पश्चिम यूपी की मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर और अमरोहा सीट से कांग्रेस ने मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है। मुरादाबाद से इमरान प्रतापगढ़ी, बिजनौर से नसीमुद्दीन सिद्दीकी, सहारनपुर से इमरान मसूद और अमरोहा से राशिद अलवी को टिकट दिया गया है। ये चारों सिर्फ प्रत्याशी भर नहीं हैं, बल्कि इनकी अपनी अलग खास पहचान भी है।
नई दिल्ली : 2019 के सियासी संग्राम में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का जो अभियान कांग्रेस लेकर चली थी, महागठबंधन का वो स्वरूप मतदान की तारीख आते-आते न सिर्फ बिखरता दिखाई दे रहा है, बल्कि एक मंच पर साथ नजर आने वाले दल अब चुनावी मैदान में आमने-सामने आ गए हैं। उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की यह कोल्ड वॉर टिकट वितरण के बाद और ज्यादा स्पष्ट हो गई है. कांग्रेस ने अपने मुस्लिम प्रत्याशियों के सहारे दलित-मुस्लिम गठजोड़ के दम पर दिल्ली का ख्वाब संजोने वाले बसपा-सपा गठबंधन पर गहरा आघात किया है। अकेले पश्चिम यूपी की चार ऐसी लोकसभा सीट हैं, जहां कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार खासकर बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।
मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर और अमरोहा चार ऐसे लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां से कांग्रेस ने मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है। मुरादाबाद से इमरान प्रतापगढ़ी, बिजनौर से नसीमुद्दीन सिद्दीकी, सहारनपुर से इमरान मसूद और अमरोहा से राशिद अलवी को टिकट दिया गया है। ये चारों सिर्फ प्रत्याशी भर नहीं हैं, बल्कि इनकी अपनी अलग खास पहचान भी है। इमरान प्रतापगढ़ी मशहूर शायर हैं और जनता के बीच उनका क्रेज काफी है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी कभी मायावती के राइट हैंड कहे जाते थे, और लंबे अरसे तक उन्होंने बसपा में नंबर दो की भूमिका में रहते हुए काम किया. इमरान मसूद पश्चिम यूपी में कांग्रेस के सबसे मुखर चेहरे के तौर पर उभरे हैं। हालांकि, उनके तल्ख बयान पूरे देश में विवाद का केंद्र बने हैं। राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के नाते राशिद अलवी पूरे देश में अपनी पहचान रखते हैं। यानी इन नेताओं का कद इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि यहां गठबंधन के उम्मीदवारों को झटका लग सकता है।
यूपी की राजनीति पर खास पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी ने आजतक से बातचीत में बताया कि ऐसा करना कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा है। मायावती कांग्रेस पर लगातार हमले कर रही थीं, जिसके बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली और जिन सीटों पर जीतने की उम्मीद है, वहां मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने का फैसला किया। यूसुफ अंसारी के मुताबिक, जिन लोकसभा सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है, और वहां गठबंधन का कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है, वहां कांग्रेस ने अपने मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की रणनीति अपनाई है। लेकिन अमरोहा से बसपा उम्मीदवार दानिश अली के खिलाफ कांग्रेस का उम्मीदवार उतारना उसके इरादों और मजबूती देता है। यूसुफ अंसारी के मुताबिक, मायावती का सख्त रुख देखकर ही बसपा को सबक सिखाने की नीयत से कांग्रेस ने कुछ निर्णय लिए हैं, कांग्रेस से करीबी रखने वाले अमरोहा के उम्मीदवार दानिश अली के खिलाफ भी राशिद अलवी को उतारने का फैसला लिया गया है।
क्या कांग्रेस की यह स्ट्रैटेजी गठबंधन और खासकर बसपा को वाकई नुकसान पहुंचा सकती है, अब ये बड़ा सवाल है। इन चारों सीटों के समीकरण देखें तो गठबंधन के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। इन चारों लोकसभा क्षेत्रों में मुसलमान वोट न सिर्फ निर्णायक भूमिका में है, बल्कि वह नेतृत्व करता भी नजर आता है। मुरादाबाद सीट पर 45 फीसदी, बिजनौर सीट पर 38 फीसदी, सहारनपुर सीट पर 39 फीसदी और अमरोहा सीट 37 फीसदी मुसलमान है।बिजनौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने पहले एक गुर्जर नेता इंदिरा भाटी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन बसपा ने भी गुर्जर नेता मलूक नागर को मौका दे दिया। दूसरी तरफ बीजेपी ने सिटिंग सांसद कुंवर भारतेंद्र पर फिर से भरोसा जताया। गठबंधन का हिंदू उम्मीदवार देख कांग्रेस ने अपना फैसला बदल लिया और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उम्मीदवार बना दिया। इसकी बड़ी वजह यहां के 5 लाख मुसलमान मतदाता हैं।
जबकि बसपा उम्मीदवार मलूक नागर की नजर 1 लाख गुर्जर और 3 लाख दलित मतदाता पर है। मलूक नागर गुर्जर हैं, लेकिन उनके समाज का वोट भाजपा को जाता रहा है। दूसरी तरफ शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजपादी पार्टी ने ईलम सिंह गुर्जर को चुनाव मैदान में उतारा है। ऐसे में नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे बड़े कद वाले नेता को उतारकर कांग्रेस ने न सिर्फ बसपा को झटका दिया है, बल्कि अपनी जीत की संभावना को भी मजबूती दी है। मुसलमानों की आधी आबादी मुरादाबाद में भी गठबंधन के लिए मुसीबत बन सकती है। मुरादाबाद सीट पर कांग्रेस ने प्रदेश यूपी अध्यक्ष राज बब्बर को प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन जब बीजेपी ने अपने सिटिंग सांसद कुंवर सर्वेश को फिर से मौका दिया और सपा-बसपा के किसी तालमेल की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई तो कांग्रेस ने तुरंत अपना फैसला वापस ले लिया और मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी को मौका दे दिया। गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में गई है, लेकिन अभी तक प्रत्याशी का नाम फाइनल नहीं किया गया है। यहां करीब 45 फीसदी मुसलमान है।
अब तक इस सीट पर हुए 17 चुनावों में से 11 बार मुस्लिम प्रत्याशियों ने यहां से बाजी मारी है। 2009 में इस सीट से कांग्रेस के स्टार अजहरुद्दीन भी जीत चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस ने एक बार फिर इमरान प्रतापगढ़ी के रूप में मशहूर चेहरे को इस सीट से उतारा है। ऐसे ही कांग्रेस के एक स्टार प्रत्याशी सहारनपुर सीट पर हैं, जिनका नाम इमरान मसूद है। पुराने राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने वाले इमरान मसूद को 2014 में मोदी लहर के बाजवूद 34 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी से जीतने वाले राघव लखनपाल को 39 फीसदी मत प्राप्त हुए थे और बसपा महज 19 फीसदी वोट पर सिमट गई थी। अब सपा-बसपा गठबंधन ने 39 फीसदी आबादी वाले सहारनपुर क्षेत्र से हाजी फजलुर्रहमान को मौका दिया है। ऐसे में इस बार सहारनपुर सीट की लड़ाई त्रिकोणीय मुकाबले में बदलती नजर आ रही है, हालांकि हाजी फजलुर्रहमान की स्वच्छ छवि उनका पड़ला भारी कर रही है।
ठीक ऐसा की कड़ा मुकाबला अमरोहा सीट पर भी होता दिख रहा है, जहां 37 फीसदी मुसलमान हैं। जेडीएस छोड़कर बसपा में शामिल हुए कुंवर दानिश अली अमरोहा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने राशिव अलवी को उतारकर उनकी चुनौती बढ़ा दी है। दोनों नेता राष्ट्रीय टीवी पर एक साथ बहस करते नजर आते हैं। राशिद अलवी सांसद भी रह चुके हैं। ऐसे में इन दोनों की फाइट बीजेपी को भी बड़ा मौका दे सकती है। एक और बड़ा सवाल ये है कि क्या मुसलमान मतदाता बीजेपी के खिलाफ बने सपा-बसपा गठबंधन के सामने कांग्रेस उम्मीदवार को वोट करेगा। इस पर वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी का मानना है कि कांग्रेस की तरफ मुसलमानों का रुझान बढ़ा है और इसकी बड़ी वजह मायावती पर भरोसा कम होना है। उनके मुताबिक, मुस्लिम समाज में ये सोच उभर रही है कि कहीं चुनाव के बाद वह मायावती बीजेपी के साथ न चली जाए। ऐसे में मुसलमान मायावती और अखिलेश यादव के गठबंधन के सामने कांग्रेस के मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार को चुन सकता है।