अद्धयात्म
यहां मिले हैं रामायण के अकाट्य प्रमाण, देखकर आप भी करेंगे राम की शक्ति को प्रणाम
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ रामायण भगवान श्रीराम की लीला का संग्रह मात्र नहीं है। यह कथा सिद्ध करती है कि सत्य की ध्वजा एक दिन बुलंदियां छूती है और असत्य न केवल खुद नष्ट होता है, बल्कि वे तमाम लोग भी उसके साथ नष्ट हो जाते हैं जो उसके पक्षधर थे।
सदियां बीत जाती हैं परंतु सत्य की महत्ता कभी समाप्त नहीं होती। श्रीराम का जन्म, वनवास, रावण वध जैसी अनेक घटनाएं हैं जो अत्यंत प्राचीन हैं परंतु आज भी कई प्रमाण ऐसे मिल जाते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि रामायण की घटनाएं न केवल अमिट हैं, वे कालचक्र के साथ प्रकट होकर हमें सत्य का बोध भी कराती हैं। जानिए ऐसे ही कुछ साक्षात प्रमाणों के बारे में जो आज भी रामायण की गाथा गाते हैं।
जब पवनपुत्र हनुमान मां सीता की खोज में लंका आए तो उन्होंने अनेक स्थानों पर तलाश की। माना जाता है कि आज भी उनके चरणचिह्न लंका में हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि कभी हनुमानजी यहां आए थे। ऐसा ही निशान एक कठोर शिला पर मौजूद है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह हनुमानजी का चरणचिह्न है।
अगर सीताहरण न होता तो रामायण की कथा कुछ और ही होती। इसी एक घटना ने रावण समेत कई दैत्यों का भविष्य तय कर दिया और वे श्रीराम के हाथों मुक्ति को प्राप्त हुए। श्रीलंका के पहाड़ों में आज भी एक गुफा है जो अत्यंत प्राचीन मानी जाती है। इसके बारे में कहा जाता है कि सीताहरण के बाद रावण उन्हें यहीं लाया था। इस गुफा में नक्काशी की हुई है जो बहुत पुरानी है।
रामसेतु रामायण के उन प्रसिद्ध स्थानों में से एक है जिसकी प्रामाणिकता पर किसी को संदेह नहीं है। यह सेतु भगवान श्रीराम की शक्ति को ही प्रणाम नहीं करता, उनके समर्पित सैनिकों को भी नमन करता है, जिन्होंने राम की शक्ति से सागर में पत्थर तैरा दिए। इस सेतु के बारे में रामायण में भी उल्लेख किया गया है और यह बहुत मजबूत है। हजारों वर्षों से यह सागर के थपेड़े सहन कर रहा है परंतु यह अपने स्थान पर अडिग है।
युद्धभूमि में जब लक्ष्मण शक्तिबाण के प्रहार से मूर्छित हो गए तब हनुमानजी उनके लिए संजीवनी बूटी लेकर आए। संजीवनी बूटी के प्रभाव से उनकी मूर्छा दूर हुई और उन्होंने पुन: युद्ध में भाग लिया।
उत्तरांचल के द्रोणागिरि गांव के बारे में मान्यता है कि हनुमानजी इसी स्थान से वह पर्वत तोड़कर ले गए थे। वहीं, द्रोणागिरि गांव की परंपरा के अनुसार यहां हनुमानजी की पूजा करना वर्जित है।
हनुमानजी अत्यंत बलशाली और पराक्रमी हैं। रामायण सहित विभिन्न ग्रंथों में उनकी शक्ति की प्रशंसा की गई है। जब वे लंका में प्रविष्ट हुए तो यहां उन्होंने रावण के एक हाथी को धराशायी कर दिया था जो आकार में बहुत विशाल था।
आमतौर पर उस आकार के हाथी अब नहीं मिलते, परंतु श्रीलंका में खुदाई के दौरान ऐसे कई हाथियों के अवशेष मिल चुके हैं जो बहुत विशाल आकार के थे। ये अवशेष इस तथ्य की पुष्टि करते हैं।
लंकादहन के पश्चात उत्पन्न हुई अग्नि से उस स्थान का रंग परिवर्तित हो गया था। अग्नि के तेज से मिट्टी का रंग बदल जाता है। आज भी उस स्थान की मिट्टी काली है और यहां जले हुए अवशेष मिलते हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि ये उसी लंका से संबंधित हैं जिसका हनुमानजी ने दहन कर दिया था।
रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम ने लंका की सत्ता विभीषण को सौंप दी थी। शासन चलाने के लिए विभीषण को नए स्थान की आवश्यकता हुई। उन्होंने अपना महल कालानियां नामक स्थान पर बनाया। यह कैलानी नदी के किनारे बसा था। उस नदी के किनारे प्राचीन महल आदि के अवशेष मिले हैं। माना जाता है कि ये अवशेष उसी महल के हैं जिनमें विभीषण रहते थे।