अद्धयात्म
यहां दुर्गा ने तोड़ा था अकबर का गुरूर, देवी से मिली शहंशाह को शिकस्त
एजेंसी/ शिमला। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में देवी दुर्गा एक ऐसा मंदिर है जिसके सामने शहंशाह अकबर ने भी हार मान ली थी। यहां मां ज्वाला के रूप में साक्षात देवी भगवती विराजमान हैं। यह एक सिद्ध शक्तिपीठ है जिससे कई प्राचीन कथाएं जुड़ी हैं। हर साल लाखों लोग यहां मां के दर्शन करने आते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी। इसलिए यह स्थान अत्यंत पवित्र और सिद्ध है इसकी गणना 51 सिद्ध शक्तिपीठों में की जाती है।
पर्वत से दिव्य ज्योति
यहां पर्वत के विभिन्न स्थानों से देवी के अग्नि स्वरूप के रूप में दिव्य ज्योतियां निकलती रहती हैं। इनमें कोई ईंधन नहीं डाला जाता लेकिन ये प्राचीन काल से ही लगातार जल रही हैं। दिव्य ज्वाला निकलने के कारण ही यहां देवी का पूजन ज्वाला मां के रूप में किया जा रहा है।
मंदिर से अनेक कथाएं जुड़ी हैं। कहा जाता है कि एक बार किसी ग्वाले ने यहां के राजा को बताया कि पहाड़ों से दिव्य ज्योति निकल रही है। वह जब वहां गया तो उसे साक्षात मां दुर्गा के दर्शन जैसी अनुभूति हुई। उसने मंदिर का निर्माण करवा दिया।
मां की ज्योति लगातार जलती रही। एक बार बादशाह अकबर को किसी ने इस मंदिर के बारे में बताया। उसने हुक्म दिया कि यह ज्योति बुझा दी जाए।
हार गया बादशाह
सिपाहियों ने अनेक प्रयास किए लेकिन ज्योति नहीं बुझा सके। तब अबकर को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने माफी मांगी। साथ ही सवा मण सोने का छत्र भी भेंट किया। यहां मंदिर के निकट एक कुंड भी है। इसके पानी को देखने से लगता है कि यह बहुत गर्म है लेकिन वह सामान्य होता है। इसका जल दिव्य माना जाता है।
सतयुग में आएंगे गोरखनाथ
मंदिर से एक और कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार गुरु गोरखनाथ यहां देवी का पूजन करने आए। भूख लगने पर वे भिक्षा मांगने गए और देवी ने अग्नि प्रज्वलित की, ताकि भोजन बना सकें। इसी बीच कलियुग प्रारंभ हो गया, इसलिए गोरखनाथ नहीं आए।
वे सतयुग की प्रतीक्षा कर रहे हैं परंतु वही दिव्य अग्नि आज तक जल रही है। मान्यता है कि सतयुग में गुरु गोरखनाथ यहां आएंगे और तब तक यह अग्नि यूं ही जलती रहेगी।