अद्धयात्म

मार्च में बना ऐसा महा संयोग, एक महीने में पड़ रहीं है तीन एकादशी

Ekadashi 2019: हिंदू धर्म में एकादशी (Ekadashi) के व्रत का बड़ा महत्‍व है. ऐसी मान्‍यता है कि श्री हरि के इस व्रत को रखने से उनकी कृपा प्राप्‍त होती है और सब दुख दूर हो जाते हैं. मार्च महीने में तीन एकदशी तिथियां पड़ रही हैं, जिसमें सबसे पहले दो मार्च को विजया एकादशी पड़ रही है, जबकि 17 मार्च को आमलकी एकादशी होगी. इसके बाद महीने के आखिर में यानी 31 मार्च को पापमोचिनी एकादशी पड़ रही है.

दो मार्च, विजया एकादशी
पद्म पुराण के एकादशी व्रत की विधि और कथाओं का वर्णन किया गया है. इस पुराण में बताया गया है कि फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है इसका नाम विजया एकादशी है. इस एकादशी का व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि यह व्रत एक दिन के लिए नहीं बल्कि दो दिन यानी 48 घंटों के लिए रखा जाता है. एकादशी व्रत के नियमानुसार, व्रत के एक दिन पहले व्रती केवल एक समय ही भोजन करते हैं और एकादशी के दिन कठोर उपवास करते हैं. एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है. एकादशी व्रत में किसी भी तरह के अन्न का सेवन नहीं किया जाता. इस व्रत को व्रती अपने मन की शक्ति और शरीर की सामर्थ्य के अनुसार, निर्जला, केवल पानी के साथ, केवल फलों के साथ या एक समय सात्विक भोजन के साथ इस उपवास को रख सकते हैं. सभी एकादशी उपवास एक ही तरीके से ही रखने चाहिए. अलग-अलग तरह से उपवास रखना ठीक नहीं माना जाता.

17 मार्च, आमलकी एकादशी
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के रूप में जाना जाता है. आमलकी एकादशी महाशिवरात्रि और होली के मध्य में आती है. अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान में यह 17 मार्च को पड़ रही है. एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है.

31 मार्च, पापमोचिनी एकादशी
जो एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के मध्य में आती है उसे पापमोचिनी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं. यह सम्वत साल की आखिरी एकादशी है और युगादी से पहले पड़ती हैं. उत्तर भारतीय पूर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र माह में कृष्ण पक्ष के दौरान और दक्षिण भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष के दौरान पापमोचिनी एकादशी पड़ती है. पूर्णिमांत पञ्चाङ्ग और अमांत पञ्चाङ्ग का यह भेद नाम-मात्र का है और दोनों पञ्चाङ्गों में पापमोचिनी एकादशी का व्रत एक ही दिन पड़ता है. अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान में यह 31 मार्च को पड़ रही है.

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