उत्तराखंड

मौजूदा कार्बन हिमालय की ‘सेहत’ बिगाड़ने के लिए काफी

himalaya-underground-water-source-disappear-56514dc74d99f_exlstकार्बन उर्त्सजन कम करने के लिए पूरी दुनिया एक मंच पर आ गई है, लेकिन वायुमंडल में पहले से मौजूद कार्बन को कैसे कम किया जाए, इस समस्या का सटीक उपाय पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मेलन में भी सामने नहीं आया।

हकीकत यह है कि वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड का मौजूदा स्तर अगले 50 साल तक हिमालय की सेहत बिगाड़ने के लिए काफी है। विज्ञानियों का दावा है कि कार्बन उत्सर्जन शून्य भी कर दिया जाए तो हिमालय का तापमान दस साल में दो डिग्री की दर से बढ़ता रहेगा।

उत्सर्जन बढ़ा तो स्थिति और खतरनाक हो सकती है। स्थिति में सुधार इसलिए जरूरी है क्योंकि हिमालय पूरी दुनिया में पैदा होने वाले कार्बन का प्रमुख ‘रेग्यूलेटरी सिस्टम’ है। विज्ञानियों का कहना है कि भविष्य में कार्बन उर्त्सजन कम करने के साथ ही अब तक पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के उपाय भी खोजने होंगे, तभी जलवायु परिवर्तन पर हुआ समझौता कारगर होगा।

हिमालय के तापमान पर अनुसंधान कर रहे वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने बताया कि कार्बन डाई ऑक्साइड विश्व के किसी कोने में उत्सर्जित हो, उसका प्रभाव पूरे वायुमंडल पर पड़ता है। इस वक्त 10 लाख किलो हवा में 400 किलो कार्बन डाई ऑक्साइड मिली हुई है।

इस स्थिति में ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण करना बेहद मुश्किल है। अमेरिकी विज्ञानी डॉ. साइमन क्लेम्परर के मुताबिक हिमालय का तापमान 50 सालों में 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

हिमालयी ताप पर शोध कर रहे वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. संतोष राय, डॉ. समीर तिवारी का कहना है कि हिमालय विश्व का सबसे कम उम्र का पहाड़ है और यह अभी विकसित हो रहा है।

यह कार्बन डाई ऑक्साइड रेग्यूलेट करने वाला विश्व का प्रमुख पहाड़ है। यहां का तापमान बढ़ने से इको सिस्टम अधिक प्रभावित हो सकता है। हिमालय सबसे अधिक कार्बन डाई आक्साइड को खपाता है। उन्होंने बताया कि सिलिकॉन चट्टानों का रासायनिक क्षरण वायु मंडल की कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर लेता है।

अगर कार्बन उत्सर्जन अभी बहुत कम कर दिया जाता है तो कार्बन का मौजूदा स्तर कम होने में कम से कम 10 साल लगेंगे। वातावरण में जो कार्बन डाई ऑक्साइड अभी मौजूद है उसका प्रभाव पड़ेगा। हिमालयी क्षेत्र का तापमान बढ़ने से आइस कवर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
– डॉ. संतोष कुमार राय, वरिष्ठ विज्ञानी, वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान

असर
– ग्लेशियर पिघलेंगे, स्नो कवर घट जाएगा
– चारों तरफ नदियों में बाढ़ आएगी
– समुद्र तल उठने से धरती का बढ़ा हिस्सा डूब जाएगा
– सेब तथा ठंड इलाकों में होने वाली फसलें नष्ट होंगी
– समुद्र के खारा पानी पहुंचने से भूमि बंजर हो जाएगी

बचाव
– पेड़ अधिक लगाए जाएं, फारेस्ट कवर में लगातार बढ़ोत्तरी जरूरी।
– नदियों पर डैम न बनें। इससे नदियों में आने वाला आर्गेनिक कार्बन सीधा बंगाल की खाड़ी में चला जाएगा। डैम की वजह से आर्गेनिक कार्बन एक ही जगह पर जमा हो जाता है। यहां ऑक्सीकृत होकर यह कार्बना डाई आक्साइड में तब्दील हो जाता है।
– जीओ इंजीनियरिंग उपकरणों के जरिये वायुमंडल से कार्बन को खींचा सकता है। फिर इस विशेष मशीनों की मदद ड्रिल करके भूगर्भ में डाला जा सकता है। यहां कार्बन डाई ऑक्साइड लाखों साल तक कैद रह सकती है।

 

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