रिपोर्ट की मानें तो 50 भैंसे चराने के एवज में यहां एक मजदूर कम से कम 25 हजार रुपए महीना कमा लेता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें बिहार और यूपी के कई लोग इसी काम में लगे हुए हैं। दरअसल, जो लोग चरवाहों का काम कर रहे हैं, वे मुख्य रूप से एनसीआर में फसल की बुआई और कटाई के लिए आते थे।
इधर किसानों के पास इतना समय ही नहीं रहता कि वे दिनभर भैंसों को चराने में लगे रहें। किसानों ने ही इन मजदूरों को कहा कि वे उनकी भैंसों को चरा दिया करें और बदले में प्रति भैंस 500 से 700 रुपये महीना ले लें। मजदूरों को यह बात जच गई। बस फिर क्या था फॉर्मुला हिट हो गया और अब आसापस के इलाके के गांवों में भी इसी तर्ज पर भैंसों के लिए चरवाहे काम पर लग गए हैं।
किसानों ने बड़ा सोच समझ कर हिसाब लगाने के बाद अपने मजदूरों को यह काम सुझाया। हिसाब ये लगाया कि एक भैंस औसतन 8 से 10 किलो दूध रोजाना देती है। इस तरह महीने में 15 हजार रुपये की कमाई हो जाती है। ऐसे में 500 रुपये लेकर कोई अगर भैंसों को चरा देता है तो इससे फायदा तो है ही, साथ ही वक्त की भी बचत होती है।ये चरवाहे गांव में ही किसी के मकान में किराए पर परिवार के साथ रहते हैं। भैंसों को चराने के बाद हिंडन या यमुना नदी में नहला देते हैं। उसके बाद शाम पांच बजे भैंसों को वापस गांव ले आते हैं।