मुझे खुद नोट बदलवाने के लिए US से भारत आना पड़ा था: रघुराम राजन
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने नोटबंदी से जुड़ा एक दिलचस्प बयान दिया है. उन्होंने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम की कोई जानकारी नहीं थी और यही कारण है कि उन्हें तो खुद नोट बदलवाने के लिए अमेरिका से भारत वापस आना पड़ा था.
अपनी किताब के सिलसिले में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वे कभी भी नोटबंदी के पक्ष में नहीं रहे क्योंकि उनका मानना था कि नोटबंदी की तात्कालिक लागत इसके दीर्घकालिक फायदों पर भारी पड़ेगी.
गौरतलब है कि गवर्नर पद पर राजन का तीन साल का कार्यकाल चार सितंबर 2016 को पूरा हो गया. सरकार ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की जिसके तहत 500 व 1000 रुपये के मौजूदा नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया. राजन ने कहा कि जीडीपी वृद्धि को बल देने के लिए भारत को तीन क्षेत्रों बुनियादी ढांचा, बिजली व निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
दोबारा गवर्नर बनना चाहते हैं राजन
इससे पहले इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में रघुराम राजन ने इस बात पर जोर दिया कि सिर्फ ‘मेक इन इंडिया’ नहीं ‘मेक फॉर इंडिया’ भी हो. साथ ही उन्होंने कहा कि वह दोबारा आरबीआई गर्वनर बनने की भी मंशा रखते हैं.
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नोटबंदी का जीडीपी पर पड़ा प्रभाव
राजन ने इंटरव्यू में कहा कि नोटबंदी की वजह से जीडीपी में 1-2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. आरबीआई को नोटबंदी का भार झेलना पड़ा. नए नोट प्रिंट करने का भार इस योजनाओं के फायदे पर भारी पड़ा. उन्होंने कहा कि अगर जेपी मॉर्गन जैसी संस्थाओं के आंकलन पर भरोसा करें तो नोटबंदी की वजह से 1-2 प्रतिशत जीडीपी के बराबर नुकसान हुआ है, जो कि लगभग 2 लाख करोड़ के आसपास है. वहीं फायदे की बात करें तो टैक्स से सिर्फ लगभग 10 हजार करोड़ की आमदनी हुई.
वहीं उन्होंने कहा आरबीआई के पास नोट प्रिंट करने का अधिकार इसलिए है क्योंकि अगर सरकार खुद अपने पैसे प्रिंट करने लगे तो भारत भी जिंबाब्वे बन सकता है. यही वजह है कि आरबीआई जैसी एक स्वतंत्र संस्था की जरूरत पड़ती है.