मां गंगा का मंदिर, जहां सोने के कलश में रखा गंगाजल 103 साल बाद भी नहीं हुआ कम
गंगा माता का मंदिर
जयपुर के ‘गोविंद देवजी मंदिर’ के पीछे जयनिवास उद्यान में बना गंगा माता मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। यहाँ का स्थापत्य, शिल्प और खूबसूरती ही ख़ास नहीं हैं बल्कि इस मंदिर से जुड़ी और कई बाते हैं जो इसे विशेष बनाती हैं। इस मंदिर से इसे बनवाने वाले जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की आस्थायें ही नहीं उनकी भावनायें भी जुड़ी हैं। मां गंगा का माधोसिंह के लिए खास महत्व था जिसके चलते उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया और इसमें कई खासियतें जुड़वायीं जैसे मंदिर का स्वर्ण कलश।खास है स्वर्ण कलश
इस मंदिर में गंगा माता की मूर्ति के पास रखा लगभग 11 किलोग्राम का स्वर्ण कलश। 10 किलो तथा 812 ग्राम के इस सोने के कलश में गंगाजल को सुरक्षित रखा गया है। इतने मूल्यवान कलश के लिए यहाँ बंदूकधारी प्रहरी भी नियुक्त किए गए हैं। कहते हैं कि मंदिर के निर्माण और कलश की स्थापना के करीब 103 साल बीतने के बाद भी इसमें से गंगाजल की एक भी बूंद भी कम नहीं हुई है।रानी की इच्छा से बना मंदिर
यह मंदिर महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी की इच्छा का सम्मान करते हुए बनाया गया था। कहा जात है कि पहले रानी के महल के पास ‘जनानी ड्योढी महल’ में गंगा माता की मूर्ति स्थापित थी और उनकी दासियां गंगा माता की सेवा, पूजा किया करती थीं। रानी चाहती थीं कि इस पूजा में कभी विघ्न ना आये इसी कारण महाराजा माधोसिंह ने यहां गंगा गगा माता का मंदिर बनवाने का निर्णय किया। इसके लिए उन्होंने मकराना से संगमरमर और करौली से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया।अब भी मौजूद हैं दुर्लभ चित्र और शिलालेख
इस मंदिर में दुर्लभ और बेशकीमती स्वर्ण के कलश के अलावा राधा-कृष्ण और हरिद्वार की ‘हर की पौड़ी’ के दुर्लभ और सुंदर चित्र भी मौजूद हैं। मशहूर कवि पंडित रामप्रसाद द्वारा गंगा की महिमा के लिए लिखा गया शिलालेख आज भी सुरक्षित लगा हुआ है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य अदभूद हैं।