ये है भारत का वो अनोखा शहर जहाँ न पैसा चलता हैं और न सरकार
जैसा सभी जानते हैं कि आज के जमाने में इंसान की जिन्दगी पैसों से ही चलने लगी है और सबको पता हैं पैसा सरकारी कार्यालय में बनता है.
इस जगह पैसे और सरकार की नही होती जरुरत
आजकल रुपये के बिना कोई एक कदम भी नहीं चल पाता है लेकिन वहीं अगर हम आपसे ये कहें कि आज देश में एक ऐसी जगह भी मौजूद है जहां पैसों की कोई जरूरत नहीं तो यक़ीनन आप विश्वास नहीं करेंगे…
लेकिन दोस्तों आपको सुनकर हैरानी होगी कि वाकई देश में ऐसी जगह हैं जहाँ पैसों के साथ-साथ सरकार की भी जरूरत नहीं पड़ती है.
आज हम आपको इसी हैरान करने वाली जानकारी के बारे में बताते हुए उस जगह का ख़ुलासा करेंगे जहां ना तो पैसों की जरूरत है और ना सरकार की.
इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये हैं कि और वो जगह और कही नहीं हमारे ही भारत में स्थित है.
चेन्नई से केवल 150 किलोमीटर दूर हैं जगह
जानकारी के लिए बता दें कि ये एक ऐसे शहर हैं जहाँ ना तो धर्म है, ना पैसा है और ना ही कोई सरकार.
अब यकीनन आप सभी यह सोच रहे होंगे कि भारत में तो शायद ही कोई ऐसा शहर हो लेकिन दोस्तों यह सत्य है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह शहर चेन्नई से केवल 150 किलोमीटर दूर है.

इस अनोखी जगह का नाम ‘ऑरोविले’ है इस शहर की स्थापना साल 1968 में मीरा अल्फाजों ने खुद की थी.
बता दें कि इस जगह को सिटी ऑफ डॉन भी कहते है जिसका मतलब होता है भोर का शहर.
इस अजीबोगरीब शहर को बसाने के पीछे मीरा अल्फाजों का सिर्फ एक ही मकसद था कि यहां रहने वाले लोग जात-पात, ऊंच-नीच और भेदभाव से दूर रहें.
इस जगह पर कोई भी इंसान कही से भी आकर मुफ्त में रह सकता है लेकिन यहाँ रहने की शर्त सिर्फ इतनी होती हैं कि उसे एक सेवक के तौर पर रहना होगा.
आखिर कौन है मीरा अल्फाजों..?
गौरतलब हैं कि यह एक तरीके की प्रायोगिक टाउनशिप है जो तमिलनाडु के Viluppuram District में स्थित है.
अगर अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये मीरा अल्फाजों कौन है. तो बता दें कि मीरा अल्फाज़ों श्री अरविंदो स्प्रिचुअल रिट्रीट में 29 मार्च, 1914 को पोन्डिचेरी आई थी लेकिन वर्ल्ड वार प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वह कुछ समय के लिए जापान चली गई थी.
लेकिन साल 1920 में वह वापस भारत के पोंडीचेरी आ गई थी और साल 1924 में श्री अरविंदो स्प्रिचुअल संसथान से जुड़ गयी जहाँ वो जनसेवा के कार्य करने लगी.
इसके बाद साल 1968 में उन्होंने भारत में रहते हुए ही ऑरोविले की स्थापना की जिसे यूनिवर्सल सिटी का नाम दिया गया.
बाद में चलकर ये ऐसा स्थान बना जहा कोई भी कही से भी आकर रह सकता है.
शहर में रहते हैं 50 देशों के 24000 लोग
साल 1968 से लेकर 2015 तक इस शहर का आकार बहुत ज्यादा बढ़ता चला गया और इसके इस अनोखे कॉन्सेप्ट को कई जगह सराहा भी जाने लगा.

अगर अब वर्तमान की बात करे तो आज इस शहर में करीबन 50 देशों के लोग मुफ्त में रहते हैं.
इस शहर की आबादी करीब 24000 लोगों की है यहां पर एक मंदिर भी है.
हालांकि यहाँ मौजूद मंदिर में किसी धर्म से जुड़े भगवान की पूजा नहीं होती यहां सिर्फ लोग आते हैं और योगा करते हैं.

इस शहर की यूनेस्को ने भी प्रशंसा की है और आपको यह बात शायद नहीं पता होगी कि यह शहर भारतीय सरकार के द्वारा भी समर्थित है.
निष्कर्ष
वाकई बिना पैसे और बिना सरकार वाले इस शहर में लोग जिस तरह बिना किसी भेदभाव के आज रह रहे हैं ठीक उसी तरह अगर पुरे देश में ऐसा होने लग जाए तो सोचिये भारत की विश्वभर में कितनी तरक्की होगी.