फेसबुक पर 6500 शब्दों की अपनी पोस्ट में उन्होंने ग्लोबलाइजेशन और सोशल मीडिया के जरिए दुनियाभर के लोगों के एक मंच पर आने के बारे में विस्तार से लिखा। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया के चलते अमेरिका में होने वाले कार्यक्रमों पर भारत में भी मजाक बनता है। जकरबर्ग ने लिखा, ”वोटिंग के बाद सबसे बड़ा मौका यह है कि लोगों को उनके जुड़े मुद्दों के साथ जोड़े रखा जाए ताकि लोग केवल मत डालने तक ही ना सिमट जाएं। हम जनता और चुने गए नेताओं के बीच संवाद और जिम्मेदारी कायम कर सकते हैं। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों से बैठकों और सूचनाओं की जानकारी फेसबुक पर शेयर करने को कहा है जिससे कि वे जनता से सीधे फीडबैक ले सकें।”
जकरबर्ग ने केन्या का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर गांव के गांव वॉट्सएप ग्रुप पर हैं और उनके जनप्रतिनिधि भी इसमें शामिल हैं। उन्होंने लिखा कि फेसबुक पर सबसे ज्यादा फॉलो किया जाने वाला और लोगों से जुड़ा रहने वाला व्यक्ति चुनाव में आसानी से जीत दर्ज करता है। इसके लिए उन्होंने भारत और इंडोनेशिया का जिक्र किया। उनकी पोस्ट में लिखा है, ”जैसे कि 1960 में टीवी लोगों से जुड़ने का साधन बना था, 21वीं सदी में उसकी जगह अब सोशल मीडिया ने ले ली है।” गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया था। इसका उन्हें चुनावों में काफी फायदा भी मिला था।
जकरबर्ग ने कहा कि सोशल मीडिया के चलते पूरी दुनिया एक मंच पर आ रही है। उन्होंने लिखा, ”जब हमने शुरू किया यह विचार विवादित नहीं था। अभी भी, पूरी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो ग्लोबलाइजेशन से पीछे छूट गए हैं और वैश्विक संपर्क से दूर रह गए हैं।” हालांकि मार्क जकरबर्ग ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन ध्रुवीकरण के बारे में लिखा, ”पिछले साल दो बातों पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई, उनमें नजरियों की भिन्नता और सूचना की सटीकता शामिल है। मुझे इनके बारे में चिंता है और हमने विस्तार से इसका अध्ययन किया है लेकिन मैं इस बात से भी चिंतित हूं कि कई ऐसे ताकतवर प्रभाव है जिनसे सनसनी और ध्रुवीकरण होता है, इन पर हमें गंभीरता से काम करना होगा।”