‘ये सिर्फ समझौता नहीं, हमने सात अरब लोगों के जीवन में उम्मीद का अध्याय लिखा है’
पेरिस: भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पेरस में जलवायु परिवर्तन समझौते का स्वागत करते हुए कहा, ‘आज ऐतिहासिक दिन है। हमने जो मंजूर किया है, वह केवल एक समझौता नहीं है, बल्कि हमने सात अरब लोगों के जीवन में उम्मीद का अध्याय लिखा है।’
इससे पहले भारत, चीन और अमेरिका की सहमति के साथ ही ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन समझौता शनिवार रात मंजूर हो गया। 196 सदस्यों के प्रतिनिधियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच फ्रांस के विदेश मंत्री लाउरेंट फैबियस ने ‘ऐतिहासिक’ समझौते का मसौदा पेश किया और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने वहां मौजूद प्रतिनिधियों से समझौता मंजूर करने की अपील की।
तेरह दिन तक चली व्यस्त वार्ताओं के बाद 196 सदस्यों ने ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण के लिए ‘ऐतिहासिक’ समझौते को मंजूर कर लिया। यह एक ऐसा समझौता है जिसे नेताओं ने ‘विभिन्नता प्रदान करने वाला, निष्पक्ष, दीर्घकालिक, गतिशील और कानूनी रूप से बाध्यकारी’ करार दिया। फ्रांस के विदेश मंत्री ने घोषणा की कि पेरिस समझौते को मंजूर कर लिया गया है। मंत्रियों के बीच आम सहमति का तब प्रदर्शन हुआ जब उन्होंने कई मिनट तक खड़े रहकर तालियां बजायीं और अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
‘जलवायु न्याय’ की धारणा स्वीकार
फैबियस ने घोषणा की, ‘मैं यहां देख रहा हूं कि प्रतिक्रिया सकारात्मक है। मुझे यहां कोई भी ‘नहीं’ सुनायी नहीं दे रहा है। पेरिस जलवायु परिवर्तन मंजूर किया जाता है।’ फैबियस ने दावा किया कि 31 पेज वाला यह समझौता ‘जलवायु न्याय’ की धारणा को स्वीकार करता है और यह देशों की अलग-अलग जिम्मेदारियों और उनकी अलग-अलग क्षमताओं पर अलग-अलग देशों की स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में गौर करता है।
अंतिम मसौदे पर प्रतिक्रिया जताते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पहले मीडिया से कहा था कि विकासशील और विकसित देशों के बीच अंतर जिसकी मांग भारत करता रहा है उसे कार्रवाई के सभी स्तंभों में उल्लेखित किया गया है, जिसमें न्यूनीकरण, वित्त और प्रौद्योगिकी तक पहुंच शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मसौदा ‘संतुलित’ है और यह विश्व के लिए आगे बढ़ने का रास्ता है।
भारत की चिंताओं का ध्यान रखा गया
जावड़ेकर ने इसे भारत के लिए एक ‘महत्वपूर्ण उपलब्धि’ करार दिया। उन्होंने कहा कि 31 पेज वाले अंतिम मसौदे में ‘सतत जीवन शैली और जलवायु न्याय’ का उल्लेख किया गया है, जिसका भारत द्वारा समर्थन किया जा रहा था। उन्होंने कहा, ‘अंतिम मूलपाठ को पहली नजर में देखकर हम खुश हैं कि इसमें भारत की चिंताओं का ध्यान रखा गया है। इसे संधि (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज) से जोड़ा गया है, जबकि साझा लेकिन विभेदकारी जिम्मेदारियों को उसमें आत्मसात किया गया है।’
जावड़ेकर ने समझौते का स्वागत करते हुए कहा, ‘आज ऐतिहासिक दिन है। हमने जो मंजूर किया है, वह केवल एक समझौता नहीं है, बल्कि हमने सात अरब लोगों के जीवन में उम्मीद का अध्याय लिखा है।’ उन्होंने पहले कहा था कि भारत पिछले एक साल से दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर जोर दे रहा था – जलवायु न्याय और सतत जीवनशैली।
उन्होंने कहा, ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण सतत जीवनशैली और जलवायु न्याय के उद्देश्य का हमेशा ही समर्थन किया है। दोनों को मूलपाठ की प्रस्तावना में उल्लेखित किया गया है। यह भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन दो अवधारणाओं को भारत की ओर से पिछले एक साल के दौरान मजबूती से रखा गया।’
भारत चाहता था कि विभेदीकरण की अवधारणा को समझौते के सभी तत्वों में स्पष्ट रूप से समझाया जाए और वह यह रुख अपना रहा था कि उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को स्वीकार करने में विकसित देशों की अधिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, जबकि वे एकमात्र ऐसे होने चाहिए जो अनिवार्य रूप से वित्तीय संसाधन मुहैया कराएं।