दस्तक-विशेषसंपादकीय

मेरी कलम से…

सम्पादकीय अप्रैल 2017

उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के रूप में एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला है जिसकी पहचान गोरखपुर के गोरक्षा पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में भी जानी जाती है। हठयोग के लिए प्रसिद्ध पीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही अपने गंभीर प्रयासों और ईमानदार सुशासन की झलक दे दी है और मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे को आगे बढ़ाते हुए, ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ वाले मोदी के वक्तव्य को चरितार्थ करने के संकेत भी दे डाले हैं। उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक अमले और राजनैतिक गलियारे में व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक के लिए उन्होंने सधी हुई शुुरुआत की, जो उत्तर प्रदेश के विकास और स्वच्छ प्रशासन के लिए जरूरी है। उत्तर प्रदेश को पहला ऐसा संत मुख्यमंत्री मिला है जो 18 से 20 घंटे प्रतिदिन जनता की सेवा में समर्पित रहेगा। वैसे भी गृहस्थ और संत के बीच यही अंतर होता है, गृहस्थ तो अपना सारा कार्य अपने परिवार को केन्द्र में रखकरकरता है, किन्तु संत का तो काम जन-जन की सेवा ही होता है। वैसे राजनीति जन की सेवा के लिए नेताओं को सत्तासीन करने का ही माध्यम है। सत्ता में आने के बाद कुछ लोग सत्ता छोड़ना ही नहीं चाहते और उसे साधने के लिए हरसंभव कोशिश में लग जाते हैं। जिसकी वजह से सत्ता में सदाचार और लोक कल्याण की भावना मंद पड़ जाती है और नेताओं को अपने हित ही सर्वोपरि लगने लगते हैं। लेकिन वर्तमान समय में एक संत के पदासीन होने से लोगों में नयी आशा बंधी है। योगी आदित्यनाथ के बारे में जो लोग जानते हैं उन सभी का मानना है कि उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर तो कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता। रही बात हार्ड कोर हिन्दुत्व की तो लम्बे समय से चली आ रही छद्म सेकुलर राजनीति के नाम पर लोगों को बांटने और धर्म के नाम पर भेद पैदा कर अपने हित साधने के लिए जिन नेताओं ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में लम्बे समय तक जाति के आधार पर लोगों को बरगलाया है, लगता है अब उनके दिन लद गये क्योंकि जिस तरह से इस चुनाव में जातियों के बंधन टूटे हैं, वह इससे पहले नहीं देखा गया। अगर योगी अपने कार्यकाल में अपनी ईमानदार छवि और समाज को कुछ नया देने की प्रवृत्ति से शासन चलाने में सफल होते हैं, तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में जातीय आधारित क्षेत्रीय दलों का खात्मा हो जाएगा। बस इसके लिए योगी आदित्यनाथ को अपनी कथनी और करनी में हठ योग का संतुलन बैठाना पड़ेगा। उनके लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव हैं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी उन्हें सौंपकर जो अपना विश्वास जताया है, उससे उन पर 2019 में भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में पूर्व की भांति अधिकतम सीटें दिलाने का दबाव रहेगा। योगी आदित्यनाथ के पास कुछ कर दिखाने के लिए पूरे पांच साल नहीं, पहले दो साल ही बहुत अहम होंगे। अब देखना यह होगा कि किसानों की कर्जामाफी जैसे मोदी के बड़े वायदों को वे अमली जामा कैसे पहनाते हैं। वैसे उन्होंने गन्ना किसानों का बकाया एक निश्चित अवधि में भुगतान करने के लिए चीनी मिलों को सख्त संदेश दिया है, जिसको किसानों ने सराहा है।
योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन नये विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित पत्रकार, लेखक, चिंतक, समाजसेवी और भारतीय दर्शन के गूढ़ जानकार हैं। उन्हें विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य के रूप में लम्बा अनुभव भी प्राप्त है। विधायी संस्था की खूबियों और उनमें आयी कमजोरियों को वे बखूबी समझते हैं। जिससे आशा की जा रही है कि नयी विधानसभा के गठन के बाद नये सदस्यों को विधानसभा में विधायी प्रणाली और परम्पराओं से अवगत कराने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए सक्षम मार्गदर्शक मिल गया है। अक्सर राजनीतिक लोगों को ऐसा कहते सुना जाता है कि विधानसभा और लोकसभा का अध्यक्ष ऐसे व्यक्ति को चुना जाता है जो सभा में सदस्यों को बोलने और न बोलने की हिदायत देने तक ही सीमित रहते हैं और स्वयं अधिकतम चुप ही रहते हैं। लेकिन इससे उलट अब उत्तर प्रदेश विधानसभा को भारतीय दर्शन और राजनीति की गहरी समझ रखने वाला तथा बोलने वाला स्पीकर मिल गया है। वे ज्ञानी होने के साथ-साथ अच्छे वक्ता भी हैं। यह हर्ष का विषय है कि वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश को योग दर्शन में सिद्ध मुख्यमंत्री और वेद और उपनिषदों के ज्ञाता अध्यक्ष मिले हैं, जिससे सदन में विधायी परम्पराओं को नया आयाम मिलेगा। इन सबके साथ प्रदेश की राजनीति में आये बदलाव से लोगों में अपार आशाओं का बीज भी स्फुटित हुआ है। नये नेतृत्व को इस पर खरा उतरने के लिए योग दर्शन के साथ-साथ राज दर्शन की भी सिद्धता हासिल करनी होगी।

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