उत्तर प्रदेशटॉप न्यूज़फीचर्डराजनीतिराज्यलखनऊ

यूपी चुनावः पहले चरण में 73 सीटों पर त्रिकोणीय लड़ाई, दिखेगा जाति और मजहब के समीकरण का जोर

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान शनिवार 11 फरवरी को होगा. 15 जिलों की 73 सीटों पर होने वाले मतदान से पहले सभी राजनीतिक दलों ने पूरी रणनीति तैयार कर ली है. भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों के लिए सधे हुए कदम बढ़ाए हैं.

क्षेत्र के अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने के लिए बसपा ने इन 73 सीटों में से जहां 18 सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार को उतारा है, वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 12 सीटों पर. इन दोनों के बीच मुस्लिम वोट पाने की लड़ाई भी साफ दिख रही है. वहीं भाजपा और रालोद के लिए इलाके के जाट वोटों को बटोरने की जद्दोजहज जारी है. रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह लोकसभा चुनाव में खो चुके अपने जाट वोटों को फिर से पाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

पहले चरण के मतदान वाले इलाके भी चुनावी गणित की तरह जातीय और सांप्रदायिक समीकरणों के असर से अछूते रहने वाले नहीं हैं. पश्चिमी यूपी में जहां जाटलैंड कहा जाने वाला इलाका है तो उत्तर भारत का शुगर बेल्ट भी है. इसके साथ ही प्रदेश के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले जिले जैसे मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, एटा, आगरा, गौतमबुद्ध नगर और मथुरा में भी इसी चरण में मतदान होने वाला है.

यूपी चुनाव में पहले चरण का मतदान न सिर्फ तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों की रणनीति का लिटमस टेस्ट है बल्कि इसमें आगे होने वाले सभी चरणों के मतदान के लिए एक असर छोड़ जाने का माद्दा भी है.

बसपा अपने पहले से घोषित दलित-मुस्लिम (डीएम) गठजोड़ की रणनीति को इलाके में आजमा रही है तो सपा-कांग्रेस गठबंधन सेक्युलर वोटों के सहारे भाजपा से लोहा लेने वाला है. गठबंधन ने पहले चरण में 12 मुस्लिम और 10 गुज्जर समुदाय के लोगों को मैदान में उतारकर अपने एमजी फॉर्मूले को जांचने के मूड में है. गुज्जर समुदाय पिछड़ी जाति में आती है. कैराना, शामली और सहारनपुर जिले की कुछ सीटों पर इनका असर है. अगर इलाके के मुस्लिम और गुज्जर साथ वोट करें तो इधर की कई सीटों पर समीकरण बदल सकते हैं.

इसके पहले हुए यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में इन कुल सीटों पर बसपा ने 23, सपा ने 24 और कांग्रेस ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया था. भाजपा के लिए इन सीटों पर जीत हासिल करने का बड़ा दबाव साफ दिख रहा है, क्योंकि उसके सामने प्रदेश की सत्ता में 15 साल के बाद वापसी का बड़ा लक्ष्य है. पहले चरण का चुनाव उसके लिए बड़ा मददगार भी साबित हो सकता है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती भी उसके सामने है.

लोकसभा चुनाव 2014 और उसके पहले विधानसभा चुनाव 2012 में भाजपा के प्रदर्शन के बीच बड़ा अंतर दिखता है. लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश की 80 में 71 सीटों पर जीतने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव के दौरान इन इलाकों की 73 सीटों में महज 9 सीट ही निकाल पाई थी. इस बार कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी फैसले के लिए जनमत संग्रह की तरह भी हो सकता है.

जमीन पर भाजपा की राजनीतिक रणनीति इलाके के शहरी और बहुसंख्यक समुदाय को फिर से अपने पाले में लाने की है. खासकर कैराना में. गैरकानूनी बूचड़खाने, महिलाओं-बच्चियों की गरिमा की सुरक्षा और तुष्टीकरण जैसे मुद्दे उठाकर भाजपा अपने पक्ष में दूसरे तरह का ध्रुवीकरण करना चाह रही है. इसके लिए संगीत सोम और सुरेश राणा को उम्मीदवार बनाया गया है तो प्रचार में महंत योगी आदित्यनाथ लगे हैं. उन्होंने अपने भाषणों में कैराना की तुलना कश्मीर से की है.

भाजपा की जाट वोट बैंक की रणनीति से रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह उलझ सकते हैं. वहीं मुस्लिम वोटों को लेकर सिंह ने भाजपा की मुश्किल भी बढ़ाई है. पिछड़े समुदाय में दर्ज जाट समुदाय ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को एकमुश्त वोट दिया था. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह हालात बदल सकते हैं. हरियाणा से लगे पश्चिमी यूपी के इलाके में जाट समुदाय की राजनीति उफान पर है. हरियाणा में भाजपा के गैर-जाट मुख्यमंत्री को लेकर भी वहां जाटों के बीच सवाल उठने के संकेत हैं. जाटों के अबतक के सबसे बड़े नेता रहे पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के सम्मान को भी चुनाव में भुनाया जा रहा है.

रालोद जाट-मुस्लिम गठजोड़ के लिए पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन मुस्लिमों के मन में मुजफ्फरनगर दंगे की याद ताजा है. रालोद ने इलाके में 9 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. पहले चरण के चुनाव में 73 सीटों में 59 कसीटों पर रालोद मैदान में है.

 

Related Articles

Back to top button