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मालदीव में चीन को लगा जोर का झटका, डूब सकते हैं अरबों

मालदीव में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोली की पार्टी की संसदीय चुनाव में बड़ी जीत भारत के लिए खुशखबरी और चीन के लिए एक बड़ा झटका है. राष्ट्रपति इब्राहिम सोली की जीत की खबर आने के बाद भारत ने बिना देर किए नतीजों का स्वागत किया.

सोली की जीत से भारत की दक्षिणी पड़ोसी देश में रणनीतिक पकड़ मजबूत होगी जहां चीन अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश में लगा हुआ है. राष्ट्रपति सोली की मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) ने संसद में 87 सीटों में से 67 पर जीत दर्ज की है. इस ऐतिहासिक जीत के बाद मालदीव के राष्ट्रपति सोली पूर्ववर्ती सरकार की चीन से लिए कर्ज की जांच करने में मजबूती से आगे बढ़ सकेंगे.

यमीन की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती सरकार में भारत की मालदीव से दूरियां बढ़ रही थीं. सत्तारूढ़ यमीन ने बीजिंग के ‘बेल्ट ऐंड रोड’ के तहत निवेश का खुले दिल से स्वागत किया था. पिछले साल चुनाव से पहले श्रीलंका में निर्वासित मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने दावा किया था कि मालदीव का 80 फीसदी विदेशी कर्ज चीन से लिया गया है.

चुनाव से पहले सोली की पार्टी ने मतदाताओं से वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह चीन से लिए कर्ज की जांच कराएंगे. पार्टी ने चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि चीन से लिया कर्ज 3 अरब डॉलर तक हो सकता है. मालदीव में चीन के भारी-भरकम निवेश और बेल्ट ऐंड रोड के विस्तार से भारत की भी परेशानियां बढ़ रही थीं.

इस संसदीय जीत से MDP की स्थिति मजबूत हुई है और भारत-मालदीव रणनीतिक साझेदारी को भी इससे लाभ मिलेगा. पिछले साल सोली के राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और मालदीव के रक्षा साझेदारी भी मजबूत हुई है.

सोली ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच चीन के साथ पूर्व सरकार के समझौतों की जांच कराने का वादा किया था. रविवार को एक रैली को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति सोली ने भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की बात दोहराई. सोली ने कहा, “यह मौका है कि सभी नागरिक एकजुट होकर काम करें. हम बिना किसी भेदभाव के लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए तैयार हैं.” उन्होंने कहा कि नई संसद के समर्थन से भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की जाएगी और इसके लिए अलग से कमीशन बनाया जाएगा.

भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित मालदीव पारंपरिक तौर पर नई दिल्ली के प्रभाव क्षेत्र में ही रहा है. हालांकि, मालदीव का प्रसार कई समुद्री मार्गों तक भी है जो चीन के लिए काफी अहमियत रखते हैं.

आलोचक मालदीव को चीन की कर्ज के जाल में फंसाने की कूटनीति का शिकार होने से बचने की सलाह भी दे रहे हैं. ‘कर्ज कूटनीति’ के तहत चीन कई देशों को पहले ही अपने कर्ज के जाल में फंसा चुका है और कर्ज ना चुका पाने की स्थिति में उन देशों की अहम पूंजी पर कब्जा कर लेता है. पिछले कुछ समय में पश्चिमी समेत कई भारतीय कूटनीतिज्ञों ने भी मालदीव को चीन से देश की संप्रभुता को खतरा होने के प्रति आगाह किया है.

मालदीव में भारत और चीन के बीच वर्चस्व की लड़ाई रही है. चीन ने ‘बेल्ट ऐंड रोड योजना’ के तहत अब्दुल्ला यमीन के सत्ता में रहते कई लाखों डॉलर्स का निवेश किया है लेकिन सोली की जीत के बाद चीन के निवेश पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोली चीन की मंशा को लेकर हमेशा से आशंकित रहे हैं. यही वजह है कि मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत को भारत अपने पड़ोस में बड़ी ताकत के तौर पर देख रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले साल सोली के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे. इसके बाद मालदीव के नए राष्ट्रपति ने एक महीने बाद भारत का दौरा किया था. पिछले महीने आचार संहिता लागू होने के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मालदीव पहुंची थीं और कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए. नई दिल्ली के नई सत्तारूढ़ सरकार के साथ सकारात्मक रिश्ते रहे हैं और नशीद-सोली दोनों ही चीन की नीतियों के आलोचक रहे हैं. भारत सोली के सत्ता में आने के बाद कूटनीतिक लाभ उठाने की स्थिति में आ जाएगा.

हालांकि, विश्लषकों का एक धड़ा ऐसा भी है जो मानता है कि मालदीव में सत्ता परिवर्तन से चीनी निवेश पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है. नई दिल्ली स्थित ब्रुकिंग्स इंडिया में विदेश नीति के विशेषज्ञ कॉन्सटैन्टिनो जेवियर ने न्यू यॉर्क टाइम्स से कहा, “सस्ते और सुलभ धन का लालच मालदीव और चीन की दोस्ती को गहरा बना सकता है, चाहे सार्वजनिक तौर पर मालदीव के नेता कुछ भी कहें.”

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