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यूपी में सभी तरह की पॉलीथीन थैलियों के निर्माण और इस्तेमाल पर लगी रोक

97834-polythene-bags-banलखनऊ : उत्तर प्रदेश में अब सब्जी या रोजमर्रा की अन्य जरूरत का सामान खरीदने के लिये घर से कपड़े या कागज का थैला ले जाना होगा क्योंकि राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के एक महीने बाद आज पूरे प्रदेश में पॉलीथीन की थैलियों के निर्माण और इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘पॉलीथीन बैग और पॉलीथीन इसलिए बैन हो गये हैं क्योंकि अदालत का भी आदेश है और उत्तर प्रदेश को पर्यावरण हितैषी बनाने की दिशा भी यह कदम जरूरी था।’ मुख्यमंत्री ने कहा कि पॉलीथीन और पॉलीथीन बैग पर प्रतिबंध लगाने के बाद उसके विकल्प क्या होंगे, इस पर भी कैबिनेट में चर्चा हुई। साथ ही सरकार द्वारा इस संबंध में क्या वैकल्पिक इंतजाम किए जा सकते हैं, इसपर विचार किया गया।

मंत्रिपरिषद में लिये गये निर्णय के मुताबिक प्रदेश में सभी प्रकार के प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, बिक्री, भण्डारण और ढुलाई वगैरह को प्रतिबंधित किया जाएगा। अब कोई भी दुकानदार, थोक या खुदरा विक्रेता, फेरी या ठेले वाला किसी भी खाद्य या अखाद्य सामान पॉलीथीन बैग में नहीं दे सकेगा। इसके अलावा अब कोई भी व्यक्ति किसी किताब, निमंत्रण पत्र इत्यादि को रखने या ढकने के लिये किसी भी प्रकार के प्लास्टिक आवरण का इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।

इस प्रतिबंध के तहत ऐसी प्लास्टिक थैलियां शामिल नहीं होंगी जो पैकेजिंग का भाग या हिस्सा बनती है या इसका अभिन्न अंग हैं, जिसमें प्रयोग से पहले चीजें सीलबंद की जाती हैं। इसके अलावा जैव चिकित्सीय कूड़ा-करकट (प्रबन्धन एवं सम्भाल) नियमावली 1998 के तहत निर्दिष्टि प्लास्टिक थलियों के इस्तेमाल पर यह पाबंदी नहीं लागू होगी।

गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गत 18 नवम्बर को उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिये थे कि पूरे प्रदेश में पॉलीथीन पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए 31 दिसम्बर तक अध्यादेश जारी करे। प्रदेश के महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने अदालत को आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाने को लेकर अदालत कोई समयसीमा तय कर सकती है और उसके बाद राज्य सरकार इस सिलसिले में अधिसूचना जारी करेगी।

इस पर, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंड पीठ ने यह आदेश दिया था। अदालत ने यह आदेश अशोक कुमार नामक व्यक्ति की जनहित याचिका पर दिया था। याचिका में इलाहाबाद शहर में साफ-सफाई की व्यवस्था सुधारने के लिये अदालत के हस्तक्षेप का आग्रह किया गया था।

 

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