मिला ही क्या, जो लौटा दें
इन दिनों देश में लौटाने का चलन चल पड़ा है। कोई पुरस्कार लौटा रहा है तो कोई सम्मान। कारण सभी दे रहे हैं, लेकिन सही तर्क और तथ्य कोई नहीं दे पा रहा। बुद्धिजीवियों के बीच आजकल इसी बात को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है। हर कोई अपनी-अपनी तार्किक शक्ति से इसका विश्लेषण कर रहा है। अब चूंकि यह बहस पढ़े-लिखे लोगों को लेकर है इसलिए यह बहस चौराहों और सैलूनों में नहीं हो रही। पर पुरस्कार और सम्मान लौटाने से एक लाभ तो अवश्य हुआ। कम्प्यूटर और मोबाइल को ही दुनिया समझने वाली नयी पीढ़ी को यह पता चल गया कि ऐसा भी कोई पुरस्कार-सम्मान मिलता है और अब तक अमुक व्यक्ति को मिला है। अब यह बहस मीडिया में इतनी जोरशोर से चल रही है मानो यह देश की सबसे बड़ी समस्या हो और बस अब देश इसके कारण टूटने को हो। इस बहस में दूसरों को शामिल कर टीआरपी बढ़ाने वालों के बीच जब आपस में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी तो काफी लम्बी चली। हर कोई अपनी विद्वता का परिचय दे रहा था। बहस को काफी देर तक सुनने बाद एक वरिष्ठ मीडियाकर्मी बोले, यहां मिला ही क्या है, जो लौटा दें, बिना मतलब बहस हो रही है।