गुरुवार को हुए 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को केवल 3 सीटें हासिल हुई हैं। भाजपा के लिए चिंता का विषय है कि ना केवल उसकी सीटें बल्कि उसका वोट शेयर भी घटता जा रहा है। साल 2014 के बाद उपचुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो बीजेपी जीती हुई सीटें ही नहीं हार रही है, बल्कि उसका वोट शेयर भी घट रहा है।
साल 2014 में भाजपा को कैराना से 50.6 प्रतिशत वोट मिले थे। मगर वह इसे दोहरा पाने में कामयाब नहीं रही। इससे पहले भी गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर पार्टी के खिलाफ बनी विपक्षी एकता की वजह से भाजपा के वोट कम हुए थे और वह 46.5 प्रतिशत वोटों पर सिमटकर रह गई थी। भाजपा के वोट शेयर में यह कमी कैसे आई यह पता लगाना काफी मुश्किल है।
महाराष्ट्र की दो सीटों पालघर और भंडारा-गोंदिया में हुए चुनावों में भाजपा के वोट शेयर में 9 से 23 प्रतिशत की कमी आई है। पार्टी के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 27 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं जिनमें से 24 पर भाजपा सीधे तौर पर लड़ी थी लेकिन इसके बावजूद केवल 5 सीटें ही जीत पाई। बाकी की सीटें विपक्ष के खाते में गई हैं।
2014 के दौरान भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ा। हालांकि अब दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की विरोधी हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2014 लोकसभा चुनाव के मुकाबले गोंदिया-भंडारा में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की वोट शेयरिंग 8 प्रतिशत बढ़ गई है। पालघर में इस गठबंधन ने अपनी मौजूदगी दिखाई है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा, शिवसेना और बहुजन आधाड़ी दल (बीवीए) के बीच था।
बाकी बचे हुए लोकसभा उपचुनाव की बात करें तो नगालैंड में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है। यहां भाजपा और एनडीपीपी पीडीए के साथ गठबंधन में हैं। वहीं कांग्रेस ने एनपीएफ उम्मीदवार को समर्थन दिया था। यदि भाजपा के वोट शेयर का विश्लेषण किया जाए तो 10 उपचुनाव के दौरान भाजपा का वोट शेयर घटा है। हालांकि महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। यहां पार्टी को दूसरा स्थान मिला है।
हालांकि यूपी के नूरपुर विधानसभा सीट पर हार के बावजूद बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा। नूरपुर में पिछले चुनाव में बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे और इस बार 47.2 फीसदी।