दस्तक-विशेषसाहित्य

मौन-संवाद

– कुमार मंगलम

1.
हलचल
और शोर
से भरी हुई
दुनिया में
बुलबुल ने चहकना छोड़ दिया

एक चुप
रच रही है
किसी के मृत्यु का महाआख्यान

2
अचानक बोलते हुए
का चुप होना
संकेत नहीं है
मरण का

कुछ ऐसा घटित हुआ है
जो अवांक्षित है

3
चुप्पी
एक उदास कविता है

4
उदासी
तन्हाई
और
चुप्पी
एकांत के साथी नहीं हैं

यह एक फरेब है
जिसे रचता हूँ मैं
अपने को ही छलने के लिए

5
घबराकर हो जाता हूँ
चुप
हर चुप्पी छलावा है
कि तुमसे दूर हूँ मैं

6
लंबे अंतराल के
बाद
संक्षिप्त संवाद
जैसे
मेरे मौन का पारन हुआ हो आज

7
मौन का टूटन
बोलने का उत्सव नहीं है
अतिरेक
मौन का अधिक वाचाल होता है

8
बहुत बोलने के बाद
की चुप्पी
आत्मग्लानि से उपजती है

9
अनिर्णय का चुप
निर्णायक शोर से अधिक
वाचाल होता है

10
कई बातें हैं
कहने को
मेरे शब्द जो
अकहे रह गए
चुप हैं

जिसे कहा
वो शोर थे
मेरा कहा हर बार
मेरे आधिपत्य से उपजा था
मेरे कहे का मैं अधिकारी हूँ

जो न कह पाया
उसे मेरा मौन समझना
चुप्पी अब करुणा का पर्याय है

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