यूपी चुना: अगर नहीं मिला किसी को बहुमत तो ऐसे बनेगी सरकार
जाहिर है कि उस स्थिति में सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए किसी न किसी नए साथी को साथ लेना पड़ेगा। इससे मौजूदा समीकरणों में कुछ न कुछ बदलाव जरूर होगा। वैसे अतीत में भी कई ऐसे प्रसंग सामने आ चुके हैं जब चुनाव पूर्व गठबंधन नतीजों के बाद नए समीकरणों के चलते टूटे हैं या फिर नए गठबंधन सामने आए हैं। अखिलेश वाजपेयी की एक रिपोर्ट-
सपा-कॉंग्रेस गठबंधन के पास ये हैं विकल्प
निषाद पार्टी या अन्य छोटे दल जीतते हैं तो विधायकों का भी समर्थन सरकार बनाने के लिए इस गठबंधन को मिल सकता है। वैसे तो सपा और बसपा को दो धुर विरोधी दल माना जाता है। पर, बसपा की सीटों का आंकड़ा गठबंधन और भाजपा दोनों से पीछे रहा तो जंग व सियासत में कुछ भी असंभव नहीं की कहावत भी चरितार्थ हो सकती है।
ऐसी स्थिति में एक संभावना यह हो सकती है कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए बसपा तटस्थ भूमिका अपनाकर सपा-कॉंग्रेस गठबंधन के लिए सरकार बनाने व विश्वासमत हासिल करने का रास्ता आसान कर दे।
वैसे भी ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि सपा की कमान अब उन मुलायम सिंह यादव के हाथ में नहीं है जिनके मुख्यमंत्रित्व काल में गेस्ट हाउस कांड हुआ था। यही नहीं, मायावती की तरफ से शिवपाल को लेकर लगातार नरम रुख भी किसी नए समीकरण का सूत्रधार बन सकता है।
सपा-कॉंग्रेस के पास ये भी होंगे विकल्प
– सपा-कांग्रेस गठबंधन को रालोद, अन्य छोटे दल व निर्दलीय दे सकते हैं समर्थन।
– सुनने में अटपटा लग सकता है लेकिन धुर विरोधी सपा-बसपा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हाथ मिला सकते हैं।
बसपा केंद्र की यूपीए सरकार को भी समर्थन देती रही है। इस चुनाव प्रचार में भी खास बात यह ध्यान में रखने वाली है कि मायावती या राहुल गांधी ने एक-दूसरे पर प्रहार नहीं किए हैं। रही बात भाजपा से साथ की तो बसपा के साथ गठबंधन या समर्थन से प्रदेश में तीन बार सरकारें बनी हैं।
पर, इस बार दोनों के एक साथ होने की संभावना काफी क्षीण है। मायावती खुद कह चुकी हैं कि बहुमत न भी मिला तो वह भाजपा से हाथ मिलाकर मुसलमानों को धोखा नहीं देंगी। सरकार बनाने के बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी।
बसपा के पास ये भी विकल्प मौजूद
– बसपा को सपा की तरह रालोद, छोटे दलों, निर्दलीयों का समर्थन मिल सकता है।
– सरकार बनाने के लिए सपा के साथ गठबंधन में शामिल कॉंग्रेस की मदद ली जा जा सकती है।
चुनाव पूर्व दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की चर्चा फैली जरूर थी लेकिन दोनों तरफ से इससे इन्कार कर दिया गया था। फिर भी संभव है कि सरकार में भागीदारी की शर्त पर दोनों पार्टियों के बीच दोस्ती हो जाए।
इसके अलावा भाजपा के सामने भी निर्दलीयों व निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों को साथ लेकर सरकार बनाने का विकल्प है। जहां तक दूसरे दलों में तोड़फोड़ का विकल्प है तो भाजपा ऐसा करने की कोशिश भी करेगी, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती।
ये विकल्प आजमा सकती है भाजपा
– भाजपा, रालोद, निषाद पार्टी, छोटे दल व निर्दलीय के समर्थन से सरकार बना सकती है।
– राजनीति संभावनाओं का खेल है, इसमें बसपा व भाजपा एक दूसरे को समर्थन दे या ले सकते हैं।
जाहिर है कि बसपा को बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा। साथ ही छह महीने के भीतर विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता लेनी होगी।
देखने वाली होगी कि इसके लिए वह विधान परिषद का रास्ता तलाशेंगी या पार्टी के किसी नवनिर्वाचित विधायक से त्यागपत्र दिलाकर उसकी सीट से उपचुनाव लड़कर विधानसभा सदस्य के रास्ते से सूबे की सरकार की बागडोर संभालना पसंद करेंगी।
वैसे मायावती ने 2007 में विधान परिषद की सदस्यता का ही विकल्प चुना था। भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? यह अभी स्पष्ट नहीं है। पर, जैसा कि केशव प्रसाद मौर्य या मनोज सिन्हा के नाम चर्चा में हैं तो ऐसा होने पर इन्हें भी लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा।
अगर भाजपा गठबंधन की सरकार बनती है और सपा-कॉंग्रेस गठबंधन मुख्य विपक्षी दल होता है तो यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव क्या भूमिका पसंद करते हैं।
वह विधान परिषद सदस्य ही बने रहते हैं या फिर पार्टी के किसी सदस्य त्यागपत्र दिलाकर उसकी सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा में भाजपा सरकार से मोर्चा लेना पसंद करते हैं।
रही बात बसपा की तो उसके मुख्य विपक्षी दल बनने पर लगभग यह तय माना जा रहा है कि वह राज्यसभा में ही रहेंगी। यहां पार्टी का कोई दूसरा नेता विपक्ष के नेता की भूमिका निभाएगा।