मायावती-कांग्रेस की नजदीकी अखिलेश को नहीं आ रही रास, इसका महागठबंधन पर पड़ेगा असर ?
आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष में अभी से दरार पड़ती नजर आ रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में समाजवादी पार्टी का कोई नुमाइंदा नहीं पहुंचा, जिसके बाद से सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है?
क्या समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की करीबी रास नहीं आ रही है? सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गठबंधन के तहत सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव में हैं.
बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में करारी हार के लिए समाजवादी पार्टी कांग्रेस को जिम्मेदार मानती है. लिहाजा समाजवादी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं हैं.
वहीं, उपचुनावों में मिली जीत के बाद से समाजवादी पार्टी किसी भी सूरत में बीएसपी का साथ नहीं छोड़ना चाहती है. अखिलेश यादव तो यहां तक ऐलान कर चुके हैं कि वो बसपा के साथ गठबंधन के लिए जूनियर पार्टनर बनने और कुछ सीटें छोड़ने तक को तैयार हैं.
अखिलेश ने इफ्तार पार्टी में जाने का किया था ऐलान
बुधवार को अखिलेश यादव ने जोर-शोर से ऐलान किया था कि समाजवादी पार्टी राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में जरूर शामिल होगी, लेकिन शाम को जब इफ्तार पार्टी हुई तो उसमें समाजवादी पार्टी का कोई नुमाइंदा शामिल नहीं हुआ. अमूमन रामगोपाल यादव ऐसे सभी आयोजनों में शिरकत जरूर करते हैं, लेकिन राहुल की इफ्तार पार्टी में वो भी नजर नहीं आए.
मायावती के साथ गठबंधन को लेकर दबाव में हैं अखिलेश
बताया जा रहा है कि इन दिनों एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा के साथ गठबंधन को लेकर खासे दबाव में हैं. हालांकि गुरुवार को कन्नौज से आए कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अखिलेश ने साफ कहा कि गठबंधन होगा और जल्द होगा.
इफ्तार पार्टी में गैर-मौजूदगी से शुरू हुआ कयासों का दौर
बुधवार को राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में समाजवादी पार्टी के किसी नुमाइंदे के नहीं पहुंचने से कयासों का दौर शुरू हो गया. जिस तरीके से मायावती और कांग्रेस लगातार नजदीक आ रहे हैं, वो शायद अखिलेश यादव को रास नहीं आ रही है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में जिस तरीके से बसपा और कांग्रेस के नेताओं की बॉडी लैंग्वेज व केमिस्ट्री दिखी और फिर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीएसपी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की गंभीर चर्चा हुए, उसको देखते हुए समाजवादी पार्टी खुद को किनारे महसूस करने लगी है. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं चाहती सपा
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती और उसके नेता खुलकर इस बात का ऐलान भी कर चुके हैं. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनावों में कांग्रेस के चुनाव लड़ने के बावजूद समाजवादी पार्टी ने न सिर्फ सीटें जीती, बल्कि कांग्रेस की जमानत भी जब्त हो गई. ऐसे में सपा अब यूपी में कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती है.
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वहीं, दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी लगातार कांग्रेस से करीबी बढ़ाती दिख रही है और यही समाजवादी पार्टी के लिए फिलहाल सबसे बड़ा सरदर्द है.
पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा का नहीं खुला था खाता
यूपी में कुल 80 संसदीय सीटें है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी गठबंधन ने 73 सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा को पांच और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी, जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुला था. इसी तरह से पिछले साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव में सपा ने बसपा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही थी. हालांकि इन चुनावों में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी.
इसके बाद फूलपुर-गोरखपुर उपचुनाव में सपा को बसपा ने समर्थन दिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी को करारी हार मिली. इसके बाद से दोनों पार्टियां के बीच रिश्ते मजबूत हुए हैं. यही वजह है कि अखिलेश यादव बसपा का साथ किसी भी सूरत में छोड़ने को तैयार नहीं है.
मायावती लगातार बनाए हुए हैं दबाव
कैराना उपचुनाव के पहले मायावती ने सम्मानजनक सीटों के नहीं मिलने पर गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया था और फिर जिस तरीके से अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में जूनियर पार्टनर बनने पर अपनी सहमति जताई थी, उसके बाद से लगने लगा था कि बीएसपी से गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव काफी आतुर हैं, लेकिन मायावती फिलहाल अपने सधे चालों से अखिलेश को लगातार दबाव में रख रही हैं.
कम सीटों का ऐलान सपा कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतरा
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा बहुत तेज है कि सपा और बसपा गठबंधन के बीच सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है. मायावती 40 से 44 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं, जबकि अखिलेश यादव बराबर या 2-4 कम सीटों पर राजी हो सकते हैं, लेकिन समस्या सिर्फ सीट तक ही नहीं है.
कांग्रेस के साथ भी जा सकती हैं मायावती
वहीं, कांग्रेस फिलहाल सधे चालों से उत्तर प्रदेश में मायावती के साथ अपना भविष्य देख रही है. ऐसे में समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी चिंता यह है कि मायावती कहीं ज्यादा सीटों के नाम पर कांग्रेस के साथ न चली जाएं. इसी को भांपते हुए अखिलेश यादव ने चार दिन पहले मैनपुरी में जूनियर पार्टनर बनने तक पर अपनी सहमति दे दी थी.
एक तरफ बंगला विवाद में अखिलेश यादव की साफ-सुथरी इमेज को धक्का लगा है, तो दूसरी ओर मायावती और कांग्रेस की नजदीकियां भी अखिलेश यादव के लिए अच्छी खबर नहीं है. यही वजह है कि अपने तमाम पत्ते पहले खोलने के बाद भी अखिलेश यादव पर राजनीतिक दबाव साफ दिखाई दे रहा है.