ये तो सिर्फ ट्रेलर, फिल्म अभी बाकी
-स्वामी प्रसाद मौर्या बोले, 22 सितंबर को रमाबाई अम्बेडकर मैदान में सुना दूंगा फैसला
दस्तक ब्यूरो
लखनऊ। बसपा में ऊंचे कद के माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या मायावती के खास सिपहसालार थे। पार्टी के सत्ता में रहने पर महत्वपूर्ण पदों पर रहने वाने श्री मौर्या ने बीते दिनों बसपा से रिश्ता खत्म क्या किया राजनीति में उथल-पुथल के संकेत मिलने लगे। उनका अगला राजनैतिक पैंतरा क्या होगा, इसका अब तक खुलासा न होने से सूबे की सियासत गर्म है। मायावती पर हमलावर स्वामी प्रसाद ने एक बातचीत में बताया कि बसपा का काउंट डाउन षुरू हो चुका है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा चौथे स्थान पर पहुंच जाएगी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक नया आयाम दूंगा। सहयोगियों व वरिष्ठों से चर्चा करेंगे। 22 सितम्बर को रमाबाई अम्बेडकर मैदान में फैसला सुना दूंगा। एक जुलाई को जुटी भीड़ सिर्फ ट्रेलर है। बाकी की फिल्म रमाबाई मैदान में दिखेगी। मेरे साथ कई दर्जन विधायक हैं। अभी उनके नाम नहीं बताऊंगा। समय आने पर सब कुछ साफ-साफ दिखने लगेगा।
श्री मौर्या की मानें तो बसपा में अब बाबा साहब के मिशन व कांशीराम के विचार नहीं बचे हैं। उनकी नीलामी हो रही है। पुराने कार्यकर्ता उपेक्षित हैं। उन्ही से धन उगाही भी हो रही है। विचारधारा की कोई जगह नहीं है। मायावती आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हैं। कांशीराम के आदर्श और बाबा साहब का मिशन अब बचा ही नहीं है। इसलिए माया के तानाशाही रवैये पर चाटा जरूरी है। अब यही वे कर रहे हैं। मौर्या ने बताया कि उनका अपना जनाधार है। वे अपने बूते राजनीति में आए। निकाले जाने वाले पूरी तरह से बसपा पर निर्भर रहे। इसलिए आगे नहीं बढ़ पाए। विचारधारा वाली पार्टी में लोकतंत्र की रक्षा होती है। बसपा में तो टिकटों की नीलामी हो रही है। कार्यकर्ता भला कैसे होगा? उन्होंने भाजपा के किसी लीडर से बात होने से इन्कार किया। तथ्यहीन और बेकार बातों का उत्तर देना उचित नहीं समझते। कांग्रेस में शामिल होने के कायासों को सही नहीं ठहराते। आरके चौधरी के पार्टी छोड़ने को सुनियोजित बताना भी गलत मान रहे हैं। बसपा के भ्रष्टाचार से ऐसा होना स्वाभाविक ठहराते हैं।
श्री मौर्या अभी और नेताओं के पार्टी छोड़ने की बात कह रहे हैं। नाम लेने की सवाल पर वे चुप रहना ही उचित समझ रहे हैं। 2017 के चुनाव में मायावती की हैसियत दिखाने की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं कि कांशीराम के जमाने में टिकट बेंचा नहीं जाता था। एक मिशन के तहत काम होता था। लेकिन मायावती ने टिकट बेंचना शुरू किया। शुरुआत में कार्यकर्ताओं से कोई पैसा नहीं लिया जाता था, लेकिन अब यह बिक्री सबके लिए है। पार्टी में एक दिन भी काम न करने वाले को टिकट मिल जाता है। ऐसे में कार्यकर्ता उदास हैं। कई बार मायावती को समझाया गया, लेकिन वह नहीं मानी। अब आप ही बताइए, ऐसी पार्टी में रहना ठीक है? मौर्या ने कहा मेरे साथ धैर्यवान और समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन पर भरोसा है। मैं आतिश बाजी का फुस्स पटाका नहीं हूं। इतनी जल्दी खत्म नहीं हो जाऊंगा। जनमत संग्रह के लिए अभी पूरे देश के समर्पित व निष्ठावान कार्यकर्ताओं से सलाह ले रहा हूं।
उल्लेखनीय है कि श्री मौर्या लगभग तीस साल से सक्रिय राजनीति में है। बसपा में दो नम्बर की हैसियत रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने 1996 में बसपा ज्वाइन किया। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1996 में ही रायबरेली डलमऊ से चुनाव लड़े और विधायक बने। 1997 में भाजपा-बसपा गठनबन्धन सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री रहे। 2001 में नेता विपक्ष बने और 2002 में दोबारा डलमऊ से विधायक बने। 2002-2003 में एक बार फिर भाजपा-बसपा सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री बने। 2003 में नेता विरोधी दल, फिर 2007 में चुनाव हारने के बावजूद राजस्व मंत्री के पद से नवाजे गए। 2007-2009 तक विधानपरिषद सदन के नेता रहे। 2008 में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष व 2009 के पडरौना के उपचुनाव में जीत हासिल कर तीसरी बार विधायक बने। 2009 में पांचवी बार कैबिनेट मंत्री, 2011 में भूमि विकास जल संसाधन और डा. अम्बेडकर विकास की जिम्मेदारी मिली। 2012 में चौथी बार कुशीनगर के पडरौना से विधायक चुने गये। 2012 में तीसरी बार विधानसभा में नेता विरोधी दल का सेहरा इनके सिर बंधा।