है कि यदि पूरी तरह से व्यस्क महिला विवाह के वादे पर लंबे समय तक अपनी मर्जी से किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध रखती है तो यह उसकी स्वच्छंदता है ना कि झूठ बोलकर फंसाने का मामला।
कोर्ट अपीलार्थी रोहित तिवारी की अधीनस्थ अदालत के सजा के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था। तिवारी को एडीजे कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में दस साल कठोर कैद और डेढ़ लाख रुपए जुर्माने की सजा दी थी।
यह था मामला
शिकायतकर्ता महिला का कहना था कि वह पिछले 17 साल से अपने पति से अलग रह रही थी। करीब चार साल पहले तिवारी के गोदाम से सस्ती दरों पर घरेलू सामान ला रही थी और इस दौरान ही दोनों की मित्रता हो गई थी। तिवारी उसके घर आने-जाने लगा था। इसी दौरान तिवारी ने उसे बताया कि वह अविवाहित है और अपने ननिहाल में रहता है। दिसंबर 2012 में तिवारी अपनी मामी के साथ उसे घर आया और उन्होंने दोनों को विवाह करने की सलाह दी।
शिकायतकर्ता महिला ने अपने पहले से विवाहित होने की जानकारी दे दी। इस पर उसे पति से तलाक लेकर विवाह करने को कहा।उसी दिन वह तिवारी के साथ मेंहदीपुर बालाजी गई और वहीं रात को दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने थे। महिला ने तिवारी की तीन लाख रुपए की आर्थिक मदद भी की थी। जून 2013 में उज्जैन गए और वहां से लौटकर महिला ने पति से तलाक की अर्जी दायर कर दी थी।
इस दौरान दोनों के बीच लगातार शारीरिक संबंध कायम रहे। नवंबर 2013 में तिवारी के गांव जाने पर उसके पहले से विवाहित होने व एक बच्चे का पिता होने की जानकारी मिली। ट्रायल के दौरान शिकायतकर्ता महिला ने स्वीकार किया था कि तिवारी की ओर से विवाह का प्रस्ताव आने से पहले ही वह उसके साथ दो बार शारीरिक संबंध बना चुकी थी।कोर्ट ने कहा कि महिला 34 साल की और आरोपी 32 साल के थे। दोनों एक दूसरे को जानते थे और दोनों में दोस्ताना संबंध थे।
12 दिसंबर,2012 को तिवारी की ओर से विवाह का प्रस्ताव आने से पहले ही वह उसके साथ दो बार अपने घर में शारीरिक संबंध कायम कर चुकी थी। आरोपी शिकायतकर्ता की मां व बेटे की उपस्थिति में उसके घर में सोया करता था।झूठ बोलकर फंसाना नहीं बल्कि स्वच्छंता है यहजस्टिस सुनीता गुप्ता ने अपील स्वीकार कर आरोपी को बरी करते हुए कहा कि महिला के साथ विवाह का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने के कोई सबूत नहीं है।
बिना यह पक्का किए हुए कि आरोपी व उसके घरवाले वाकई उनका विवाह करवाना चाहते हैं या नहीं शिकायकर्ता पर शारीरिक संबंध कायम करने की कोई बाध्यता नहीं थी। जबकि वह दोनों के बीच जो कुछ हो रहा था उसको समझने लायक परिपक्व है। इस बात के कोई सबूत नहीं है जिससे साबित होता हो कि महिला को जो कुछ वह कर रही थी उसके परिणाम उसे पता नहीं थे। उसने सबकुछ समझकर ही शारीरिक संबंध बनाने की सहमति दी थी।
और यदि पूरी तरह से व्यस्क महिला विवाह करने के वादे पर अपनी मर्जी से किसी पुरुष के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध रखती है तो यह उसकी स्वच्छंदता है ना कि झूठ बोलकर फंसाने का मामला। जब दोनों ही विवाहित थे तो महिला को कथित विवाह प्रस्ताव के संबंध में सबकुछ पता करने से पहले अपीलार्थी के साथ निरंतर शारीरिक संबंध बनाए नहीं रखने चाहिए थे।