अद्धयात्मदस्तक-विशेष

मेरी कलम से…

रामकुमार सिंह, संपादक

दस्तक के नवम्बर अंक को भक्ति विशेषांक के रूप मे प्रकाशित करने का संयोग अकस्मात् ही बन गया। प्रतिष्ठित फिल्म अभिनेता और दस्तक के स्तंभकार श्री आशुतोष राणा की चार विशेष भक्तिपरक रचनाओं को संकलित कर एक विशेषांक के रूप मे प्रकाशित करने का औचित्य वर्तमान समयकाल मे धार्मिक आदर्शों का हमारे जीवन मे सदुपयोग कर लाभान्वित होना मात्र है। आशुतोष राणा कला मे पारंगत, वाणी से प्रखर वक्ता और लेखन मे सिद्धता रखने वाले विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। इस विशेषांक के माध्यम से, दर्शक, पाठक और लेखक वर्ग मे लोकप्रिय राणा जी के अध्यात्म के क्षेत्र की गहरी समझ से भी सुधी पाठक इन विशेष भक्ति रचनाओं में परिचित होंगे। आज के आधुनिक युग मे जब धर्म का क्षरण हो रहा है। गुरु-शिष्य परंपरा का लोप होता जा रहा है। हम अपनी स्वर्णिम आध्यात्मिक संस्कृति मे निहित विज्ञान को भूलकर अज्ञानतावश उसको पाखंड और आडंबर समझने की आत्मघाती भूल कर बैठे हैं और ईश्वरीय प्रद्दत चेतना को आत्मसात कर पाने मे असफल हो रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच एक सफल और प्रतिष्ठित व्यक्ति जो फिल्मी दुनिया की चकाचौंध में भी अपने को भ्रमित होने से बचा पाया, जिसमें उनके गुरु की कृपा और गुरू को ईश्वर मानकर अपने हृदय मे धारण करने की दृढ़ इच्छा शक्ति ही उनका कवच बना होगा।
गीता और रामचरितमानस जैसे जीवन- उपयोगी ग्रंथों ने मार्गदर्शन करते हुये भक्तों को चार श्रेणियों मे विभक्त किया हैं। अर्थार्थी-धन की इच्छा से भगवान को भजने वाले। आर्त-संकट के निवारण हेतु भगवान को भजने वाले। जिज्ञासु-भगवान को जानने की इच्छा से भजने वाले। ज्ञानी-भगवान को तत्त्व रूप से जानकर स्वाभाविक प्रेम से भजने वाले। इसी प्रकार भजन के भी चार अंग बताये गये हैं। नाम, रूप, लीला, धाम। भक्त को नाम जपते -जपते जब रूप का दर्शन होने लगे और रूप की लीलाओं का बखान करते- करते ईश्वर के धाम को प्राप्त कर ले वही सच्चा पुरुषार्थी है। इन चार प्रकार के भक्तों और चारों अंगों के प्रकार मे आशुतोष राणा ऐसे ही ज्ञानी प्रवृति के भक्त और लीला रूपी भाव को अपनी भक्ति रचनाओं में उकेरने वाले गुरु कृपा पात्र पुरुषार्थी प्रतीत होते हैं। ‘पार्थवेश्वर महादेव’ मे उन्होंने राम-लक्ष्मण, लक्ष्मण-रावण संवाद मे लक्ष्मण के अहंकार का विलय और राम-हनुमान, रावण-हनुमान संवाद मे श्री हनुमान जी की नीति-निपुणता। रावण को अपने गुरु एवं ईष्ट श्रीराम के कार्य के लिये रावण को पौरोहित्य कार्य के निमित्त तैयार कर लेने का रोचक प्रसंग लेखक की दृष्टि मे तभी आ सकता है जब वह राजधर्म की समझ, शिष्य के दायित्वों के बोध से भरा हो। रावण जैसे खलनायक की भूमिका वाले व्यक्तित्व में रावण की अपने आराध्य शिव के प्रति समर्पण भाव की ऐसी व्याख्या कोई गुरुकृपा प्राप्त गुण और दोष, नायक और खलनायक दोनो के प्रति समभाव रखने वाला तत्वदर्शी गुरू का शिष्य ही कर सकता है। ‘सीता परित्याग’ मे राजदायित्व, पति का पत्नी के प्रति प्रेम एवं कर्तव्य और पत्नी का पति के प्रति समर्पण ‘त्याग-परित्याग’ (स्वयं के संतोष के लिये किसी को मन-वचन-कर्म से तजना त्याग किंतु किसी दूसरे के संतोष हेतु त्याग परित्याग है।) को सही रूप मे परिभाषित करते हुए श्रीराम की लीलाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों को तार्किक ढंग से उत्तर देने वाले आशुतोष राणा ने अपने राम भक्त होने का प्रमाण बख़ूबी दिया है। उनकी इन रचनाओं मे ईश्वरीय गुण भक्ति प्रेम आनंद का स्पंदन आप महसूस कर पायेंगे। रामेश्वरम मे १६ से १८ नवंबर २०१७ को आयोजित होने वाले सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण रूद्र महायज्ञ के आयोजक पंडित श्री देवप्रभाकर जी शस्त्री ‘दद्दा दी’ जैसे विलक्षण संत ही ऐसे वृहद अनुष्ठान का संकल्प और उसे पूर्ण करने की शक्ति रखते हैं। दद्दा जी की गिनती गोल्डेन बुक ऑफ रिकार्ड मे विशाल धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न कराने वाले सर्वोच्च संतों मे दर्ज है। आशुतोष राणा के व्यक्तित्व और कृतित्व को गढ़ने वाले श्री दद्दा जी की अध्यात्मिक गहराई और सच्चे मार्गदर्शक की झलक आशुतोष राणा के व्यक्तित्व में भली-भांति देखी जा सकती है। आशुतोष राणा के अपने गुरु दद्दा जी के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित गुरुवंदना की ये पंक्तियाँ यहाँ बिल्कुल उपयुक्त हैं-
बंदउँ गुरू पद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु वचन रबिकर निकर।।
श्री दद्दा जी के चरणो मे प्रणाम करते हुए ‘दस्तक भक्ति विशेषांक’ उनकी सेवा मे प्रेसित कर रहा हूँ।…

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