युवाओं के आदर्श ‘राम’
बृजनन्दन राजू
स्तम्भ : युवाओं के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम अयोध्या के राजा राम से बढ़कर कोई आदर्श नहीं हो सकता। राम ने अपने जीवन का स्वर्णिम समय ‘तरूणाई’ को राष्ट्र के काम में लगाया। राम का सारा जीवन प्रेरणाओं से भरा है। राम की राज महल से जंगल तक की यात्रा को देखें तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह अविचल रहे। उन्होंने समाज में सब प्रकार का आदर्श स्थापित किया। आदर्श भाई,आदर्श मित्र,आज्ञाकारी पुत्र, आज्ञाकारी शिष्य, आदर्श पति, आदर्श पिता और आदर्श राजा का उदाहरण स्वयं के आचरण द्वारा प्रस्तुत किया। पूरी अयोध्या के युवा उनके सखा थे। वह कामादिदोषरहितं, कुशल संगठनकर्ता, लोक संग्रही, मितव्ययी व मृदुभाषी थे। बाल्मीकि रामायण के अनुसार नारद जी ने महर्षि बाल्मीकि को राम के गुणों के बारे में बताते हुए कहा—इक्ष्वाकुवंश प्रभवो रामो नाम जनै: श्रुत:। नियतात्मा महावीर्यो द्यृतिमान द्युतिमान वशी। नारद जी कहते हैं इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न राम मन को वश में रखने वाले, महाबलवान,कान्तिमान,धैर्यवान और जितेन्द्रिय हैं। वे बुद्धिमान,नीतिमान तथा वाग्मी यानि अच्छे वक्ता भी हैं। वे तापवान, धर्मज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ,प्रजाप्रतिपालक,अखिल शास्त्रों के तत्वज्ञ, वेदवेदांग के ज्ञाता,गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं।
राम के जीवनकाल की शुरूआत संतों की सेवा के साथ हुई। अत्याचारी रावण के आतंक से जब समाज चीत्कार कर रहा था। ऋषि मुनि सताये जा रहे थे। अनुसंधान के प्रत्येक कार्य में जब राक्षस विध्न डालते और ऋषियों के यज्ञ विध्वंस किये जा रहे थे। रावण को चुनौती देने का साहस समाज नहीं जुटा पा रहा था। रावण का आतंक इतना बढ़ गया था कि ऋषि मुनियों की हड्डियों के पहाड़ लग गये थे। हड्डियों के लगे पहाड़ देखकर राम ने किशोरावस्था में प्रतिज्ञा ली कि निश्चिचर हीन करहु महिं भुज उठाय प्रण कींन्ह। राम ने राक्षसों को मारकर समाज को अभय प्रदान किया। राम का करीब 16 वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ। 18 वर्ष की अवस्था में वनवास हुआ। इसके बाद कानन,कठिन भयंकर भारी, 14 वर्ष वन में रहे। जंगल, महल, सुख दुख,निन्दा प्रशंसा, यश अपयश आदि की चिंता नहीं की। जो मिला उसे ग्रहण किया जो कहा गया उसका पालन किया।
राम को युवराज बनाने की तैयारी हो रही है लेकिन अचानक उन्हें समाचार मिला कि वन जाना है। वह विद्रोह नहीं करते वन जाने को सहर्ष तैयार हो जाते हैं। चक्रवर्ती सम्राट के पुत्र होकर भी घोर अभावों के बीच वन में 14 वर्ष व्यतीत करते हैं। जंगल में वनवास के दौरान शूर्पणखा ने राम के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। राम और लक्ष्मण दोनों शूर्पणखा का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर देते हैं। राक्षस राज रावण पंचवटी से सीता का हरण कर लेता है। समाज के सामाथ्र्य के बल पर लंका पर चढ़ाई की। राम सुग्रीव से मिताई करते हैं। वनवासियों को संगठित कर अत्याचारी रावण का संहार किया। राम ने रावण के मारने के बाद लंका पर अपना राज्य स्थापित नहीं किया। विभीषण को लंका का राजा बनाया। लक्ष्मण से राम कहते हैं ‘अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। मातृभूमि के प्रति ऐसी उत्कट निष्ठा राम रखते हैं। राम के जीवन की इन सब घटनाओं से युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। सेवक के प्रति कैसा अनुराग होना चाहिए यह राम और हनुमान के बीच प्रेम को देखना चाहिए।
उनके जीवन में एक भी उदाहरण नहीं मिलता कि उन्होंने किसी सज्जन का विरोध या उपहास किया हो। उन्होंने जो भी किया देशकाल परिस्थिति के अनुसार किया। राम का समस्त निर्णय शास्त्र सम्मत और देशकाल सम्मत था।
राजा राम प्रजा के विचार को जानने के लिए आकुल रहते हैं। राज्य के निरीक्षण में वे अकेले वेश बदलकर निकल जाते हैं। वनवास से लौटने के बाद नागरिक अभिनंदन सभा में राम ने घोषणा की कि जो अनीति कछु भाखहु भाई। राम ने कहा कि मेरे राज्य में जो कुछ भी आपको अनुचित लगे उसको बिना भय के आप कहें। प्रजा मात्र की कानाफूसी से वह अपनी भार्या जानकी को अयोध्या से निकाल देते हैं। यह जानते हुए भी कि सीता पवित्र हैं। सीता ने अग्नि परीक्षा भी दी थी। देवताओं और ऋषि मुनियों ने किशोरी को निर्दोष माना। फिर भी लोक अपवाद से वह डरते नहीं हैं। प्रजा के हित में वह सीता को त्याग देते हैं। प्रजाजनों के लिए उन्होंने जीवनभर कष्ट सहे। आज के सत्ताधीशों को राम से प्रेरणा लेनी चाहिए। राजा को सत्य का आग्रही होना चाहिए। प्रजा के विचार को चिंतन में लाना चाहिए। इसका प्रमाण रामराज्य में मिलता है। रामराज्य में तर्क की पूरी छूट थी। समस्त कलाओं के प्रति वह आदर रखते थे। शील, विनय और औदार्य में उनका कोई सानी नहीं है। तभी तो कथावाचक पूज्य मुरारी बापू कहते हैं राम एक विचार है। सद विचार शुभविचार ब्रहम विचार,मंगल विचार वह राम है।
भगवान राम के जीवन से हमें सीख लेने की आवश्यकता है कि उन्होंने किसी को बड़ा या छोटा नहीं माना। राम वनगमन के समय केवट को गले लगाते हैं। शबरी के आश्रम में जाते हैं। उसके हाथों बेर खाते हैं। वनवासियों का संगठन किया,सुग्रीव की मित्रता निभाई और गिद्धराज जटायु को गले लगाते हैं। वह संकट के समय अयोध्या या जनकपुर की सेना की सहायता नहीं लेते हैं बल्कि समाज को संगठित कर शक्तिशाली रावण का मुकाबला करते हैं। वह निष्ठा व आस्था का पूरा सम्मान करते हैं। वे केवल ताकतवर व बड़ों को ही सम्मान नहीं देते बल्कि पूरे समाज को सम्मान देते हैं। रामसेतु के निर्माण में गिलहरी का भी सहयोग लेते हैं। लंका जाते समय जब समुद्र से राम विनती करते हैं तीन दिन बीत जाता है समुद्र रास्ता नहीं देता। तब राम कहते हैं—विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति,बोले राम सकोप तब भय बिन होई न प्रीति। राम कहते हैं हे लक्ष्मण धनुष बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूं। लछिमन बान सरासन आनू, सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू। रामायण में प्रसंग आता है कि लंका में राम रावण युद्ध के समय जब विभीषण सामने रावण को रथ पर आरूण देखते हैं और राम के पैर में पनही भी नहीं है। तब विभीषण जीत पर शंका व्यक्त करते हुए कहते हैं। हे प्रभु ‘रावण रथी विरथ रघुबीरा। हम कैसे जीतेंगे। तब रामचन्द्र जी विभीषण से कहते हैं कि सौरज धीरज जाहि रथ चाका। सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका। यनि किसी भी कार्य की सिद्धि मात्र उपकरणों के सहारे नहीं हो सकती उसके लिए अंत:करण की शक्ति जरूरी होती है। उनके जीवन से हमें सदैव कार्यरत रहने की प्रेरणा मिलती है।
आदर्श शासन व्यवस्था के रूप में दुनिया में रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। जहां विकास के साथ—साथ स्वतंत्रता, सुरक्षा, समानता, स्वावलम्बन और समृद्धि हो वहीं रामराज्य है। रामराज्य का अर्थ यह है कि गरीबों की रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का आदर किया जाएगा। वहां जनजीवन समरस हो। वही रामराज्य है। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है- दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।। महात्मा गांधी ने भी रामराज्य की वकालत की थी।
आज भी लोग यदि अपना आचरण धर्मानुसार करना शुरू कर दें तो रामराज्य आने से कोई नहीं रोक सकता। रामराज्य को केवल भौतिक सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के आचरण, व्यवहार और विचार और मर्यादाओं के पालन के हिसाब से देखना चाहिए। रामराज्य के सभी नागरिक आत्म अनुशासित थे, वह शास्त्रों व वेदों के नियमों का पालन करते थे। जिनसे वह निरोग, भय, शोक और रोग से मुक्त होते थे। सभी नागरिक दोष और विकारों से मुक्त थे यानि वह काम, क्रोध, मद से दूर थे। देश इस समय कोरोना नामक संकट से जूझ रहा है। इस समय रामचरितमानस की चौपाई के अनुसार धीरज धर्म मित्र अरू नारी आपद काल परखिये चारी। यानि इस समय धैर्य के साथ इस आपदा का सामना करें।
(चैत्र श्रीराम नवमी पर विशेष)
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)