मेरी मां कोई त्याग की मूर्ति नहीं, बल्कि खुद से प्यार करने वाली स्त्री है
प्यारी मां,
सबसे पहले तो ये कि अपनी सेहत का खयाल रखो, जैसाकि तुम हमेशा रखती हो. और बाद बाकी ये कि मदर्स डे है तो तुम्हें एक चिट्ठी लिखने का मन हो आया.
मैं खुशनसीब हूँ कि मेरे पास तुम्हारी ऐसी कोई याद नहीं है, जहां तुम त्याग की मूर्ति बनी नजर आओ. मुझे जो तुम्हारी यादें मिलीं, वो एक ऐसी महिला की हैं, जिसे अपने काम से बेहद प्यार है. तुमने अच्छा किया कि परिवार को तरजीह तो दी मगर अपने काम के आड़े नहीं आने दिया. मुझे याद है जब तुमने हम बहनों को अपनी पढ़ाई को तवज्जो देना सिखाया, बजाय इसके कि हम घर का कोई काम सीख लें.
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सब मां के हाथ के खाने की बात करते हैं तो मुझे तुम्हारे हाथ का बना उपमा ही याद आता है. या फिर बॉर्नवीटा वाला बिना चीनी का दूध. मगर तुम्हारे चखाए स्वाभिमान के आगे न जाने कितने व्यंजन कुर्बान.
मेरा आत्मविश्वास मुझे तुमसे मिली सबसे खूबसूरत चीजों में से एक है. तुमने पिता को, हम बहनों को जिस तरह से भरपूर प्रेम दिया, उसका कोई सानी नहीं है.
मुझे अपना पांचवी से सातवीं क्लास तक तुमसे न मिलना आज भी याद है, मगर अब वो यादें कड़वी नहीं हैं. तब मैंने मान लिया था कि मेरी मां मुझे प्यार नहीं करती. अगर करती तो मुझसे मिलने बोर्डिंग जरूर आ जाती. और इसी दुःख में मैंने तुम्हें न जाने कितनी जागती रातों में कोसा. मैं तुम्हारे हाथों की छुअन भूल गयी थी उन दिनों में.
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मगर आज जब खुद काम करती हूँ तो आत्मनिर्भरता का मतलब समझ आता है और समय की कमी भी. मैं तुम्हे शुक्रिया कहना चाहती हूं, मुझे इतना आज़ाद बनाने के लिए और उससे भी ज्यादा इसलिए कि तुमने शादी और बच्चों के बावजूद अपनी आज़ादी से कोई समझौता नहीं किया.
आज भी हम सबके एक साथ न रहने पर उठने वाले सवालों को मैं बड़ी आसानी से झटककर आगे बढ़ जाती हूं क्योंकि मैं आजादी का मतलब समझती हूं. मैं खुश हूं कि तुमने मुझे किसी की पत्नी बनने की ट्रेनिंग न देकर, अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया.
मुझे तुमसे प्यार तो है ही, मगर मुझे तुम पर गर्व है मां.
तुम्हारी बेटी,
वर्तिका