मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना अब सवालों के घेरे में, किसानों को नहीं मिल पा रहा लाभ
मिट्टी की जांच करने वाली सरकार की सबसे बड़ी स्वायल हेल्थ कार्ड योजना सवालों के घेरे में है। प्राकृतिक संसाधन (मिट्टी व जल) विशेषज्ञों की नजर में यह योजना अपने उद्देश्य और किसानों की जरूरतों को पूरा करने में बहुत सफल नहीं है। प्रक्रियागत खामियों की वजह से स्वायल हेल्थ कार्ड महज नुस्खा वाला पर्चा बनकर रह गया है। स्वायल कंजरवेशन सोसाइटी आफ इंडिया और वर्ल्ड एसोसिएशन आफ स्वायल एंड वाटर कंजरवेशन की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिट्टी की बिगड़ती दशा को लेकर लंबी चर्चा हुई।
इसी दौरान राष्ट्रीय स्तर पर चल रही स्वायल हेल्थ कार्ड के मसले पर जागरण ने प्रमुख विशेषज्ञों से बातचीत की। स्वायल साइंस के विशेषज्ञ प्रो.टीवीएस राजपूत ने कहा ‘यह सिर्फ मिट्टी की भौतिक दशा बताने वाला पर्चा भर है। इसमें सामान्य सूचनाएं दर्ज की जा रही हैं। जबकि किसानों से पूछकर अगली फसल के हिसाब से फर्टिलाइजर का ब्यौरा दिया जाना चाहिए, जो उसके काम आ सकती है।’
स्वायल कंजरवेशन सोसाइटी आफ इंडिया के प्रेसीडेंट डॉक्टर सूरजभान ने तंज कसते हुए कहा ‘इसमें है क्या, जनरल सूचना से क्या होगा। किसानों को कार्ड के नुस्खे के मायने कौन समझाएगा।’ डाक्टर भान का कहना है कि पूरे देश के किसानों को एक जैसी सूचनाएं देने का कोई औचित्य नहीं है। सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी डाक्टर जगतवीर सिंह ने कहा ‘यह सिर्फ दिखावे का स्वायल हेल्थ कार्ड हो गया है। किसानों को दिये जाने वाले कार्ड पर पूरी जानकारी दी जानी चाहिए। देश के ज्यादातर राज्यों में कृषि प्रसार प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। इतनी खराब दशा में स्वायल हेल्थ कार्ड योजना भी उसकी भेंट चढ़ गया है।’
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रमुख आयोजक डॉक्टर संजय अरोड़ा ने कहा ‘इतनी बड़ी योजना को सफल बनाने के लिए बुनियादी सुविधाओं का मजबूत होना जरूरी है। देश में स्वायल (मिट्टी) की जांच के लिए जितनी प्रयोगशालाओं की जरूरत है, उसके मुकाबले बहुत कम है। जो प्रयोगशालाएं हैं उनमें से भी ज्यादातर में सूक्ष्म तत्वों की जांच की सुविधा नहीं है। जबकि मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों की भारी कमी है। इसकी भरपाई की बहुत जरूरत है, लेकिन इन तत्वों के बारे में स्वायल हेल्थ कार्ड में कोई सूचना नहीं है।’ योजना की प्रक्रियागत त्रुटियों में सुधार की जरूरत है।