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महेश भट्ट के बेबाक बोल, मुझे अपनी रूह बेचनी है तो आपका क्या?

film-director-mahesh-bhatt_1473502376प्रसिद्ध फिल्मकार महेश भट्ट छोटे परदे पर धारावाहिक ‘नामकरण’ लेकर आ रहे हैं। यह धारावाहिक एक बच्ची के बहाने पितृसत्तात्मक सत्ता को चुनौती देता है और सवाल उठाता है कि आखिर एक लड़की के लिए पिता या पति का नाम जुड़ना जरूरी क्यों है? यह एक ऐसे घर की कहानी है जहां पिता मौजूद नहीं, लेकिन उसकी छाया उपस्थित है। 
 
भट्ट अपनी फिल्मों में भी ऐसी कहानियां उठाते रहे हैं। धारावाहिक में बच्ची का किरदार निभा रही आरशीन नामदार और उसकी मां की भूमिका करने वाली बरखा बिष्ट के साथ शुक्रवार को लखनऊ पहुंचे महेश भट्ट से ‘अमर उजाला’ ने  बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश 

आप छोटे परदे पर एक ऐसा धारावाहिक लेकर आ रहे हैं जो पुरुष प्रधान समाज को चुनौती देता है और उससे जुड़े सवाल उठाता है लेकिन इधर जो आप फिल्म बनाते हैं वह ‘जिस्म’, ‘राज’, ‘मर्डर’ होती हैं?

– मैंने ‘आशिकी-दो’ भी बनाई है। ‘गैंगस्टर’ भी बनाई है, ‘सिटी लाइट’ भी बनाई है। 12 सितंबर को ‘नामकरण’ शुरू हो रहा है तो 16 सितंबर को ‘राज रिबूट’ भी आ रहा है। ये अलग-अलग धाराएं हैं। हर किस्म का इंसान है समाज में, हर तरह के अनुभव से वह गुजरना चाहता है। 

हम मनोरंजन के व्यवसाय से जुड़े हैं। हर तरह की फिल्में बनाते हैं। हां, आप ये जरूर पूछ सकते हैं कि मुझे किस तरह की फिल्में पसंद हैं? महेश भट्ट ने जो फिल्में बनाई हैं, वे हैं ‘अर्थ’, ‘सारांश’, ‘नाम’। 1998 में आई ‘जख्म’ मेरे द्वारा निर्देशित आखिरी फिल्म थी।

उसके बाद अगर रचनात्मकता से मैंने कोई काम किया है तो ये धारावाहिक ‘नामकरण’ है। कुछ चीजें हम बाजार की पसंद को ध्यान में रखकर बनाते हैं, कुछ चीजें हम अपनी पसंद के हिसाब से इस प्रकार बनाते हैं कि वह बाजार को भी पसंद आए।

 

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