नई दिल्ली: चुनावी साल में बड़ा सियासी मुद्दा बन रहा राफेल सौदा विवाद भविष्य में या तो मोदी सरकार की मुश्किलों को बढ़ाएगा या फिर विपक्ष के मंसूबों पर पानी फेरेगा। सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को इस सौदे से जुड़ी प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी मांगने के बाद से सियासी हलचल बढ़ गई है। अगर विपक्ष के आरोपों के अनुरूप सौदे पर मुहर लगाने से पहले रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति समेत अन्य समितियों को किनारे करने का दावा सही पाया गया तो मोदी सरकार के लिए कठघरे में खड़ी होगी। वहीं, यदि इसके उलट इसमें किसी तरह की खामी नहीं पाई गई तो लोकसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाने की ताक में विपक्ष को तगड़ा झटका लगेगा। दरअसल, राफेल सौदे में विपक्ष अनिल अंबानी की कंपनी को ऑफसेट पार्टनर बनाने और पहले से अधिक कीमत चुकाने के अलावा जरूरी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं करने का आरोप लगा रहा है।विपक्ष खासतौर से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, वरिष्ठ प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के साथ-साथ अरुण शौरी का आरोप है कि सौदे पर अंतिम फैसला लेते समय सरकार ने निविदा मंत्रणा समिति, कीमत मंत्रणा समिति, रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति समेत कई जरूरी प्रक्रियाओं को दरकिनार किया, जबकि सौदे की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के लिए इनकी सहमति अनिवार्य है। ऐसे में केंद्र से हासिल की गई जानकारी में सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रियाओं के उल्लंघन के आरोपों को सही पाया तो निश्चित रूप से मोदी सरकार की मुश्किल बढ़ जाएगी। इसके उलट अगर जानकारी में सभी प्रक्रियाओं के पालन करने का तथ्य सामने आया तो विपक्ष के सरकार को घेरने के मंसूबे पर पानी फिर जाएगा। ऐसी स्थिति में भाजपा और सरकार को विपक्ष पर तथ्यहीन आधार पर महज पीएम मोदी को बदनाम करने का आरोप लगाने का एक बड़ा मौका भी मिल जाएगा।