“मैं वो शख्स हूं जिसने भारत बंद का आयोजन किया” अशोक भारती ने खुद इस तरह अपना परिचय दिया. अशोक भारती दलित हैं और उनका जन्म पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के पास राजाराम बस्ती में हुआ था. वो सात भाई-बहन थे और इनके पिता दर्जी का काम करते थे. जबकि मां घर चलाने के लिए बैग सिलने का काम करती थी. भारती अम्बेदकर नेशनल ओवरसीज़ फेलोशिप के तहत ऑस्ट्रेलिया पढ़ाई करने गए. लौट कर आए तो उन्होंने अशोका विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिया. लेकिन भारती ने 2007 में दलित आंदोलन में फुल टाइम हिस्सा लेने के लिए नौकरी छोड़ दी.
भारती 15 अगस्त को एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं.न्यूज़ 18 से बात करते हुए, उन्होंने कहा “15 अगस्त तक निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू किया जाए वरना सरकार को दलितों का गुस्सा झेलना पड़ेगा”.
पेश है उनसे बातचीत के कुछ खास अंश
सवाल: 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC/ST एक्ट के तहत कानून का दुरुपयोग हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया. क्या आप मानते हैं कि देश भर में इससे दलितों के बीच गुस्सा भड़क गया है?
इस देश में न्यायिक व्यवस्था ने दलितों और आदिवासियों को बार-बार निराश किया है. इस मामले में, न्याय का मूल सिद्धांत ये है कि जब तक आप दूसरे पक्ष का नहीं सुनते, तब तक आप किसी चीज़ पर फैसला नहीं कर सकते. 1990 से ही उच्च न्यायपालिका ऐसा कर रही है. वो नेशनल कमिशन से कोई सलाह नहीं लेते. इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के जीवन और आजीविका प्रभावित होती है.
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने एक आदेश पारित किया जो 30 करोड़ लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित किया. क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को इस विषय पर अपने विचार रखने का का कोई अधिकार नहीं था?
दलितों की नाराजगी की एक और वजह है सुप्रीम कोर्ट में शायद ही कोई अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के न्यायाधीश हैं. सुप्रीम कोर्ट में अभी एक महिला न्यायाधीश है, और अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व न के बराबर है. सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ ऊंची जाति और उच्च वर्ग के न्यायाधीश हैं.
सवाल: अगर आपने वास्तव में ‘भारत बंद’ का आयोजन किया तो इतने कम समय में आपने इतने सारे लोगों को कैसे जमा किया?
इस बारे में मैं ज्यादा नहीं कह सकता . बस इतना कह सकता हूं कि दलित आंदोलन के लिए तैयार हैं और वो खुद अपनी बात रखना चाहते हैं और मैं उन्हें मदद करता हूं. मैं यहां ये भी कहना चाहता हूं कि इस देश में बीजेपी या कांग्रेस या बसपा में कोई भी राजनीतिक दल दलितों का ख्याल नहीं रखते. दलित इनसे बेहद नाराज़ हैं. नए नेताओं ने अब दलित की आवाज़ उठाने के लिए कमर कस ली है. ये अब मायावती का क्षेत्र नहीं है . बेहतर होगा कि वो हमारे रास्ते से अलग हो जाए.
सवाल: क्या आप 14 अप्रैल या उसके बाद भी किसी विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में दलितों में भारी असुरक्षा का माहौल है. मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दलितों के भंयकर गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. हमने कुछ मांगें रखी है और अगर 15 अगस्त तक प्रधानमंत्री मोदी इस पर अमल नहीं करते हैं तो देश भर में हम भारत बंद से भी बड़ा आंदोलन करेंगे.
सवाल: तो आपकी मांग क्या है?
हम चाहते हैं कि सरकार दलितों के खिलाफ सभी केस को वापस ले लें. ये ऐसे मामले हैं जो उन पर विरोध प्रदर्शन के दौरान लगाया गया था. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में हजारों दलितों को झूठे मामलों में फंसाया गया है. इन मामलों को वापस लेने की जरूरत है.
दूसरा हमने सरकार से अनुरोध किया है कि वो 15 अगस्त को या इससे पहले आदिवासियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर सभी लंबित मुद्दों को हल करें. सरकार को निजी क्षेत्र में आरक्षण, न्यायपालिका में आरक्षण, सेना में शामिल होने, पुलिस में अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.