नागपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संघ के मुखपत्र पान्चजन्य और ऑर्गनाइजर को दिए एक इंटरव्यू में संघ के प्रतिनिधि सभा में 4 की बजाय 6 सरकार्यवाह चुनने, संघ के बढ़ते दायरे, संघ के राजनीतिक-सामाजिक रुख, सोशल मीडिया की प्रवृत्ति पर काफी सारी बातें कीं। उन्होंने कहा कि तकनीकी चीजें उपयोगी हैं और उनका उपयोग भी करना चाहिए लेकिन मर्यादा में रहकर।
उन्होंने कहा कि संगठन के स्तर पर सुविधा के लिए एक सीमा तक तकनीकी साधनों का उपयोग किया जा सकता है, इन्हें प्रयोग करते हुए इनकी सीमाओं और नकारात्मक दुष्प्रभावों को समझना जरूरी है, यह आपको आत्मकेंद्रित और अहंकारी बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया एक हद तक ठीक है, वह राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों के लिए जरूरी है, उनके पास होता है, क्योंकि वहां उनकी अधिक उपयोगिता होती है, लेकिन उनको भी उपयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है। कभी-कभी लोग जल्दबाजी में कुछ भी पोस्ट कर देते हैं, जिसे कभी-कभी मजबूरन डिलीट भी करना पड़ता है, इसलिए इसका उपयोग करें पर इसके आदी न बनें। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया का स्वरूप कुछ ऐसा हो गया है कि बस ‘मैं और मेरा’! यानी ‘मैं’ हर बात पर मत व्यक्त करता हूं, ‘मैं’ एक समूह का एक अंग हूं किंतु समूह के लिए रुकने की भी आवश्यकता नहीं है! फट से ‘मैं’ सोशल मीडिया में पोस्ट भेज देता हूं। कभी-कभी उसके कारण कई बार हटाना पड़ता है क्योंकि अपने निजी विचार के आगे वो ये भी नहीं सोचता कि वो एक समूह का बस हिस्सा है, वह इस बारे में विचार नहीं करते कि दूसरे क्या सोचते हैं।
हालांकि, सरसंघचालक सोशल मीडिया पर काफी दिलचस्प विचार रखते हैं लेकिन RSS सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव है, पिछले कुछ वक्त में आरएसएस ने खुद का यहां जोर-शोर से प्रचार किया है और जमीनी स्तर के साथ-साथ वर्चुअल दुनिया में भी अपने लिए स्पेस बनाया है। मोहन भागवत ने सोशल मीडिया को लेकर काफी दिलचस्प बातें कही हैं, उनका कहना है कि सोशल मीडिया अहम पर केंद्रित है, यहां बस मैं और मेरा की बात होती है, सोशल मीडिया आत्मकेंद्रिता को बढ़ाता है। फेसबुक तो बिल्कुल है ही ‘फेस’और यह उसका दुष्परिणाम है, संघ का फेसबुक पेज है, मेरा नहीं है, संघ का ट्विटर हैंडल है, मेरा नहीं है और न कभी होगा।