मोदी करेंगे अमेरिका के दौरे से ‘दोस्ती मजबूत’
एजेंसी/ वॉशिंगटन
करीब 45 साल पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात रोड ट्रांसपोर्ट कॉरर्पोरेशन की एक कैंटीन में चाय बेचा करते थे, तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वॉशिंगटन डीसी आई थीं। दोनों देशों के जानकार उस दौरे को भारत और अमेरिका के कूटनीतिक रिश्ते का सबसे ठंडा पन्ना मानते हैं।
इंदिरा ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की बांग्लादेश की शरणार्थियों की समस्या को अनदेखा करने के लिए सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी। इसके बाद निक्सन ने एक बैठक से पहले इंदिरा को 45 मिनट तक इंतजार करवाया। निक्सन और उनके करीबी सहयोगी हेनरी किशिंगर इंदिरा पर भरोसा नहीं करते थे। दोनों ने निजी तौर पर इंदिरा को ‘चुड़ैल’ और ‘कुतिया’ तक कह दिया था। वहीं इंदिरा खुद निक्सन और किशिंगर को कुटिल और धोखेबाज इंसान मानती थीं। जब दोनों देशों के राजनैतिक प्रतिनिधियों के बीच आपस में इतनी कड़वाहट थी, तो इसका सीधा असर दोनों देशों के आपसी रिश्ते पर भी पड़ना स्वाभाविक था।
तब से लेकर अबतक ना केवल अंतरराष्ट्रीय स्थितियां बदली हैं, बल्कि दोनों देशों के बीच के रिश्ते भी काफी बदल गए हैं। सोमवार को PM मोदी वॉशिंगटन पहुंच रहे हैं। पिछले 2 साल के दौरान मोदी और ओबामा की 6 से ज्यादा बार मुलाकात हो चुकी है। मोदी 4 बार अमेरिका दौरे पर भी जा चुके हैं। दोनों नेताओं के बीच इतनी बातचीत होती है कि दोनों पक्षों ने PMO और वाइट हाउस के बीच हॉटलाइन संपर्क स्थापित करने का फैसला किया।
इस बार के अपने दौरे में मोदी ब्लेयर हाउस में ठहरेंगे। यह वाइट हाउस के ठीक पीछे बना हुआ गेस्ट हाउस है। इसे दुनिया का सबसे ‘विशिष्ट होटल’ कहा जाता है। आधिकारिक स्टेट विजिट पर अमेरिका आने वाले विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों को यहीं ठहराया जाता है। जानकारों का कहना है कि इस दौरे में ‘दोनों पक्षों के बीच आजतक की सबसे मजबूत सामरिक साझेदारी’ कायम होगी।
हालांकि जानकारों का यह भी कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच आधिकारिक तौर पर कोई सामरिक संधि होने की उम्मीद नहीं है। इसकी वजह यह है कि आधिकारिक संधि होने पर अमेरिका की किसी देश के साथ युद्ध की स्थिति पैदा होने पर भले ही भारत के लोग उस युद्ध के खिलाफ हों, तब भी संधि की शर्तों के मुताबिक भारत को युद्ध में शरीक होना पड़ेगा। अमेरिका की ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ सामरिक संधि है। एक राजनयिक ने बताया कि दोनों देशों के बीच आधिकारिक तौर पर सामरिक संधि होने से भारत को ज्यादा दिक्कतें हो सकती हैं।
अमेरिकी विशेषज्ञों का भी मानना है कि दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के क्षेत्र में और ज्यादा मजबूती आएगी, लेकिन संधि होने की संभावना नहीं दिखती। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर रिएक्टर्स की आपूर्ति को लेकर कोई समझौता हो जाता है, तो यह अपने आप में एक बड़ा कदम होगा।