मोदी के सपनों को धूमिल ना कर दें राजस्थान में फूट!
भाजपा के पुरोधा रहे पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर तिवाड़ी भाजपा के मूल एवं वर्तमान सत्ता द्वारा उपेक्षित कार्यकर्ताओं को लामबंद करने में लगे हुए हैं और जगह-जगह अपनी सभाओं में वर्तमान मुख्यमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे हैं। परन्तु राजे समर्थक पक्ष तिवाड़ी के इस अभियान को तिवाड़ी की मुख्यमंत्री बनने की असफल महत्वाकांक्षा का बासी कढ़ी में उठा उबाल मानकर खारिज कर रहा है। मगर तिवाड़ी अपनी इस लड़ाई को आर-पार तक ले जाना चाहते हैं और अपने इस अभियान को दिन प्रतिदिन तेज करते जा रहे हैं।
भले ही उत्तर प्रदेश की जबरदस्त जीत के बाद राजस्थान में भी धोलपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की बाजी मार कर प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ऊपरी तौर पर यह दिखा दिया हो कि प्रदेश में एकछत्र नेता वो ही हैं, परन्तु अंदरखाने से उठ रहे फूट के धुएं के कालिमा युक्त बादल किसी आने वाले तूफान का संकेत भी तो दे ही रहे हैं। यदि समय रहते इस धुएं को मिल रही चिंगारी को शांत नहीं किया गया तो आग की लपटें भाजपा को अपने आगोश में कैसे जलाकर राख कर देंगी या तो इस स्थिति का भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को आभास नहीं है या फिर ऊपरी सतह पर जान बूझकर इस चिंगारी को किसी विशेष लक्ष्य को केंद्र में रखकर हवा दी जा रही है। प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ ब्राह्मण नेता तथा छह बार विधान सभा के लिए निर्वाचित, वर्तमान में सांगानेर क्षेत्र से विधायक घनश्याम तिवाड़ी गत दो वर्षों से प्रदेश के वर्तमान नेतृत्व के खिलाफ जहर बुझे बाण प्रक्षेपण कर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। परन्तु न जाने क्यों प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तिवाड़ी को कोई तरजीह नहीं दे रही हैं? तिवाड़ी को लगता है कि भाजपा में पार्टी स्तर पर भी उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है। हालात यहाँ तक खटीले हो चुके हैं कि पार्टी व सरकार के मंचों पर उपेक्षित महसूस कर तिवाड़ी ने अपना सारा आक्रोश अपने एक संगठन ‘दीन दयाल वाहिनी’ के प्लेटफार्म के माध्यम से व्यक्त करना शुरू कर दिया है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कुछ हद तक तिवाड़ी अपने इस अभियान में सफल भी हो रहे हैं। भाजपा के पुरोधा रहे पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर तिवाड़ी भाजपा के मूल एवं वर्तमान सत्ता द्वारा उपेक्षित कार्यकर्ताओं को लामबंद करने में लगे हुए हैं और जगह-जगह अपनी सभाओं में वर्तमान मुख्यमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे हैं। परन्तु राजे समर्थक पक्ष तिवाड़ी के इस अभियान को तिवाड़ी की मुख्यमंत्री बनने की असफल महत्वाकांक्षा का बासी कढ़ी में उठा उबाल मानकर खारिज कर रहा है। मगर तिवाड़ी अपनी इस लड़ाई को आर-पार तक ले जाना चाहते हैं और अपने इस अभियान को दिन प्रतिदिन तेज करते जा रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ तिवाड़ी के इस विद्रोह को दमित करने या पता नहीं और कुरेदने की मंशा से भाजपा की राष्ट्रीय अनुशासन समिति ने मई, को तिवाड़ी को कारण बताओ नोटिस जारी कर मई की तपती गर्मी को और गर्म कर दिया है। घायल एवं गुस्साए शेर की तरह हाई कमान द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस से आहत तिवाड़ी ने भी तुरंत मई , को अपना स्पष्टीकरण इतने नुकीले जवाब में दिया है कि जो भी इस स्पष्टीकरण को पढ़ेगा अन्दर तक जख्मी हुए बिना नहीं बच पायेगा।
तिवाड़ी ने अपने पत्र में इंगित किया है कि वे अनुशासनात्मक कारवाई से भयभीत नहीं हैं और अपनी न्याय की लड़ाई में न्याय के पथ से विचलित नहीं होंगे। जीवन में सदैव मेरा प्रयास रहा है कि जितनी भी मेरी समझ है, न्याय के पथ पर चलूँ और चाहे कितने भी झंझावत आयें, मैं न्याय के पथ पर से डिगूं नहीं। अपने अनुशासन हीनता के आरोपों को सिरे से नकारते हुए तिवाड़ी कहते हैं मैंने जीवन भर ध्येय, निष्ठा से कार्य किया है, राजनीति को भी विचारधारा आगे बढ़ाने का एक मिशन मानकर काम किया है। मैं पार्टी के खिलाफ गतिविधियाँ और बयानबाजी के आक्षेप को सिरे से नकारता हूँ। तिवाड़ी ने ना केवल अपने खिलाफ लगाए गए आक्षेपों को नकारा है अपितु प्रदेश की मुख्यमंत्री को लपेटे में लेते हुए अपनी लड़ाई को और अधिक पैनापन देते हुए लिखा है कि राजस्थान में जो वास्तव में अनुशासनहीन है, जिन्हें पार्टी में देश भर में अनुशासनहीनता की महारानी भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, उनसे संबंधित कुछ तथ्य आपके सामने रखकर मांग करता हूँ कि राजस्थान की मुख्यमंत्री पर पार्टी अनुशासनहीनता की कारवाई करें। तिवाड़ी ने राजे पर मोदी के खिलाफ प्रदेश सांसदों को लामबंद करने तथा मोदी के शपथ ग्रहण समोराह में भाग लेने से रोकने का भी आरोप लगाया है। तिवाड़ी ने देश में भाजपा की जीत का सेहरा अकेले मोदी के सर बांधने के मोदी समर्थकों के प्रयास एवं प्रचार को झटका देने वाले राजे द्वारा दिए गए तथा कथित बयान का उल्लेख कर केन्द्रीय नेतृत्व तथा मोदी को भी अपने पक्ष में करने तथा राजे के खिलाफ हथियार बनाने का प्रयास किया भी है। तिवाड़ी ने राजे के इस बयान को उद्घरित किया है अगर कोई सोचता है कि चुनावों में यह अपूर्व सफलता किसी एक आदमी की वजह से मिली है, तो उसे दोबारा सोचना चाहिए।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भ्रष्टाचार के लपेटे में लेते हुए तिवाड़ी ने ललित मोदी कांड का हवाला देकर अनुशासन समिति के समक्ष यक्ष प्रश्न उछाले हैं कि जब ललित मोदी कांड सामने आया तो पूरे देश में पार्टी की छिछालेदार हुई। तथ्यों के साथ मनी लांड्रिंग के गंभीर आरोप लगे। कुछ लोगों द्वारा यहाँ तक कहा गया कि लंदन की अदालत में हस्ताक्षर करके दिया गया इनका शपथ पत्र देशद्रोह की श्रेणी में आता है। लेकिन इस पर आपने कोई कारवाई नहीं की। क्यों? अनुशासन की तरह क्या भ्रष्टाचार और देशभक्ति के भी अब दो पैमाने बन गए हैं? राजस्थान के कार्यकर्ता जानना चाहते हैं कि आखिर वह कौन सी मजबूरी है कि इतना सब होने के बावजूद भी आप कोई कार्रवाई राजस्थान की मुख्यमंत्री पर नहीं कर रहे?
तिवाड़ी ने केन्द्रीय नेतृत्व को चुनौती भरे शब्दों में आगाह भी किया है। केन्द्रीय स्तर पर आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर आपको जो भी निर्णय लेना है, सोच-समझ कर लेना। पार्टी और प्रदेश के हित की बात आपके सामने रख रहा हूं। राजस्थान का बच्चा-बच्चा जो कह रहा है, वह आपके सामने रख रहा हूँ। एक अवसर आपके सामने है कि आप पार्टी और प्रदेश की जनता के हित को सामने रखकर निर्णय लें। मेरी बात को राम दूत हनुमान की बात मानकर आप अपने ध्यान में लें आना कि राजस्थान में सीता मैया अब बहुत ज्यादा समय तक अशोक वाटिका में बंदी रहने वाली नहीं है। अपने पत्र के अंत में तिवाड़ी ने अपना आशय बिलकुल ही स्पष्ट कर दिया। खैर, ये सब बातें तो अपनी जगह हैं, राजस्थान की जनता को यह तो बता दीजिये कि यह खेल मजबूरी का है या मिलीभगत का? और अगर मिलीभगत का है तो इसमें कौन-कौन शामिल हैं? वे कौन लोग हैं, जिनके लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन चुकी हैं? राजस्थान की जनता और कार्यकर्ता बड़ी बेसब्री से इस जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
पार्टी के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने अपने जवाब में जो कुछ भी लिखा है वो आंखें खोलने वाला है। क्या भाजपा की अनुशासनात्मक समिति इस पत्र को पढ़कर कोई निर्णयात्मक कार्रवाई कर पाएगी या यूं ही खानापूर्ति तक सीमित रह जायेगी? समिति अभी तक तो सांप छछूंदर वाली स्थिति में लग रही है। यदि समिति या केंद्रीय हाई कमान तिवाड़ी के खिलाफ कोई ठोस एक्शन नहीं लेती है तो सीधा संदेश जाएगा कि तिवाड़ी के कन्धों पर रखकर वर्तमान प्रदेश नेतृत्व पर बन्दूक चलाई जा रही है और किसी शह के तहत ही तिवाड़ी के हौंसले इतने बुलंद हैं और समिति या केंद्रीय नेतृत्व तिवाड़ी के खिलाफ कोई कारवाई करना चाहेगा, तो किस आधार पर कारवाई करेगा? क्या तिवाड़ी द्वारा अपने जवाब में उठाये गए तथ्यात्मक मुद्दों व सवालों को समिति ‘इग्नोर’ कर पायेगी या कोई बीच का रास्ता निकाल लिया जायेगा? यह तो हो ही नहीं सकता कि तिवाड़ी जी इतने भोले हैं कि उन्हें आगामी परिणामों का आभास नहीं है या अकेले ही अभिमन्यु की तरह अपने आप को इतनी बड़ी विरोधी सेना के चक्रव्यूह में घिरकर शहीद कर लेंगे। तिवाड़ी द्वारा संचालित दीनदयाल वाहिनी के समर्थकों की बढ़ती संख्या व सफल आयोजनों से इतना तो तय लगता है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे किसी बड़े मंच या नेतृत्व का वृहद हाथ है जो भले ही छिपकर मदद कर रहा हो, परन्तु जनता में तो स्पष्ट संकेत दे ही रहा है।
तिवाड़ी के जवाब तथा मुख्यमंत्री के विरुद्घ वर्तमान विद्रोह से बचाव में राजे ने अपने तीन मंत्रियों तथा एक सांसद को ढाल के रूप में उतारा है। राजे के इस चतुष्पदी कवच ने तिवाड़ी पर आरोप लगाया है कि घनश्याम तिवाड़ी उसी डाल पर आरी चलते हैं, जिस पर वे उम्र भर बैठते आये हैं, लेकिन वे अपने मंसूबों में कभी कामयाम नहीं हुए। तिवारी ने भी बड़े ही हल्के अंदाज में इतनी गंभीर बात को खारिज कर दिया है। तिवाड़ी ने अपने मई के व्यक्तव्य में कहा है कि ‘एक ही पन्ने पर जारी किये गए चारों के संयुक्त बयान से लगता है कि ये लोग लाचार हैं। इनको अपना मंत्री पद बचाकर रखना है। मेरी इन लोगों के प्रति सहानुभूति है। दिल्ली से मुख्यमंत्री द्वारा फोन पर बार-बार दबाव डलवाकर इनसे यह बयान दिलवाया गया है।’
तिवाड़ी जी के बयान में कितना दम है या कहाँ तक सच्चाई है यह तो आने वाला समय ही प्रकट करेगा, हाँ इतना तो दिख ही रहा है कि विधानसभा में से अधिक विधायकों तथा लोकसभा सदस्यों की अपने दम पर जीत का दावा करने वाली प्रदेश की मुख्यमंत्री के पक्ष में मात्र चार ही प्रतिनिधि आगे आये, शेष क्यों नहीं? क्या शेष प्रतिनिधि मन के किसी कोने में तिवाड़ी से सहानुभूति तो नहीं पाल रहे हैं? कहते हैं कि मौन रहना भी किसी फैसले का इजहार करता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चाएँ हैं कि केंद्रीय नेतृत्व विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी को प्रदेश की मुख्यमंत्री का रजवाड़ा संस्कृतिजन्य ‘न’ झुकने वाला रवैया कतई पसंद नहीं है।
यह भी सर्वविदित है कि दिल्ली में बैठे भाजपा के कर्णधारों में सारे के सारे तो मुख्यमंत्री राजे के पक्ष में भी नहीं हैं। बल्कि यूं कहें कि निर्णायक एवं सक्षम बहुमत राजे को ना चाहने वालों का है। पर यह भी सही है कि राजे के प्रभा मंडल के सामने उनकी आवाज उठाने या कोई कारवाई करने की हिम्मत भी नहीं है। जनता व राजनीतिक मंच पर मजबूत कद वाली मुख्यमंत्री राजे को दूध में गिरी मक्खी की तरह बाहर निकाल देने का साहस शायद मोदी में भी नहीं लगता। यह भी सुनिश्चित है कि वसुंधरा राजे रहित भाजपा राज्य में सत्ता प्राप्त कर ले, एक सपनों का महल बनाने के सामान ही है। परन्तु इतना अवश्य हो सकता है कि तिवाड़ी द्वारा सुलगाई गयी चिंगारी आगामी वर्ष के विधान सभा चुनावों में भाजपा के जीत के अरमानों को राख तो कर ही सकता है।