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मोदी को मिला सुप्रीम कोर्ट का साथ, अब यूपी में बीजेपी की होगी जीत

नई दिल्ली। हिंदुत्व’ को धर्म की बजाय जीवनशैली बताने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट दोबारा विचार नहीं करेगा। चुनाव में धर्म के इस्तेमाल से जुड़े कानून पर सुनवाई कर रही 7 जजों की बेंच ने ये साफ़ किया है। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने 1995 में आए फैसले पर दोबारा विचार की दरख्वास्त की थी। कोर्ट के इस फैसले के बाद सबसे बड़ी राहत भाजपा को मिली है, जिस पर हमेशा हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने का आरोप लगता रहता है।

हिंदुत्व

तीस्ता सीतलवाड़ की मांग थी कि 5 राज्यों में जल्द होने जा रहे चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को ‘हिंदुत्व’ के नाम पर वोट मांगने से रोका जाए। लेकिन कोर्ट ने इस पहलू पर विचार करने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा, हम जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) पर सुनवाई कर रहे हैं। इसमें चुनावी फायदे के लिए धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के इस्तेमाल को गलत माना गया है। किसी पुराने फैसले में तय किसी शब्द की परिभाषा हमारा विषय नहीं है।

कोर्ट के फैसले का असर आगामी पांच विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। खास कर यूपी में, जहां हर चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा उठता ही है। कोर्ट ने कहा कि हम जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) पर सुनवाई कर रहे हैं। इसमें चुनावी फायदे के लिए धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के इस्तेमाल को गलत माना गया है। किसी पुराने फैसले में तय किसी शब्द की परिभाषा हमारा विषय नहीं है।

1995 में जस्टिस जे एस वर्मा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि ‘हिंदुत्व’ को किसी धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। यह शब्द धर्म की बजाय भारत में बसने वाले लोगों की जीवनशैली से जुड़ा है। बेंच की इस परिभाषा के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी समेत शिवसेना-बीजेपी के कई सदस्यों की विधानसभा सदस्यता रद्द होने से बच गई थी।

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