मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सामने झुक गए थे पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी: आरिफ मोहम्मद
मुसलमानों और कांग्रेस के बीच हुई थी डील
नई दिल्ली (एजेंसी)। देश के सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद आपसी सहमति से हल करने के सुझाव के बीच वरिष्ठ नेता आरिफ मोहम्मद ने कहा कि 1986 में बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाना तत्कालीन राजीव गांधी सरकार का संतुलनकारी कदम था। क्योंकि शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने से हिंदू-मुस्लिम संतुलन बिगड़ गया था।इसी की परिणिति अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में हुई। यह सब कुछ मुस्लिम नेताओं और कांग्रेस सरकार के बीच डील के तहत हुआ था।
खान उस वक्त के बड़े घटनाक्रमों व अग्रणी नेताओं में शुमार रहे हैं।खान के अनुसार,शाहबानो केस के वक्त राजीव गांधी सरकार अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मांग के आगे झुक गई थी और उसने तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलट दिया था। इसीलिए हिंदुओं की मांग के आगे भी उसे झुकना पड़ा।हिंदुओं को संतुष्ट करने के लिए राजीव सरकार ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाए थे। शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद संसद से कानून बनाकर उसे पलटने और बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का फैसला मात्र दो हफ्ते में किया गया।
खान ने बताया कि शाहबानों केस में तुष्टीकरण के आरोप झेल रही राजीव सरकार दूसरे ऐसे बडे मुद्दे की खोज में थी। तभी उसके हाथ अयोध्या मसला आ गया। फैजाबाद की जिला अदालत में स्थानीय कलेक्टर व एसपी ने पेश होकर कहा कि विवादित ढांचे के मुख्य द्वार का ताला खोला जाता है तो कानून-व्यवस्था की कोई समस्या पैदा नहीं होगी। इसके बाद जिला कोर्ट के आदेश पर फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद परिसर के ताले खोल दिए गए। आरिफ मोहम्मद खान ने ’टेक्स्ट एंड कांटेक्स्ट-कुरान एंड कंटेम्पररी चैलेंजेस’ किताब लिखी है। उन्होंने शाहबानो मामले में मुस्लिम कठमुल्लों के आगे सरकार के समर्पण के कारण 1985 में राजीव गांधी से रिश्ते तोड़ लिए थे।एक एजेंसी को दिए इंटरव्यू में खान ने कहा कि ताले खोलने का मतलब दूसरे अर्थों में यह था कि विवादित ढांचे को मंदिर के रूप में मान्यता देना। इसके परिणामस्वरूप वहां भव्य मंदिर बनाने और परिसर के अंदर पहले से चल रहे कार्यक्रमों को मजबूती मिली।इसी कारण तत्कालीन सरकार को तत्कालीन गृहमंत्री की देखरेख में वहां सावधानीपूर्वक शिलान्यास की इजाजत देने पर सहमत होना पड़ा।
1986 में ताले खुलवाने के पीछे की सियासत का खुलासा करते हुए खान ने कहा कि अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ’मिल्ली तशक्खुश’ को खतरा बताया था। बोर्ड का कहना था कि यह मुस्लिम समुदाय की विशिष्ट पहचान है। फैसले के खिलाफ आंदोलनों में वह बहुत आक्रामक व धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल करता था। इस पर 15 जनवरी 1986 को सरकार का फैसला पलटना गंभीर झटका साबित हुआ। इसके मात्र एक सप्ताह में सरकार को शाहबानो केस से ध्यान हटाने के लिए कुछ करने की जरूरत महसूस हुई।
पूरे मामले में राजीव गांधी की भूमिका का जिक्र करते हुए खान ने कहा कि ताले खोलने के बाद वह राजीव से मिले थे।उन्होंने कहा कि ताले खोलने से पहले मुस्लिम नेताओं को सूचित किया गया था।वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं जैसे एनडी तिवारी,बूटा सिंह,अर्जुन सिंह,पीवी नरसिंहराव की भूमिका पर भी खान ने बातें की।नरसिंह राव के प्रधानमंत्री काल में ही हिंदू कट्टरपंथियों ने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाई थी।खान का कहना है कि इन नेताओं का मानना है कि सरकार समाज सुधारक की भूमिका नहीं अपना सकती, तब भी जब मामला अल्पसंख्यक समुदाय का हो। इन नेताओं की आलोचना किए बिना खान ने कहा कि एक दृष्टि से उनकी रणनीति ठीक थी, क्योंकि वे कोई चुनावी जोखिम नहीं लेना चाहते थे।