मोदी को कैसी मिली थी इकोनॉमी? आखिरी बजट में छिपी है सच्चाई
आम चुनाव 2014 से पहले 17 फरवरी को अपना आखिरी यानी अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संसद में कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर उभर रही चुनौतियों के दबाव में है. चिदंबरम ने कहा कि जहां 2011 से 2013 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था 3.9, 3.1 और 3.0 फीसदी क्रमश: की ग्रोथ दर्ज कर रहा था वहीं इस दौरान देश के प्रमुख ट्रेडिंग पार्टनर्स की अर्थव्यवस्थाओं में अहम परिवर्तन हो रहे थे.
इस दौर में जहां अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक लंबी सुस्ती से बाहर निकल रही थी वहीं जापान में स्टिम्युलस का असर दिखने लगा था और यूरोजोन की अर्थव्यवस्था इस दौरान 0.2 फीसदी की ग्रोथ के साथ आगे बढ़ रही थी. वहीं इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था जहां 2011 में 9.3 फीसदी की ग्रोथ दर्ज कर रही थी यह रफ्तार 2013 तक घटकर 7.7 फीसदी पर पहुंच गई थी.
अंतरिम बजट पेश करते हुए चिदंबरम ने दावा किया था कि ग्लोबल रिस्क 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के सामने 31 ग्लोबल संकट मौजूद हैं जिनमें भारत पर प्रभाव डालने वाली प्रमुख चुनौतियां वित्तीय संकट, बेरोजगारी, आय में असमानता, प्रशासनिक विफलता, खाद्य संकट और राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता है. हालांकि चिदंबरम ने दावा किया कि इन चुनौतियों से जहां दुनिया की अधिकतर अर्थव्यवस्थाएं दबाव में रहीं वहीं यूपीए कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था खुद को बचाने में सफल रही है.
खास बात है कि संसद में यूपीए सरकार के वित्त मंत्री के तौर पर अपना अंतिम बजट भाषण पढ़ते हुए चिदंबरम ने माना कि वैश्विक परिस्थिति में देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि इस चुनौती का सामना करने के लिए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने 2011 में नेशनल मैन्यूफैक्चरिंग पॉलिसी का ऐलान किया था जिसके सहारे सरकार का उद्देश्य जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान बढ़ाकर 25 फीसदी तक ले जाना था. इसके साथ ही इस नीति के जरिए एक दशक में इस क्षेत्र में 10 करोड़ नई नौकरियों का सृजन करना था.
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में मौजूद चुनौतियों के अलावा पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम ने 2014 में अंतरिम बजट पेश करते हुए यह भी माना कि वैश्विक मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले कड़ी चुनौती के दौर से गुजर रहा है. चिदंबरम के मुताबिक मई 2013 में डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति बेहद खराब थी और दिसंबर 2013 से लेकर जनवरी 2014 तक डॉलर के सापेक्ष रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज हुई.
वहीं जीडीपी की स्थिति पर चिदंबरम ने माना कि मंदी का दौर 2011-12 में शुरू हुआ. इस दौर में 2011-12 से 2013-14 में देश की जीडीपी 7.5 फीसदी (पहली तिमाही) से घटकर 4.4 फीसदी (पहली तिमाही) पर पहुंच गई. हालांकि इस गिरावट के दौर को 2013-14 की दूसरी तिमाही में सुधार दिखा और 4.8 फीसदी की ग्रोथ दर्ज हुई. इस सुधार के हवाले से चिदंबरम ने दावा किया कि नई सरकार की बची हुई दो तिमाही के दौरान 5.2 फीसदी की विकास दर का आंकलन है.