यह कंपनी विकलांगों को देती हैं नौकरी
एजेन्सी/ कौन कहता है दुनिया में इंसानियत और अच्छे लोग नहीं हैं। दूसरों की मदद करने वाले और उनका दर्द समझने वाले आज भी जिंदा हैं। इस बात की अहमियत तब औऱ बढ़ जाती है जब खुद कोई दुख झेल रहा इंसान दूसरों का दुख कम करने की कोशिश करता है। ऐसी ही कहानी है हैदराबाद के रहने वाले श्रीकांत बोला की।
23 साल के श्रीकांत जब पैदा हुए थे तब उनके गांव वालों ने उनके माता-पिता को कहा था कि वो इस बच्चे को मार डालें। जिंदगी भर दुख झेलने से बेहतर होगा किस्सा हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए। ये किसी काम का बच्चा नहीं है।
श्रीकांत के लिए ऐसी बातें इसलिए हो रही थीं क्योंकि वो जन्म से ही नेत्रहीन थें। लोगों ने कहा कि अंधा पैदा होना एक पाप है इसलिए उसे मार दिया जाना सही है। लेकिन आज वहीं बिन आंख का इंसान, जिसे सब बेकार समझते थे, आज न सिर्फ खुद काम कर रहा है बल्कि कई अपने जैसे लोगों को भी काम दे रहा है।
50 करोड़ कंपनी के सीईओ हैं श्रीकांत
श्रीकांत हैदराबाद में खुद की खड़ी की हुई कंपनी बोलांट इंडस्ट्रीज के सीईओ हैं। ये संस्थान अनपढ़ और विकलांग लोगों को काम पर रखता है। ये कंपनी पूरी 50 करोड़ की है।
श्रीकांत खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझते हैं, इसलिए नहीं क्योंकि वे करोड़पति हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि उसके अनपढ़ माता पिता ने, जो साल भर में सिर्फ 20,000 कमा पाते थे, उन गांव वालों की नहीं सुनी और उसे पूरे लाड़-प्यार से पाला। श्रीकांत कहते हैं,”वो मेरी नजर में सबसे अमीर लोग हैं।”
अमेरिका की यूनिवर्सिटी में लिया दाखिला
श्रीकांत की सफल कहानी इसलिए भी खास है क्योंकि वो न सिर्फ अंधे पैदा हुए थे, बल्कि गरीब परिवार में अंधे पैदा हुए थे। हमारे जैसे समाज में ऐसे लोगों की कोई जगह ही नहीं होती। लेकिन श्रीकांत ने खुद पर विश्वास रखा और अपना सपना पूरा किया।
स्कूल में भी उन्हें पीछे वाली सीट पर खिसका दिया जाता था औऱ खेलने भी नहीं दिया जाता था। दसवीं क्लास के बाद जब उन्होंने विज्ञान पढ़ना चाहा तो उन्हें उनकी विकलांगता के कारण मना कर दिया गया। सिर्फ 18 साल की उम्र में ही श्रीकांत ने न सिर्फ अपने साथ हुए अत्याचारों के खिलाफ लड़ा बल्कि अमेरिका के मैसाच्यूसेट्स तकनीक संस्थान में दाखिला लेने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय नेत्रदीन छात्र भी बने।
श्रीकांत बताते हैं कि विज्ञान विषय न दिए जाने पर उन्होंने सरकार के खिलाफ केस भी लड़ा और छ: महीने बाद जीते। उन्हें ऑडर मिला कि वे अपने खतरे पर विज्ञान के विषय पढ़ सकते हैं।
ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ भी किया काम
आज श्रीकांत के पास चार शहरों में प्रोडक्शन प्लांट्स हैं। जिससे वो ईको फ्रेंडली, डिस्पोजल कनज्यूमर पैकेजिंक सल्यूशन बनाते हैं। श्रीकांत की कंपनी में रवि मंता नाम के व्यक्ति पैसा लगाते हैं। वो बताते हैं कि दो साल पहले जब वे श्रीकांत से मिले थे तो उसके आईडिया से इतने खुश हुए कि उन्होंने इंवेस्टमेंट करने का फैसला किया।
स्कूल में श्रीकांत ने शतरंज औऱ क्रिकेट खेलना भी सीखा। क्लास में अव्वल आने पर उसे ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ लीड इंडिया प्रोजेक्ट में काम करने का भी मौका मिला था। आज इतने सारे लोगों को रोजगार देने वाले श्रीकांत अपनी जिंदगी से बहुत खुश हैं।