मोदी सरकार ने किसके कहने पर पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को किया रिहा
नई दिल्ली : करीब 7 महीने नजरबंद रखने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला अब रिहा हो चुके हैं। अचानक रिहाई का यह ऑर्डर मोदी सरकार ने क्यों दिया, इसको लेकर आईबी के विशेष निदेशक और रॉ के प्रमुख रह चुके ए. एस. दुलत ने बड़ा दावा किया है। दुलत के मुताबिक, यह फैसला फारूक से उनकी मुलाकात के बाद लिया गया है। दुलत की मानें तो फारूक ने मुलाकात में साफ कहा था कि वह और उनके बच्चे (उमर) देश के खिलाफ बिल्कुल नहीं हैं। ए. एस. दुलत को कश्मीर का पुराना एक्सपर्ट कहा जाता है। रूबिया अपहरण और कंधार प्रकरण में भी दुलत ही मध्यस्थता कर चुके हैं। उनकी मानें तो हाल में किया गया कश्मीर दौरा सामान्य नहीं बल्कि मिशन फारूक था। इसमें वह फारूक अब्दुल्ला से मिले जिसकी जानकारी एनएसए अजित डोभाल और प्रधानमंत्री कार्यालय को थी। दुलत ने यह बात एक बड़े टीवी पत्रकार को दिए इंटरव्यू में कही है। दुलत ने बताया कि वह श्रीनगर में फारूक से मिले थे। उन्होंने देखा कि पूर्व सीएम बहुत थके हुए से थे और उनकी तबीयत भी ठीक नहीं थी। फारूक ने जोर देकर दुलत से यहा कि वह भारत के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने अपने बच्चों को भी इसी तरह से पाला है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने रिहा होने के बाद जेल श्रीनगर सब-जेल में बंद अपने बेटे उमर अब्दुल्ला से मुलाकात की। उमर अब्दुल्ला को पीएमए के तहत पिछले 7 महीने से हिरासत में रखा गया है। 82 साल के फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अपने बेटे से मिलने की अनुमति मांगी थी जिसे स्वीकार कर लिया गया था। अधिकारियों ने बताया कि दोनों के बीच करीब एक घंटे तक मुलाकात हुई।
दुलत बताते हैं कि सीक्रेट मिशन से लौटने के करीब एक महीने बाद ही फारूक को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया। दुलत ने कहा कि उन्होंने पिछले साल नवम्बर में फारूक से मिलने की इच्छा जताई थी, लेकिन तब गृह मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया था। फिर 9 फरवरी को गृह मंत्रालय से उनके पास फोन आया कि अगर मैं कश्मीर जाना चाहता हूं तो जा सकता हूं। दुलत के मुताबिक, उनकी कश्मीर यात्रा वैसे तो निजी थी, लेकिन आईबी ने ही उन्हें एयरपोर्ट से लिया और फारूक के घर छोड़ा। फिर कश्मीर से वापस आने के तुरंत बाद उनके पास मंत्रालय से फोन आ गया था, पूछा गया था कि कैसी रही यात्रा।