मौलिक अधिकार है निजता का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना है। 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है। जिसका प्रभाव देश के 134 करोड़ लोगों के जीवन पर पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है। 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर 6 दिनों तक मैराथन सुनवाई की थी। जिसके बाद 2 अगस्त को पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर कर रहे हैं।
6 जजों की पीठ के इन फैसलों में कहा गया था कि ‘निजता का अधिकार’ मौलिक अधिकार नहीं है। इसके बाद मामले को 9 जजों की पीठ को सौंप दिया गया। 9 जजों की पीठ का फैसला आधार कार्ड की अनिवार्यता के मामले के निपटारे में सुप्रीम कोर्ट बेंच की मदद करेगा। आधार की अनिवार्यता के खिलाफ याचिकाएं थीं कि आधार से व्यक्ति की निजता का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि इसमें दिया गया बायोमेट्रिक डाटा लीक हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था। केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें निजता का अधिकार जैसा कुछ नहीं बचा है। तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया था कि आम लोगों के डेटा प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस लोगों की कमेटी का गठन कर दिया है। उन्होंने कोर्ट को बताया है कि कमेटी में UIDAI के सीईओ को भी रखा गया है।